उदयपुर और चित्तौड़गढ़ में कांग्रेस की करारी हार: नेतृत्व और रणनीति की कमी

उदयपुर। पिछले सत्रह वर्षों में जिस संभागीय मुख्यालय का नेता मुख्यमंत्री रहा हो और जिन लोकसभा क्षेत्रों से कांग्रेस लगातार जीतती आई हो, उन उदयपुर और चित्तौड़गढ़ लोकसभा सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की करारी हार चिंता का विषय है। उदयपुर से ताराचंद मीणा और चित्तौड़गढ़ से उदयलाल आंजना बड़े अंतर से चुनाव हार गए हैं, जबकि इन चुनावों में कोई विशेष लहर नहीं थी और न ही कांग्रेस के खिलाफ कोई व्यापक माहौल था।

हार के कारण:

  1. नेताओं की अदृश्यता: चुनावी मैदान में ताराचंद मीणा और उदयलाल आंजना कहीं भी चुनाव लड़ते हुए दिखाई नहीं दिए। उनकी चुनावी गतिविधियाँ सीमित रहीं और वे अपने ही लोगों में घिरे रहे।
  2. चुनावी प्रबंधन की कमी: उदयपुर और चित्तौड़गढ़ में कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव प्रबंधन में पूरी तरह से विफल रहे। वे विधानसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में असमर्थ रहे।
  3. पहले से हार मान लेना: कई क्षेत्रों में ऐसा लगा जैसे उम्मीदवारों ने नामांकन भरने से पहले ही हार मान ली थी। मेवाड़ के उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, और भीलवाड़ा सीटों पर कांग्रेस ने कोई प्रभावी मुकाबला नहीं किया।
  4. आंतरिक विवाद: कांग्रेस के नेता अपने ही नेताओं की मुखालफत करते नजर आए। कांग्रेस पिछले छह बोर्ड चुनावों में एक बार भी उदयपुर नगर परिषद या निगम में अपना बोर्ड नहीं बना सकी है। चुनिंदा पार्षद ही जीतते हैं और वे भी पार्टी से इतर अपनी राजनीति शुरू कर देते हैं।

जरूरत नए नेतृत्व की:
कांग्रेस को मेवाड़ में नए और प्रभावी नेताओं को तैयार करने की सख्त जरूरत है। पार्टी को अपने आंतरिक विवादों को सुलझाना होगा और चुनावी प्रबंधन में सुधार लाना होगा।

कुल मिलाकर, कांग्रेस को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा और नए नेतृत्व को अवसर देना होगा ताकि भविष्य में बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकें।

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