महालक्ष्मी दीपोत्सव 2025 (18 से 22 अक्टूबर) : जहां भक्ति का दीप जलता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है

उदयपुर। झीलों की नगरी, मेवाड़ की आत्मा और श्रद्धा का केंद्र — महालक्ष्मी मंदिर एक बार फिर आलोक और आस्था से जगमगाने को तैयार है। 18 से 22 अक्टूबर तक पाँच दिनों तक चलने वाला दीपोत्सव न केवल एक धार्मिक पर्व होगा, बल्कि यह उदयपुर की उस सांस्कृतिक परंपरा का उत्सव भी बनेगा, जो सदियों से भक्ति, सौंदर्य और समृद्धि की मिसाल रही है।

जब मंदिर की आरती के स्वर हवाओं में गूंजेंगे, जब हजारों दीपों की ज्योति जल उठेगी, तब ऐसा प्रतीत होगा मानो स्वयं महालक्ष्मी माता इस धरती पर अवतरित होकर भक्तों के द्वार आशीष बरसाने आई हों।

श्रद्धा से सेवा तक — मंदिर में तैयारियाँ पूर्ण

श्रीमाली जाति संपत्ति व्यवस्था ट्रस्ट के अध्यक्ष भगवतीलाल जी दसोत्तर ने बताया कि इस बार का दीपोत्सव अधिक भव्य और सुव्यवस्थित होगा। मंदिर परिसर में स्वच्छता, सुरक्षा, प्रकाश व्यवस्था और दर्शन पंक्ति के लिए अलग-अलग समितियाँ बनाई गई हैं।
साथ ही अन्नकूट प्रसाद की सेवा के लिए विशेष दल तैनात रहेगा, ताकि हर भक्त को प्रसाद और दर्शन का पूर्ण लाभ मिले। उनके अनुसार, इस वर्ष लगभग चार से पांच लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है, और ट्रस्ट ने हर स्तर पर सुचारु व्यवस्था की है — ताकि आस्था की इस यात्रा में किसी को कोई असुविधा न हो।

पांच दिवसीय दीपोत्सव का भव्य क्रम

18 अक्टूबर — धनतेरस

सुबह 4:30 बजे से रात्रि 12 बजे तक दर्शन होंगे। माता महालक्ष्मी को तीन बार अलग-अलग वेशभूषा धारण कराई जाएगी और विशेष पुष्प श्रृंगार से सजाया जाएगा। मंदिर के आंगन में दीपों की पंक्तियाँ ऐसे दमकेंगी मानो स्वयं धन की देवी आ रही हों।

19 अक्टूबर — रूप चौदस

इस दिन भी दर्शन प्रातः 4:30 बजे से रात्रि 12 बजे तक रहेंगे। माताजी का विशेष श्रृंगार, तीन वेशभूषाएँ और भक्तों की भीड़ – हर चेहरा आस्था से दीप्त होगा। मंदिर परिसर में “जय लक्ष्मी माता” के जयकारे गूंजते रहेंगे।

21 अक्टूबर — दीपावली

ट्रस्टी जतिन श्रीमाली के अनुसार, इस दिन सुबह 4:00 बजे माता का स्वर्णाभूषण श्रृंगार किया जाएगा। पूरे मंदिर को दीपों, पुष्पों और रंगोलियों से ऐसे सजाया जाएगा कि हर कोना स्वर्गीय आभा से भर उठे। रात्रि 1:30 से 3:00 बजे तक दर्शन स्थगित रहेंगे, इसके बाद 22 अक्टूबर की भोर 3:00 बजे से पुनः दर्शन प्रारंभ होंगे। इस रात्रि मंदिर की हर दीवार, हर दीपक और हर सुर आत्मिक प्रकाश का संचार करेगा।

22 अक्टूबर — अन्नकूट दर्शन एवं समापन

भोर 3:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक दर्शन रहेंगे। सायं 5:00 बजे अन्नकूट दर्शन और महाआरती के साथ दीपोत्सव का भव्य समापन होगा। भक्ति, प्रेम और कृतज्ञता की लहरों में डूबे भक्तों के मन में केवल एक ही भाव रहेगा — “मां आई थीं… और सबके जीवन में ज्योति भर गईं।”

दीपावली और महालक्ष्मी पूजन का दिव्य अर्थ

धार्मिक परंपराओं में कहा गया है — “दीप जलाना केवल अंधकार मिटाना नहीं, बल्कि अपने भीतर के लोभ, क्रोध और अहंकार को बुझाना है।” माता महालक्ष्मी की आराधना उसी स्थान पर फल देती है जहां स्वच्छता, सत्य और भक्ति का वास होता है। दीपावली की रात्रि को देवी महालक्ष्मी पृथ्वी लोक पर विचरण करती हैं — वह वहीं ठहरती हैं जहाँ दीपक का प्रकाश केवल बाहर नहीं, बल्कि भीतर भी जलता है।

ट्रस्टी जतिन श्रीमाली बताते हैं कि मंदिर की देवी गजलक्ष्मी स्वरूपा हैं — माता गजानन पर विराजमान हैं, जो समृद्धि, शक्ति और स्थायित्व का प्रतीक है। यही कारण है कि मेवाड़ में दीपावली का अर्थ केवल उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागृति है।

महालक्ष्मी मंदिर — मेवाड़ की श्रद्धा का स्वर्ण अध्याय

भगवतीलाल जी दसोत्तर बताते हैं कि इस मंदिर की प्राचीनता और दिव्यता ऐसी है कि हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के प्रांगण में जब दीप जलता है, तो वह केवल मिट्टी के दीये की लौ नहीं होती — वह भक्ति का, विश्वास का और समृद्धि का प्रतीक बनकर हर मन में प्रकाश फैलाती है।

इस बार भी मंदिर और आसपास का पूरा क्षेत्र दीपों की रेखाओं, पुष्पों की सुगंध और भक्ति संगीत की मधुर लहरों से सराबोर रहेगा। आकाश में उड़ते दीपकों के साथ ऐसा लगेगा मानो पूरा मेवाड़ “जय महालक्ष्मी माता” के सुर में गा रहा हो।

आस्था का संदेश

“जहां भक्ति का दीप जलता है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता है।” “जो मन निर्मल, कर्म पवित्र और हृदय दयालु रखता है — वही सच्चा दीप जलाता है, जिसमें माता महालक्ष्मी सदा निवास करती हैं।”

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