उदयपुर झीलों की पहचान : पर्यावरण और पारिस्थितिकी हो प्राथमिकता, पर्यटन व्यवसाय नहीं

उदयपुर। हाल ही में एक टूरिज्म पोर्टल द्वारा पिछोला झील को विश्व की खूबसूरत झीलों की सूची में शामिल करना पर्यटन व्यवसाय के लिए एक सराहनीय बात हो सकती है। लेकिन झील प्रेमियों और पर्यावरणविदों की वास्तविक चिंता उस दिन समाप्त होगी, जब पिछोला सहित उदयपुर की अन्य झीलें पर्यावरण और पारिस्थितिकी की दृष्टि से विश्व की सर्वश्रेष्ठ झीलों में शामिल होंगी।

रविवार को पिछोला झील की वर्तमान स्थिति को देखकर झील प्रेमियों ने अपने विचार व्यक्त किए। झील के किनारों पर कंस्ट्रक्शन वेस्ट और शहरी कचरे का अंबार देखकर उन्होंने अपनी चिंता जाहिर की। झील विशेषज्ञ डॉ. अनिल मेहता ने इस स्थिति पर गहरा अफसोस व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि झीलों की असली पहचान और उनका अस्तित्व उनके जल तंत्र, जलीय जैव विविधता, प्रवासी पक्षियों की संख्या और पहाड़ों व वनों से समृद्ध जल ग्रहण क्षेत्र से होता है। आज दुर्भाग्यवश, ऐतिहासिक झीलों की पहचान लक्जरी होटलों के एक रोमांटिक स्थान के रूप में बनाई जा रही है, जो भारत की जल संस्कृति के खिलाफ है।

झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झील में गंदे पानी का प्रवेश लगातार हो रहा है, घाटों पर गंदगी फैली है, और किनारे खत्म किए जा रहे हैं। यह स्थिति गर्व का विषय नहीं हो सकती।

गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि पर्यटन और यात्रा व्यवसाय की आवश्यकता है, लेकिन यह झीलों के पर्यावरणीय स्वास्थ्य की कीमत पर नहीं होना चाहिए। वहीं युवा पर्यावरणविद कुशल रावल ने झीलों के जल ग्रहण क्षेत्र में हो रही पहाड़ियों की कटाई और विशाल होटलों के निर्माण पर गहरी चिंता जताई। उनका कहना है कि ये सब झीलों के अस्तित्व पर गंभीर संकट का कारण बन रहे हैं।

वरिष्ठ नागरिक पल्लब दत्ता और द्रुपद सिंह ने झीलों के असली मालिकों के रूप में मछलियों, जलीय जीवों और पक्षियों का हवाला देते हुए कहा कि इंसानी घुसपैठ के दुष्परिणाम झेलने होंगे।

झील प्रेमियों की इस चिंता के बीच यह सवाल उठता है कि क्या पर्यटन विकास के नाम पर झीलों की पारिस्थितिकी और जल संस्कृति को खतरे में डालना उचित है? जवाब स्पष्ट है—झीलों की पहचान और उनका अस्तित्व पर्यावरणीय दृष्टिकोण से ही संरक्षित और सुरक्षित हो सकता है।

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