
उदयपुर। उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज के छात्रावास में पिछले दिनों एक होनहार डॉक्टर की अकाल मौत ने सिर्फ एक परिवार को नहीं, बल्कि पूरे समाज और सिस्टम को झकझोर कर रख दिया है। डॉ. रवि शर्मा—एक नाम जो कल किसी का जीवन बचाने वाला था, आज खुद एक लापरवाही की भेंट चढ़ गया। करंट से झुलसकर मरना, वह भी उस परिसर में, जहां जिंदगियां बचाई जाती हैं—यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सिस्टम पर एक गहरा तमाचा है।
जरा सोचिए उन मां-बाप के बारे में, जिन्होंने बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए अपनी पूरी जवानी गवां दी। जिन्होंने उसके बचपन के हर ख्वाब को अपनी हथेलियों पर रखा। उसके फर्स्ट स्टेप से लेकर फाइनल ईयर की डिग्री तक, हर मोड़ पर अपने सपनों को उसके साथ जीया। और आज? आज एक जर्जर वायरिंग ने सबकुछ राख कर दिया।
एक करंट ने सिर्फ रवि को नहीं मारा, बल्कि उसके माता-पिता की सांसों को, उनके बुज़ुर्ग होने से पहले का सारा संबल भी छीन लिया। अब वे बचे हैं बस एक खाली तस्वीर, एक बिछा बिस्तर, एक अधूरी किताब और अंतहीन सन्नाटे के साथ।
लापरवाही का नतीजा : मौत
जिस मेडिकल कॉलेज में सुपर स्पेशिएलिटी सुविधाएं और ट्रॉमा सेंटर जैसे भारी-भरकम प्रोजेक्ट्स खड़े किए जा रहे हैं, वहीं हॉस्टल के एक कमरे की वायरिंग तक दुरुस्त नहीं हो पाती? क्या हमारी प्राथमिकताएं इतनी असंवेदनशील हो चुकी हैं कि “जान” से पहले “जगह” और “जुज़वाँ” से पहले “जुगाड़” को तरजीह दी जा रही है?
आरएनटी मेडिकल कॉलेज की पुरानी इमारतें सालों से सिसक रही हैं। दीवारों में सीलन है, वायरिंग खुली पड़ी है, और सुरक्षा नाम की चीज़ मानो किसी स्लोगन तक सिमट गई हो। आखिर क्यों? कौन ज़िम्मेदार है इस लापरवाही का? क्या केवल वह ठेकेदार जिसने मरम्मत नहीं की, या वह अधिकारी जिसने आंखें मूंद लीं?
एफआईआर एक शुरुआत है, मगर काफी नहीं
जो एफआईआर दर्ज हुई है, वह ज़रूरी है। मगर सिर्फ एक जांच से न तो रवि वापस आएगा, न ही ये सिस्टम सुधरेगा। जरूरत है—ईमानदार आत्ममंथन की, कठोर जवाबदेही की, और ठोस एक्शन की। जांच अधिकारी को ये सिर्फ एक केस न लगे, बल्कि ये एक प्रतीक हो हर उस लापरवाही का, जो रोज़ाना किसी छात्र, किसी मरीज, किसी डॉक्टर की जान को दांव पर लगा रही है।
हड़ताल और ज़िम्मेदारी—एक दोधारी तलवार
हड़ताल पर बैठे वे डॉक्टर भी खुद से पूछें—क्या हम उस सिस्टम का हिस्सा नहीं हैं जो रवि को निगल गया? अगर कल एक मरीज खुली वायरिंग के कारण मर जाए, तो क्या हम ये कहकर बच जाएंगे कि हम सिर्फ इलाज करते हैं, मरम्मत नहीं? नहीं। ये समय खुद को अलग दिखाने का नहीं, बल्कि खुद को सुधारने का है।
अच्छे लोगों से आशा है, मगर…
प्राचार्य डॉ. विपिन माथुर और अधीक्षक डॉ. आर.एल. सुमन, दोनों को शहर एक ईमानदार और समर्पित नेतृत्व के रूप में जानता है। जिला कलेक्टर नमित मेहता भी संवेदनशील अधिकारी माने जाते हैं। लेकिन अब संवेदना काफी नहीं, अब कार्य चाहिए। अब सिर्फ बयान नहीं, परिवर्तन चाहिए। अब सिर्फ आंसू नहीं, एक्शन चाहिए।
समाधान की ओर कुछ कदम…
एमबी अस्पताल और आरएनटी मेडिकल कॉलेज का मौजूदा ढांचा अब इस शहर की जनसंख्या के दबाव को झेलने में असमर्थ हो चुका है। अजमेर की तरह कायड़ मॉडल को अपनाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। बड़ी टीबी अस्पताल में पड़ी खाली जमीन को मेडिकल उपयोग में लाया जाना चाहिए।
लेकिन इन विचारों को सिर्फ ‘रिपोर्ट फाइल’ में न सुलाया जाए। यह समय है कि प्रशासन, नीति-निर्माता और डॉक्टर समुदाय मिलकर उस रवि की मौत को एक मोड़ बना दें—जहां से व्यवस्था में नई जान फूंकी जाए।
और अंत में…
डॉ. रवि शर्मा चला गया। उसके सपने, उसके स्टेथोस्कोप, उसकी आंखों में चमक अब इतिहास बन चुके हैं। मगर अब भी हम नहीं जागे, तो हर रवि के साथ एक और भविष्य मरेगा, एक और मां शोक में डूबेगी, एक और देश अपना हीरा खो देगा।
इसलिए नहीं कि मौत पहली बार हुई, बल्कि इसलिए कि इस मौत में जीते-जागते सिस्टम की पोल खुली है।
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