नेतागिरी, दावेदारी या सौदेबाजी…उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर घमासान

उदयपुर। चुनावों की सरगर्मियों के बीच यही सबकुछ होता है। बड़े नेताओं से लेकर छुट भैया नेता तक अपनी नेतागिरी से दावा पेश करता है। इस बात को साबित नहीं किया जा सकता है, लेकिन चुनावों में सौदेबाजी होती है, यह आम बात है।

उदयपुर में आने वाले चुनाव राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं के इतने सिर चढ़कर बोल रहे हैं कि फतेहसागर पर मीडिया के एक प्रोग्राम में लोग बहस से हाथापाई तक पर उतर आए।

सच बात यह है कि जो लोग आज जिस नेता के साथ नेतागिरी में उतरे हैं, कल वही, उन्हें कोसेंगे भी। यह बात हर वो सियासत से जुड़ा शख्स जानता भी है। यही सियासत करने वालों का सिद्धांत भी है, इस्तेमाल करो और फेंक दो।

बहरहाल यहां सौदेबाजी के मायने प्रेशर पॉलिटिक्स से है। हर दावेदार अपनी इम्पोटेंस बता कर कुछ लाभ लेना चाहता है। नेतागिरी में यह सही भी है क्योंकि चुनाव जीतने के बाद एमएलए और एमपी के सामने कार्यकर्ताओं का कोई वजूद नहीं रहता है। फिर कार्यकर्ता दूर हो जाते हैं और चाटुकार उनके आसपास दिखाई देने लगते हैं।

भाजपा व कांग्रेस में जो रणनीति अपनाई जा रही है, उससे नहीं लगता है कि किसी सामान्य या छुट भैया नेता के हाथ कुछ लगेगा। मध्यप्रदेश में भाजपा ने अपने उन सांसदों व केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा है जो कभी चुनाव हारे नहीं हैं। अब राजस्थान में भी इसी रणनीति पर काम चल रहा है। राज्य में केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शक्तावत, कैलाश चौधरी, सीपी जोशी, बाबा बालकनाथ जैसे चेहरों को विधानसभा में उतारा जा सकता है।

ऐसे में कांग्रेस भी अपने दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतार सकती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जो राजस्थान के ही रहने वाले हैं, उदयपुर शहर विधानसभा सीट के दावेदारों की सूची में शामिल हैं। इसी तरह डॉक्टर सीपी जोशी नाथद्वारा से चुनाव लड़ने वाले हैं। कांग्रेस के पूर्व सांसदों को भी चुनाव में उतारा जा सकता है।

आने वाला समय ही बताएगा कि चुनाव में किसको शह मिलती है और कौन मात खाने वाला है।

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