
उत्सव बड़े हों, पर शहर का दामन न फटे
जगमंदिर की रोशनी,
सिटी पैलेस की हवाओं में घुली मोहब्बत,
और दुनिया भर से आए मेहमान—
सब मिलकर एक सपनों सा नज़ारा रचते हैं।
लेकिन इस सपने की चौखट पर
एक सच्चाई भी खड़ी है—
शहर जितना हमारा है,
उतना ही नाज़ुक भी है।
बड़े आयोजनों की चमक के पीछे शहर की धड़कनों को सुनना ज़रूरी
उदयपुर जैसा शहर
झीलों की सांसों पर चलता है,
पत्थरों की विरासत में जीता है,
और संकरी गलियों में अपना इतिहास ढोता है।
ऐसे में,
जब किसी अरबपति की शादी,
या कोई विशाल अंतरराष्ट्रीय आयोजन होता है—
तो उसकी चकाचौंध जितनी बड़ी होती है,
शहर पर उसका दबाव भी उतना ही गहरा होता है।
● ट्रैफिक का तनाव,
● जीवनशैली पर असर,
● स्थानीय व्यापार और रोज़मर्रा की गतिविधियों में बाधा,
● ऐतिहासिक स्थलों पर भीड़ का प्रेशर,
● झीलों और पर्यावरण पर अनजाना बोझ,
● और सिक्योरिटी लॉकडाउन से जनजीवन की मुश्किलें—
ये सब किसी भी मेगा इवेंट की अदृश्य कीमत हैं।
इसलिए यह ज़रूरी है कि
जब उत्सव शहरों में आएँ—
तो शहर की आत्मा पर बोझ बनकर न बैठें।
✦ शहर की सुंदरता बचाने के प्रयास :
उत्सव और संरक्षण साथ-साथ चलें
उदयपुर की सुंदरता
किसी एक परिवार या एक आयोजन की नहीं—
यह पीढ़ियों की धरोहर है।
इसे बचाने के लिए कुछ प्रयास
हमेशा हर बड़े आयोजन का हिस्सा होने चाहिए:
✔ 1. पर्यावरणीय नियंत्रण
झीलों में कचरा या प्रदूषण रोका जाए,
साउंड लेवल नियंत्रित हों,
और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान हो।
✔ 2. स्थानीय यातायात प्रबंधन
ऐसे रूट बनाए जाएँ
जो पर्यटकों को सुविधाजनक हों,
लेकिन स्थानीय लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी को रोकें नहीं।
✔ 3. विरासत स्थलों का संरक्षण
इतिहास पत्थरों में बसता है—
उसे अतिरिक्त भार, अतिरिक्त रोशनी
और अतिरिक्त भीड़ से बचाना चाहिए।
✔ 4. स्थानीय प्रशासन के साथ तालमेल
हर आयोजन में
नगर निगम, पुलिस, पर्यटन विभाग और सांस्कृतिक संस्थाओं को
एक सजग टीम की तरह काम करना चाहिए।
✔ 5. आयोजन का सामाजिक योगदान
अगर कोई शादी अरबों में हो रही है,
तो शहर को भी उसका लाभ
सिर्फ़ रेवेन्यू में नहीं,
संरक्षण और सौंदर्यीकरण में भी मिलना चाहिए—
जैसे झील किनारे सफाई अभियान,
सड़क सुधार,
या विरासत स्थलों के रेस्टोरेशन को सहयोग।
उत्सव की रौनक रहे, पर शहर की धड़कन न टूटे
चमक बहुत अच्छी है,
उत्सव लाजवाब हैं,
पर सुंदरता तब तक ही टिकती है
जब तक उसकी नमी, उसकी नाज़ुकता का एहसास ज़िंदा रहे।
उदयपुर की झीलें हमें कहती हैं—
“जश्न मनाओ…
पर इस तरह कि पानी की लहरें भी मुस्कुराएं,
पत्थरों की आत्मा भी सलामत रहे,
और शहर को यह न लगे
कि उसकी महिमा पर बोझ डाल दिया गया है।”
क्योंकि अंत में—
शहर भी एक जिंदा एहसास है,
और उसकी हिफ़ाज़त हर जश्न से ज़्यादा खूबसूरत फर्ज़।
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