उदयपुर। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के वंशज और महाराणा प्रताप स्मारक समिति उदयपुर के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ ने कहा है कि महाराणा प्रताप का स्वाभिमानी व्यक्तित्व न सिर्फ मेवाड़, राजस्थान और हिन्दुस्तान अपितु संपूर्ण विश्व के लिए वंदनीय है। हमारे पुरखों ने स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए जो काम किया, यदि हम उन्हीं के कदमों का अनुसरण करते हुए काम करें तो मेवाड़ व देश के लिए इससे बड़ा कार्य कुछ न हो सकता।
डाॅ. मेवाड़ ने यह विचार महाराणा प्रताप की 484 वीं जयंती ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया की पूर्व संध्या पर शनिवार को सिटी पैलेस उदयपुर में राज्य के वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार प्रकाश चंद्र शर्मा के साथ एक परिचर्चा में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि मेवाड़ धरा पर जन्म लेना एक पुण्यार्जन के समान है। सनातनी संस्कृति के जीवंत स्वरूप भारत में जन्में सभी लोग भाग्यशाली हैं परंतु स्वाभिमान की प्रतीक वीर भूमि मेवाड़ में जन्म लेकर हम विशेष सौभाग्यशाली होने का अनुभव करते हैं।
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप चाहते तो वे भी समझौता कर सकते थे परंतु उन्होंने स्वाभिमान के चलते ऐसा न किया। उन्होंने कई चुनौतियों के बीच भी ऐसा निर्णय लिया जो कि हमारे लिए भी गौरव की बात है। वास्तव में महाराणा प्रताप ही स्वतंत्रता शब्द का जन्म देने वाले अमर नायक थे। मेवाड़ पर आक्रांताओं ने भी स्वीकार किया था कि मेवाड़ ने मौत को सस्ता और स्वाभिमान को महंगा कर रखा है।
युवा प्रेरणा लें :
डाॅ.मेवाड़ ने कहा कि प्रताप ने अपने समय में जिन चुनौतियों का सामना किया, उसमें उन्होंने हर वर्ग के लोगों को साथ में रखकर प्रयास किया। व्यक्ति दिल से मन से कार्य करने का प्रयास करता है तो सफलता मुमकीन होती है। उन्होंने युवाओं को इस प्रकार के व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं, हमारे आसपास ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जो हमें एक उचित मार्ग पर ले जावें। उन्होंने कहा कि भारत के चप्पे-चप्पे में प्रेरणा स्रोत मिल जाएंगे।
दुर्लभ है चेटक और रामप्रसाद जैसी स्वामीभक्ति की मिसाल :
इस मौके पर डाॅ. मेवाड़ ने कहा कि महाराणा प्रताप का जिक्र आते ही उनके स्वामीभक्त सेवक चेटक घोड़े और रामप्रसाद हाथी का अनायास ही स्मरण हो आता है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व के इतिहास को खंगाल ले तो भी इस प्रकार के मूक प्राणियों की मिसाल पाना दुर्लभ होगा। उन्होंने बताया कि चेटक और रामप्रसाद ने अपनी जान पर खेलकर भी महाराणा प्रताप को दुश्मनों के वार से सुरक्षित रखा। इस प्रकार की स्वामीभक्ति से उन्होंने पूरे देश-दुनिया में अपना नाम अमर कर दिया है।
चुनौतियों से सामना करना सिखाता है मेवाड़ का इतिहास :
उन्होंने कहा कि आज के इस युग में हर व्यक्ति को हर कदम पर अलग-अलग प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चुनौतियों को निबटने के दौरान कई प्रकार के रास्ते सामने दिखाई देते हैं परंतु बप्पा रावल से लेकर आज तक का मेवाड़ का इतिहास हमें सिखाता है कि इन परिस्थितियों में स्वाभिमान के मार्ग पर चलकर चुनौतियों का सामना करें। उन्होंने अपने गौरवमयी इतिहास पर कहा कि हम या हमारा मित्र अपने देश, समाज और व्यक्ति विशेष की महानता का जिक्र या स्मरण करें तो ठीक है परंतु हमारी छाती उस वक्त चौढ़ी हो जाती है जब ऐसा कोई जिक्र हमारा दुश्मन करें।
आक्रांताओं ने भी स्वीकारा मेवाड़ को गुलाम बनाना असंभव :
डाॅ. मेवाड़ ने एक घटना का जिक्र किया कि जब रामप्रसाद हाथी को दुश्मनों ने कैद कर लिया और आक्रांताओं ने अपने सैनिकों को इसकी निगरानी का जिम्मा सौंपा तो उन सैनिकों ने आपस में चर्चा करते हुए कहा कि इस हाथी को पकड़े हुए 10 से 15 दिन हो गए और इसने अब तक अन्न-जल ग्रहण न करते हुए गुलामी स्वीकार न कर देश और स्वामी के प्रति अपनी भक्ति का परिचय दिया है। सैनिकों के मध्य यह भी चर्चा हुई कि जिस मेवाड़ के पशुओं को हम गुलाम न बना पा रहे हैं आखिर उस मेवाड़ के इंसानों को गुलाम कैसे बना पाएंगे ?
मेवाड़ ने स्वाभिमान का गहना पहना :
उन्होंने कहा कि लोगों ने अपने स्वाभिमान को खूंटी पर टांगकर, हीरे-जवाहरातों पर तुलकर काम करना पसंद किया होगा परंतु मेवाड़ के लोगों ने अपने शरीर पर हीरे-जवाहरातों के स्थान पर स्वाभिमान का गहना पहनकर काम किया है। हमें इस बात की खुशी और गर्व है कि विकट परिस्थितियों के वश में आने के बाद भी हमारे पुरखों ने अपनी आत्मा या स्वाभिमान का कभी सौदा नहीं किया। इस बात के लिए हम अपने पुरखों का जितना आभार जताएं, जितनी कृतज्ञता दर्शाये वो कम ही होगा।
महाराणा प्रताप जयंती पर संदेश :
डाॅ. मेवाड़ ने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयंती पर आह्वान किया कि हमारे पुरखों ने जो कार्य किया उसका सुख हमारा देश, प्रदेश, आप-हम और मेवाड़ भोग रहा है और यह हमारा दायित्व है कि हम उनको और अधिक बेहतर रखें। उन्होंने मेवाड़ में जल प्रबंधन सहित विभिन्न साधन-सुविधाओं के विस्तार और कला-संस्कृति के संरक्षण के कार्यों को इस अंचल के लिए किए गए महत्वपूर्ण योगदान बताया और इसे बरकरार रखने का बात कही।
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