रिपोर्टर: मौके से लाइव
स्थान: लकोड़ा गांव, खेरवाड़ा (उदयपुर)
बारिश की रात और अचानक मचा कोहराम
सोमवार की रात उदयपुर जिले का खेरवाड़ा इलाका बारिश से तरबतर था। हवा में ठंडक थी और आसमान लगातार गरज रहा था। लोग अपने-अपने घरों में दुबके बैठे थे। तभी करीब 10:30 बजे लकोड़ा गांव के पास से गुज़र रहे नाले से अचानक चीख-पुकार सुनाई दी।
“कार गिर गई… कोई बचाओ…”
यह आवाज़ सुनते ही गांववाले टॉर्च और मोबाइल की रोशनी लेकर दौड़ पड़े। सामने का दृश्य किसी बुरे सपने जैसा था — एक कार तेज़ बहाव में फंसी थी और उसमें बैठे लोग मदद के लिए बेतहाशा चिल्ला रहे थे।
“शीशा तोड़ो… नहीं तो डूब जाओगे”
कार में कुल पाँच लोग सवार थे। पानी कार को बहाने की कोशिश कर रहा था। अचानक कार के अंदर से जोर की आवाज़ आई — शीशा टूट चुका था। दो युवक टूटे शीशे से बाहर निकलने में सफल हो गए। उनकी सांसें तेज़ थीं, शरीर कांप रहा था।
लेकिन अंदर फंसे तीन लोग बाहर निकल नहीं पाए। उनकी चीखें पानी के शोर में दबने लगीं। बाहर खड़े लोग मदद करना चाहते थे, लेकिन उफनते नाले का बहाव इतना खतरनाक था कि कोई करीब जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
ग्रामीण रमेश (प्रत्यक्षदर्शी) ने बताया —
“हम लोग रस्सी लेकर पहुंचे थे, पर पानी इतना तेज था कि पास जाना मौत को दावत देने जैसा था। हमारी आंखों के सामने तीन लोग डूबते चले गए और हम कुछ नहीं कर पाए।”
मौके पर मातम और बेबसी
जैसे-जैसे मिनट बीत रहे थे, नाले के किनारे लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। हर कोई बेसब्र था, लेकिन सब असहाय। बच्चों और महिलाओं की चीखें माहौल को और डरावना बना रही थीं।
कार कुछ देर बहाव में झूलती रही और फिर पूरी तरह पानी में समा गई। अब सिर्फ अंधेरा, बारिश और सिसकियां बची थीं।
पुलिस और प्रशासन की हलचल
घटना की खबर तुरंत खेरवाड़ा थाना और प्रशासन तक पहुंचाई गई। थोड़ी ही देर में ऋषभदेव डिप्टी राजीव राहर और एएसआई दिग्विजय सिंह पुलिस जाब्ते के साथ मौके पर पहुंचे।
पुलिस ने गांववालों को किनारे हटाया और रेस्क्यू टीम को बुलवाया।
उदयपुर से एसडीआरएफ (State Disaster Response Force) की टीम रात करीब 12:30 बजे घटनास्थल पर पहुंची। तब तक करीब दो घंटे गुजर चुके थे।
अंधेरे और बारिश के बीच चला रेस्क्यू
रात का अंधेरा, लगातार बरसात और नाले का तेज बहाव — यह सब रेस्क्यू को बेहद मुश्किल बना रहा था। फिर भी एसडीआरएफ के जवान पानी में उतरे। टॉर्च की रोशनी और रस्सियों की मदद से खोजबीन शुरू हुई।
करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद कार को बाहर निकाला गया। कार बाहर आते ही वहां मौजूद लोगों की सांसें थम गईं। जैसे सबको यकीन हो गया कि अब जिंदा कोई नहीं बचेगा।
जवानों ने कार से दो युवकों के शव निकाले। चारों तरफ सन्नाटा छा गया। किसी महिला ने चीख मारकर रोना शुरू कर दिया, तो किसी पिता की आंखें पथरा गईं।
“मेरे बेटे को निकालो…”
शव बाहर आते ही मातम का शोर गूंज उठा। एक महिला अपने बेटे की लाश देखकर बेहोश होकर गिर पड़ी। लोग उसे संभालने लगे।
गांव का हर शख्स सिसक रहा था।
तीसरे युवक का शव अब तक नहीं मिला था। एसडीआरएफ ने खोज जारी रखने का भरोसा दिया। पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा और परिजनों को सांत्वना दी।
बारिश बनी इस हादसे की असली वजह
उदयपुर और आसपास के इलाकों में तीन दिन से लगातार बारिश हो रही है। नदी-नाले उफान पर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि लकोड़ा का यह नाला सामान्य दिनों में बिल्कुल शांत रहता है। लोग यहां से रोज़ाना गुजरते हैं।
लेकिन बारिश ने हालात बदल दिए। पानी का स्तर अचानक इतना बढ़ गया कि कोई अंदाजा नहीं लगा सका।
इसी वजह से कार का संतुलन बिगड़ा और हादसा हो गया।
गांव का माहौल — खामोशी और डर
हादसे के बाद से लकोड़ा गांव में अजीब सी खामोशी है। लोग बार-बार नाले के किनारे जाकर खड़े हो जाते हैं, शायद उम्मीद में कि तीसरे युवक का कोई सुराग मिल जाए।
गांव की बुजुर्ग महिला कमला देवी ने कहा —
“ऐसा हादसा हमने पहले कभी नहीं देखा। हमारी आंखों के सामने बच्चे डूब गए… भगवान किसी को ऐसा दिन न दिखाए।”
प्रशासन की चिंता और चेतावनी
घटना के बाद प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि उफनते नालों और पुलों से दूर रहें। बारिश के मौसम में सावधानी ही सबसे बड़ा उपाय है।
पुलिस अधिकारियों ने भी माना कि लगातार बारिश के बीच इस तरह के हादसे की संभावना बढ़ जाती है। जल्द ही इलाके में बैरिकेड्स और चेतावनी बोर्ड लगाए जाएंगे ताकि लोग खतरे वाले रास्तों पर न जाएं।
हादसे से उठे सवाल
इस घटना ने एक बार फिर सुरक्षा और सतर्कता को लेकर सवाल खड़े किए हैं:
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क्या बारिश के दिनों में खतरनाक रास्तों को बंद नहीं किया जाना चाहिए?
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क्या प्रशासन को पहले से ऐसे संवेदनशील नालों और पुलों पर चेतावनी संकेत लगाने चाहिए?
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क्या ग्रामीणों को ऐसे हालात से निपटने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए?
लोगों का कहना है कि अगर समय रहते चेतावनी दी जाती, तो शायद यह पांच युवकों की कार उस नाले में नहीं उतरती।
रातभर गूंजती रही सिसकियां
घटना के बाद से रातभर गांव में नींद नहीं आई। जिनके घरों में हादसे के शिकार युवक रहते थे, वहां मातम पसरा रहा। रिश्तेदार दूर-दूर से पहुंचने लगे।
नाले के किनारे अब भी लोग खड़े थे, मोबाइल की टॉर्च जलाकर पानी की तरफ देखते रहे। हर किसी की नजरें उस तीसरे युवक की तलाश पर टिकी थीं।
इंसानी जज़्बे और दर्द की कहानी
इस हादसे में जहां मौत का मंजर था, वहीं इंसानी जज़्बा भी दिखाई दिया। ग्रामीणों ने अपनी जान की परवाह किए बिना रस्सी और टॉर्च लेकर बचाने की कोशिश की।
एसडीआरएफ के जवानों ने भी रातभर अपनी ड्यूटी निभाई।
लेकिन किस्मत इतनी बेरहम थी कि तीन जिंदगियां पानी में समा गईं।
उदयपुर का यह हादसा सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं है, बल्कि यह चेतावनी भी है कि प्रकृति के आगे इंसान कितना बेबस हो सकता है। बारिश और नालों का उफान किसी भी पल जानलेवा साबित हो सकता है।
लकोड़ा गांव की यह रात हमेशा याद रखी जाएगी — एक ऐसी रात, जब पांच लोग हंसी-खुशी सफर पर निकले थे, लेकिन मंज़िल तक सिर्फ दो ही पहुंच पाए। बाकी की कहानी अब सिसकियों और यादों में दर्ज रह गई।
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