
“मैंने अपने पौधों को पानी दिया, पर्दे गिराए, सूटकेस उठाया… और बिना यह जाने निकल पड़ा कि क्या कभी लौट पाऊंगा।”
तेहरान की गलियों में इन दिनों ख़ामोशी का एक नया शोर गूंज रहा है। राजधानी के कई निवासियों ने शहर छोड़ना शुरू कर दिया है — कुछ अपनों के साथ, कुछ यादों के साथ — लेकिन लगभग सभी अपने पीछे एक आख़िरी झलक छोड़ते जा रहे हैं: अपने घरों की तस्वीरें।
सोशल मीडिया पर एक नया और मार्मिक ट्रेंड उभरा है — “The Last Photo of Home”। यह सिर्फ़ तस्वीरें नहीं हैं, ये खामोश अलविदा हैं, एक डर का इज़हार हैं कि शायद लौटने पर सब कुछ मिट चुका होगा।
पलायन की वो तस्वीरें जो चीखती नहीं, लेकिन बहुत कुछ कह जाती हैं
सोफ़ा पर करीने से रखे कुशन, ड्रॉइंग रूम की टूटी-फूटी सजावट, अलमारी पर टंगा शादी का जोड़ा, खिड़की के पास रखा बच्चों का झूला — लोग अपने इन निजी क्षणों को कैमरे में क़ैद कर रहे हैं और शेयर कर रहे हैं।
एक यूज़र ने लिखा : “मैंने अपनी पूरी मेहनत से बनाई इस जगह को चुपचाप गुडबाय कहा। जब लौटूं, तो ये वैसी ही मिले — बस यही दुआ है।”
दूसरे ने लिखा : “अपने ऑफिस डेस्क की तस्वीर खींची है… जहां बैठकर मैंने रातें जलाईं, बाल सफ़ेद किए। अब वही मेज़ अकेली खड़ी है।”
तेहरान में डर की परछाई
बीते हफ़्ते इसराइल द्वारा तेहरान के रिहायशी इलाक़ों पर हमलों के बाद राजधानी में अफ़रा-तफ़री मच गई। पेट्रोल पंपों पर लंबी लाइनें, सड़कों पर ट्रैफ़िक जाम, और हर चेहरे पर एक ही सवाल — “क्या हम बचे रहेंगे?”
इसराइली सेना ने उत्तरी तेहरान के कई हिस्सों को तुरंत खाली करने का निर्देश दिया, जिसके बाद लाखों लोग भाग निकले। बीबीसी फ़ारसी को मिले वीडियो और संदेशों में लोग बता रहे हैं कि कैसे वे ट्रैफ़िक में फंसे रहे, किसी को बस टिकट नहीं मिला, और कोई घंटों पैदल चला।
जिन्होंने नहीं छोड़ा शहर
लेकिन हर कोई नहीं जा सका।
40 वर्षीय महिला, जिनके दो बच्चे हैं, कहती हैं : “सच बताऊं तो अब थक चुकी हूं। कोविड, महंगाई और अब जंग… मैंने इतने सालों में घर बनाया है, अगर बर्बाद होना है, तो मैं यहीं बच्चों के साथ रहूंगी।”
एक गर्भवती महिला ने कहा : “मेरी एक छोटी बेटी है। इस ट्रैफ़िक में कहां जाऊं? सब कुछ तो यहीं है।”
दुनिया भर के ईरानी — चिंता, लाचारी और यादें
ईरान से बाहर बसे लाखों ईरानी इस वक्त लगातार इंटरनेट के ज़रिए अपने प्रियजनों से संपर्क में रहने की कोशिश कर रहे हैं। एक यूज़र ने लिखा:
“पहले विदेश में रहते हुए होमसिकनेस सबसे बड़ी समस्या लगती थी। लेकिन अब जब जंग है, तब असली दूरी का एहसास हो रहा है।”
एक और कमेंट आया : “बाहर वालों के लिए आसान है कहना कि निकल जाओ। मगर जब न पैसा है, न मंज़िल — तो कहां जाएं?”
तस्वीरें जो इतिहास बन रही हैं
बीते कुछ दिनों में इंटरनेट पर साझा की गई इन ‘आख़िरी तस्वीरों’ की संख्या हज़ारों में पहुंच चुकी है। कोई सिर्फ़ दीवार पर टंगी तस्वीर को क़ैद करता है, कोई चाय का कप, कोई अपने पालतू जानवर का बिछावन। ये तस्वीरें युद्ध की वीभत्सता को चीख-चीख कर बयान नहीं करतीं, लेकिन हर एक फ़्रेम में बिखरी हुई ज़िंदगी दिखती है।
क्या ये अलविदा स्थायी होगा?
तेहरान छोड़ते लोगों के दिलों में बस यही सवाल गूंज रहा है —
“क्या हमारा घर बचेगा?”
“क्या हम लौट पाएंगे?”
इसराइल और ईरान के बीच जारी इस सैन्य संघर्ष में अब तक 224 ईरानी नागरिकों की मौत हो चुकी है, जबकि तेहरान के मिसाइल हमलों में इसराइल में 24 से अधिक लोग मारे गए हैं। हमले अब सिर्फ़ सैन्य अड्डों तक सीमित नहीं, बल्कि आम आबादी के बीच घरों तक पहुंच गए हैं।
जब एक इंसान अपना घर छोड़ता है, वह सिर्फ़ ईंट और दीवार नहीं छोड़ता — वह अपनी पहचान, सपने और भविष्य की एक परत को वहीं छोड़ आता है। तेहरान की ‘आख़िरी तस्वीरें’ इतिहास में दर्ज हों या न हों, लेकिन वे उस दर्द का साक्ष्य बन चुकी हैं जो किसी भी युद्ध में सबसे पहले आम लोगों के हिस्से आता है।
(यह रिपोर्ट बीबीसी फ़ारसी संवाददाता तारानेह फ़तालियान की मूल रिपोर्ट पर आधारित है।)
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