राजनीतिक सरगर्मी तेज़ — नेताओं के आरोप, बेरोज़गारी से लेकर चुनाव आयोग तक पर उठे सवाल

देश की सियासत एक बार फिर आरोपों और जवाबी हमलों से गर्म है। कोई बेरोज़गारी की गूंज उठा रहा है, तो कोई चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल कर रहा है। इसी बीच अदालतों से राहत पाने वाले नेता भी चर्चा में हैं। आइए देखते हैं, आज की प्रमुख राजनीतिक हलचलें और उनके मायने —

जयराम रमेश ने लगाया आरोप — “आईआईटी से पढ़ने वाले भी बेरोज़गारी की मार झेल रहे”

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने देश की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते हुए मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने दावा किया कि अब देश के प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IITs) से पढ़ने वाले छात्रों को भी नौकरी और सैलरी दोनों मोर्चों पर भारी गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।

रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा —“आईआईटी के नए आंकड़े, जिन्हें मोदी सरकार ने ख़ुद तैयार किया लेकिन जारी नहीं किया, बताते हैं कि अंतिम वर्ष के बी.टेक छात्रों की कैंपस प्लेसमेंट दर और औसत सैलरी पैकेज दोनों में भारी गिरावट आई है।”

उन्होंने दावा किया कि 2021-22 से 2023-24 के बीच सात पुराने IITs (खड़गपुर, बॉम्बे, मद्रास, कानपुर, दिल्ली, गुवाहटी और रुड़की) में प्लेसमेंट 11 प्रतिशत अंकों तक घटे हैं और औसत सैलरी में भी 0.2 लाख रुपये की गिरावट दर्ज की गई है।
अन्य आठ IITs में भी लगभग 9 प्रतिशत प्लेसमेंट की गिरावट और 2.2 लाख रुपये की सैलरी कमी दर्ज की गई।

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी 23 IITs में B.Tech छात्रों के प्लेसमेंट में करीब 10% की गिरावट दर्ज की गई है — जो पहले 90% से अधिक थी, अब घटकर लगभग 80% पर आ गई है।

रमेश ने कहा कि यह “देश में बढ़ती बेरोज़गारी और वेतन ठहराव की दोहरी मार” का सबूत है, जो अब “प्रीमियर संस्थानों” तक पहुँच चुकी है।

बिहार चुनाव पर कपिल सिब्बल का वार — “रेलवे बीजेपी वोटरों के लिए ट्रेन चला रहा था”

राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बिहार चुनाव को लेकर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया कि हरियाणा से चार स्पेशल ट्रेनों के ज़रिए करीब छह हज़ार लोगों को बिहार भेजा गया, जो “बीजेपी के समर्थक वोटर” थे।

सिब्बल ने कहा —“ये ट्रेन केवल बीजेपी के वोटरों को करनाल से ले जा रही थी और उसका खर्च बीजेपी उठा रही थी। रेलवे जवाब नहीं देगा, क्योंकि ये साफ़ तौर पर चुनावी गड़बड़ी का मामला है।”

रेल मंत्रालय ने जवाब में कहा कि त्योहारों के मौसम में 12 हज़ार स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, जिनमें से लगभग 2 हज़ार का समय निर्धारित नहीं था। रेलवे ने स्पष्ट किया कि जब किसी स्टेशन पर भीड़ बढ़ती है, तो तत्काल ट्रेनें चलाई जाती हैं — यह कोई चुनावी साजिश नहीं, बल्कि सामान्य व्यवस्था का हिस्सा है। सिब्बल के दावों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं की है।

कपिल मिश्रा को बड़ी राहत — “दिल्ली दंगे” की जांच से मुक्त

दिल्ली के कानून मंत्री और बीजेपी नेता कपिल मिश्रा को 2020 के “दिल्ली दंगे” के मामले में सेशन कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। राउज़ एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज ने उन्हें जांच से मुक्त कर दिया। यह आदेश यमुना विहार निवासी मोहम्मद इलियास की याचिका पर आया था, जिसमें मिश्रा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। ‘बार एंड बेंच’ के अनुसार, ट्रायल कोर्ट ने पहले मिश्रा की भूमिका की जांच के आदेश दिए थे, लेकिन अब अदालत ने कहा कि मिश्रा की संलिप्तता साबित करने के पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं।

इस फैसले के बाद बीजेपी नेताओं ने अदालत के फैसले को “सच्चाई की जीत” बताया, जबकि विपक्ष ने इसे “न्याय प्रक्रिया पर सवाल” कहा।

तेजस्वी यादव का हमला — “बीजेपी पाप करती रहेगी और चुनाव आयोग ढँकता रहेगा”

राजद नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के चार दिन बाद भी वोटिंग डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया। तेजस्वी ने कहा — “पहले तो उसी दिन बता दिया जाता था कि कितने पुरुषों और महिलाओं ने वोट दिया। अब टेक्नोलॉजी का ज़माना है, फिर भी चार दिन बाद तक आंकड़े नहीं आए — आख़िर डेटा क्यों छिपाया जा रहा है?”

उन्होंने आरोप लगाया कि “बीजेपी अपने पाप करती रहेगी और चुनाव आयोग उन्हें ढँकता रहेगा। आयोग अब एक निष्पक्ष संस्था नहीं, बल्कि सरकार का औज़ार बन गया है।”

पहले चरण के मतदान में आयोग ने कहा था कि राज्य में 64.66% मतदान हुआ था, लेकिन विस्तृत जेंडरवार आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए हैं।

तेजस्वी की यह टिप्पणी विपक्षी एकता के बीच उस गुस्से को भी दिखाती है, जो सरकारी संस्थानों की पारदर्शिता पर लगातार उठते सवालों से जुड़ा है।

इन सभी बयानों और घटनाओं से स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में विश्वास, पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल फिर से केंद्र में हैं। बेरोज़गारी से लेकर चुनावी प्रक्रिया तक — हर मोर्चे पर विपक्ष सरकार से जवाब मांग रहा है, जबकि सत्तारूढ़ पक्ष अपनी नीतियों और संस्थागत प्रक्रियाओं के बचाव में खड़ा है। राजनीतिक बहस अब आंकड़ों और भावनाओं दोनों की लड़ाई बन चुकी है — और यही लोकतंत्र का असली चेहरा भी है।

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