
उदयपुर। उदयपुर की तहज़ीब, अदब और सुरों की सरज़मीं पर बीते पंद्रह सालों से एक कारवां बिना थमे, बिना थके चलता आ रहा है — नाम है शायराना उदयपुर परिवार।
यह महज़ एक मंच नहीं, बल्कि एक रूहानी महफ़िल है, जहाँ लफ़्ज़ों को सुर मिलता है, और सुरों को इज़्ज़त। पिछले डेढ़ दशक से यह परिवार बिना किसी शुल्क के साहित्य और संगीत की सेवा कर रहा है — बिल्कुल उसी तरह जैसे इश्क़ बिना शर्त होता है।
इस कारवां में शामिल हैं — अधिकारी, कर्मचारी, उद्योगपति, नामचीन साहित्यकार, राष्ट्रीय स्तर के कवि-शायर, वरिष्ठ पत्रकार, वकील और लेखक — जो अपने अपने इलाक़ों के सिरमौर हैं, मगर जब इस मंच पर आते हैं, तो बस एक फनकार बन जाते हैं।
हर माह, एक शब-ए-सुकून…
हर माह के अंतिम रविवार को शायराना उदयपुर परिवार एक “मेगा मिलन समारोह” का आयोजन करता है, जहाँ आमजन अपनी कला का खुला इज़हार करते हैं — कभी ग़ज़ल बनकर बहते हैं, तो कभी कविता की बारिश में भीगते हैं। राजस्थान के कोने-कोने से फनकार इसमें हिस्सा लेते हैं।
पिछले कार्यक्रम में चित्तौड़गढ़, कोटा, राजसमंद, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जैसे ज़िलों से आए कलाकारों ने अपने सुरों और शब्दों से समां बाँध दिया था।
आने वाला संगम – 29 जून को
इस बार का अगला मेगा मिलन समारोह 29 जून को रखा गया है, जिसमें श्रृंगार रस को केंद्र में रखते हुए गीत, संगीत और साहित्य की बेमिसाल प्रस्तुतियाँ देखने को मिलेंगी।
कार्यक्रम स्थल: ऐश्वर्या कॉलेज, न्यू आरटीओ, महासभा-गृह
समय: सुबह 11:00 बजे से
इस बार मंच पर होंगे:
लोकगीत और पैरोडी
ग़ज़लें, शायरियाँ और कविताएँ
युगल और एकल गीत
लोक वाद्य यंत्रों के साथ जीवंत प्रस्तुतियाँ
“ये कोई आम महफ़िल नहीं, ये जश्न-ए-हुनर है…”
कैसे लें भाग?
कार्यक्रम के प्रभारी ललित गोयल (+91 79767 46612) और महबूब ख़ान (+91 94140 01550) ने बताया कि जो भी इस महफ़िल का हिस्सा बनना चाहता है, वह 27 जून तक अपनी रचना व्हाट्सएप के माध्यम से भेज सकता है।
प्रस्तुति का अवसर ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर दिया जाएगा।
तीन श्रेष्ठ कलाकारों को मिलेगा सम्मान
कार्यक्रम में चयनित प्रस्तुतियों को विशेषज्ञों की मौजूदगी में मंच मिलेगा। साथ ही तीन बेहतरीन प्रस्तुतियों को विशेष रूप से सम्मानित किया जाएगा, ताकि उभरते कलाकारों को न सिर्फ़ मंच मिले, बल्कि हौसला भी।
“ये मंच सिर्फ़ अदबी सफ़र नहीं, ये एक ख्वाब है जो हर लफ़्ज़ में ज़िंदा है…”
शायराना उदयपुर ने साबित कर दिया है कि जब इरादा खालिस हो और नीयत नेक — तो बिना शोर किए भी एक शायर, एक संगीतकार, एक कलाकार — समाज को नई रोशनी दे सकता है।
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