गुजरात हाई कोर्ट ने यूसुफ़ पठान की याचिका खारिज की, कहा– सेलिब्रिटी की जवाबदेही ज़्यादा होती है…क्या है पूरा मामला यहां पढ़िए

 

अहमदाबाद/वडोदरा।

गुजरात हाई कोर्ट ने पूर्व क्रिकेटर और मौजूदा तृणमूल कांग्रेस सांसद यूसुफ़ पठान को सरकारी जमीन आवंटन के मामले में बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने वडोदरा में नगर निगम की ज़मीन पर कब्ज़ा छोड़ने का आदेश देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी।

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ़ कहा कि मशहूर हस्तियां और सेलिब्रिटी समाज के लिए रोल मॉडल होते हैं, इसलिए उनकी जवाबदेही आम नागरिकों से कहीं ज़्यादा है। यदि उन्हें क़ानून तोड़ने के बाद भी रियायत दी जाए तो इससे न्याय व्यवस्था और समाज दोनों में ग़लत संदेश जाएगा।

यह मामला मार्च 2012 से जुड़ा है, जब यूसुफ़ पठान ने वडोदरा नगर निगम से 978 वर्ग मीटर का एक प्लॉट अलॉट कराने की मांग की थी। उनका कहना था कि यह प्लॉट उनके बंगले से सटा हुआ है और सुरक्षा कारणों से उन्हें आवंटित किया जाए।

30 मार्च 2012 को नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी ने वैल्यूएशन के बाद यह प्लॉट उन्हें 57,270 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से देने की सिफारिश की।

कुछ महीने बाद नगर निगम की जनरल बॉडी ने भी इस पर सहमति जताई और मामला राज्य सरकार को भेज दिया।

लेकिन, जून 2012 में गुजरात सरकार ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया।

इसके बावजूद यूसुफ़ पठान इस ज़मीन पर बने रहे और कब्ज़ा बनाए रखा।

2024 में नई कार्रवाई

कई सालों तक यह मामला ठंडे बस्ते में रहा। लेकिन जून 2024 में वडोदरा नगर निगम ने अचानक नोटिस जारी कर यूसुफ़ पठान को प्लॉट खाली करने को कहा।

इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए पठान ने 20 जून 2024 को गुजरात हाई कोर्ट का रुख़ किया।

यूसुफ़ पठान की दलील

यूसुफ़ पठान ने अपनी याचिका में कहा-यह मामला 10 साल से ज़्यादा पुराना है। नगर निगम को सीधे अतिक्रमण हटाने का आदेश देने के बजाय कारण बताओ नोटिस जारी करना चाहिए था। उन्होंने पेशकश की कि वह यह ज़मीन मौजूदा बाज़ार भाव पर ख़रीदने को तैयार हैं। चूंकि यह ज़मीन नगर निगम की है, राज्य सरकार को इसके आवंटन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

पठान की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता यतिन ओज़ा ने कोर्ट में कहा कि नगर निगम ने 12 साल तक कोई कदम नहीं उठाया और अचानक 2024 में कार्रवाई शुरू कर दी। ओज़ा ने तर्क दिया कि यह कार्रवाई पठान के पश्चिम बंगाल से सांसद बनने के बाद की गई और इस मामले की ‘टाइमिंग’ अहम है।

हाई कोर्ट का फैसला

जस्टिस मौना एम. भट्ट ने 28 पेज के आदेश में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा-“सेलिब्रिटी समाज में रोल मॉडल होते हैं। क़ानून का उल्लंघन करने के बावजूद उन्हें रियायत देना न्याय व्यवस्था पर जनता के विश्वास को कम करता है।”

याचिका खारिज की जाती है, क्योंकि याचिकाकर्ता (यूसुफ़ पठान) को उस भूखंड पर कब्ज़ा जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिस पर उन्होंने अतिक्रमण किया है।

नगर निगम का पक्ष : नगर निगम की ओर से अधिवक्ता मौलिक नानावती ने दलील दी कि पठान का ज़मीन पर कोई क़ानूनी अधिकार नहीं है। न तो अलॉटमेंट ऑर्डर जारी हुआ और न ही कोई पेमेंट किया गया। केवल लंबे समय तक कब्ज़ा रखने से संपत्ति पर अधिकार नहीं मिल जाता।

हां, यह संभव है कि नीलामी में अगर पठान की बोली सबसे ऊंची हो तो उन्हें प्राथमिकता दी जाए।

यूसुफ़ पठान : क्रिकेट से संसद तक

यूसुफ़ पठान भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व ऑलराउंडर हैं और 2007 टी20 वर्ल्ड कप तथा 2011 वनडे वर्ल्ड कप विजेता टीम का हिस्सा रहे। उन्होंने आईपीएल में सबसे तेज़ भारतीय शतक (37 गेंदों पर) लगाने का रिकॉर्ड बनाया।

2024 में राजनीति में कदम रखते हुए उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से बहरामपुर (पश्चिम बंगाल) सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी को मात दी।

गुजरात हाई कोर्ट का यह फ़ैसला साफ़ संदेश देता है कि क़ानून के मामले में मशहूर हस्तियों को कोई विशेष छूट नहीं मिलेगी। सेलिब्रिटी का दर्जा उन्हें अधिक जवाबदेही देता है, न कि रियायत।

यह मामला सिर्फ़ एक भूखंड विवाद भर नहीं है, बल्कि सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही और नैतिकता की कसौटी भी है।

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