झीलों को बचाना कितना मुश्किल : 25 सालों से नि:स्वार्थ संघर्ष जारी, सितारा होटलों से ज्यादा जरूरी है पीने का पानी, प्रकृति का संरक्षण

Editor’s comment : उदयपुर में प्राकृतिक सौंदर्य को बचाना है तो यहां की झीलें और पहाड़ों का संरक्षण बहुत जरूरी है। जो लगातार काटे और बर्बाद किए जा रहे हैं। नफरती सोच की वजह जैसे कन्हैयालाल का कत्ल किया गया, उसी प्रकार प्रकृति विरोधी विकास वाली सोच यहां पहाड़ों का गला घोंट रही है। चंद लोग जो नफरत को खत्म करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वैसे ही प्रकृति प्रेमी इन पहाड़ों व झीलों को बचाने में लगे हैं। एक बार जरा सोच कर देखिए इस नाव में सवार चंद लोग, जिनके पास बहुत ज्यादा ताकत, पैसा या पावर नहीं है, 20 सालों से यह कार्य नहीं कर रहे होते तो आज झीलों की क्या दुर्दशा होती। झीलों को बचाने में ऐसे कुछ लोग और भी हैं जो 25 सालों से कभी कोर्ट में तो कभी सड़क पर लड़ाई लड़ रहे हैं। यह बात सत्य है कि यदि उदयपुर के आसपास इसी तरह जलाशयों को बर्बाद किया गया और पहाड़ों को काटा गया तो याद रखिए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की तरह तबाही कभी भी आ सकती है। तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

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होटल हित से पहले रखें हिल और झील हित को

वेटलैंड नियम चार की अनुपालना करवाये प्रशासन

सड़क मार्ग वाली होटलों को नही हो झील से परिवहन की अनुमति

पहाड़ियों की कटाई पर अंकुश लगाए प्रशासन

उदयपुर। झील प्रेमियों ने जिला कलेक्टर व राज्य सरकार से आग्रह किया है कि होटल हित से पहले हिल ( पहाड़ी) व झील हित को रखा जाए।

रविवार को आयोजित झील संवाद में झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि झीलें व पहाड़ पर्यटन का मुख्य आधार है। पानी, पेड़, पहाड़ व पर्यावरण बने रहे तो पर्यटन पनपेगा और इसी से होटल – रिसॉर्ट व्यवसाय बना रहेगा।

मेहता ने कहा कि उदयपुर की समस्त झीलें वेटलैण्ड है तथा भारत सरकार के वेटलैण्ड संरक्षण नियम के नियम चार के प्रावधानों के अनुरूप संरक्षित सुरक्षित श्रेणी में है । जिला प्रशासन को तुरन्त इनके अधिकतम भराव तल सीमा से पचास मीटर क्षेत्र तथा जोन ऑफ़ इन्फ्लुएंस में हो रहे समस्त व्यावसायिक निर्माणों व प्रदूषणकारी गतिविधियों को रुकवा कर न्यायालयी निर्णयों की अनुपालना करवानी चाहिए।

झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि पेयजल प्रदान करने वाली एवं पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील झीलों के हित मे सड़क मार्ग से जुड़ी होटलों को नाव से पर्यटक परिवहन की अनुमति नही दी जानी चाहिए । झीलों में रेस्कयू बोट को छोड़कर ईंधन चालित समस्त नावों पर प्रतिबंध कर देना चाहिए । चप्पू व पैडल वाली नावें पर्यटन को बढ़ाएगी व पर्यावरण को सुरक्षित रखेगी।

गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झीलों में नावों की संख्या नियंत्रित की जाए तथा उनके रुट का भी निर्धारण हो ।नाव भ्रमण क्षेत्र निर्धारित करने के लिए फ्लोट लगाये जाएँ ताकि कोई भी नाव इसका उल्लंघन नही कर सके। गणगौर बोट से बड़ी साइज की कोई बोट अनुमत नही की जाए।

पर्यावरण विद कुशल रावल ने कहा कि झीलों के व कुल जल फैलाव के केवल दस प्रतिशत क्षेत्र में ही नावों के संचालन की अनुमति हो ताकि शेष झील क्षेत्र में देशी प्रवासी पक्षी व जलचरों को सुरक्षा मिल जैव विविधता पोषित होती रहे।

वरिष्ठ नागरिक द्रुपद सिंह व रमेश चंद्र राजपूत ने कहा कि न्यायालयी रोक के बावजूद बड़े पैमाने पर पहाड़ियां काटी जा रही है। यह दुःखद है। पहाड़ियां नही बची तो उदयपुर का पूरा जल तंत्र तहस नहस हो जाएगा।

संवाद से पूर्व स्वरूप सागर घाट के आसपास झील में श्रमदान कर कचरा व विविध प्रकार की गंदगी को निकाला गया।

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