आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट। उदयपुर से दूर गोगुंदा में पहाड़ों के सन्नाटे में, एक गांव के लोग सांस रोके उस पल का इंतजार कर रहे थे जब उस आदमखोर से उनकी दहशत खत्म होगी। गोगुंदा के शांत से गांव में पिछले कुछ दिनों से एक ही नाम था—नाहर (पैंथर)। एक खूंखार शिकारी, जिसने बुधवार रात को 5 साल की मासूम बच्ची सूरज को अपने नुकीले पंजों का शिकार बना लिया था। गांव में मातम का सन्नाटा और जंगलों में खौफ का आलम था।
25 सितंबर की वो रात हर किसी के लिए एक खौफनाक याद बन गई। मजावद ग्राम पंचायत के कुडाऊ गांव की भील बस्ती में सूरज खेल रही थी, जब अचानक एक आहट ने सबकुछ बदल दिया। पैंथर झाड़ियों से निकला और मासूम को उठा ले गया। गांववालों के चीखने-चिल्लाने के बावजूद, पैंथर पलक झपकते ही जंगल में गुम हो गया। अगले दिन, जब लोग उसकी तलाश में निकले, तो उन्हें जंगल में सिर्फ एक कटी हुई हथेली मिली। कुछ दूर उसका सिर कटा शव पड़ा था। मां-बाप का कलेजा छलनी हो गया, और गांव में हर दिल पर भारी पत्थर सा बोझ था—एक मासूम जान इतनी दर्दनाक मौत कैसे पा गई?
यह घटना गांववालों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। हर कोई डर में जी रहा था, मानो हर झाड़ी के पीछे मौत का साया हो। जिस बच्ची की मासूम हंसी कल तक गांव में गूंजती थी, उसकी चीखें अब दिलों में धंसी हुई थीं। पैंथर के हमले ने पूरे गांव को जैसे जकड़ लिया था। हर कोई अपने दरवाजों के पीछे दुबका हुआ था, और अंधेरे में टॉर्च की रोशनी लिए जंगल की ओर देखता था, मानो वह शिकारी अब भी आस-पास हो।
वन विभाग की टीमें पूरी ताकत से इस खूंखार शिकारी को ढूंढने में जुटी थीं। चार पिंजरे लगाए गए, लेकिन तीन दिन तक कुछ नहीं हुआ। इस बीच गांववालों का दिल डर और उम्मीद के बीच झूल रहा था। क्या पैंथर फिर हमला करेगा? क्या वे सुरक्षित हैं? और फिर आखिरकार, शुक्रवार की रात, करीब ढाई बजे, पहाड़ी पर लगे पिंजरे में वो कैद हो गया। जब वनकर्मियों ने उसे नीचे लाया, तो वह घुर्राते हुए जैसे अपने कैद होने पर गुस्सा जाहिर कर रहा था।
पकड़ा गया लेपर्ड बेहद ताकतवर था, मगर उसके दो दांत टूटे हुए थे। उसकी गुर्राहट में दर्द था या आक्रोश, कोई नहीं जानता। क्या यही पैंथर आदमखोर था? इस सवाल का जवाब वन विभाग के पास भी नहीं था। लेकिन एक बात साफ थी—यह गांववालों के लिए राहत का पल था, मगर दिलों में बसी वह खौफनाक यादें कभी मिट नहीं सकेंगी।
हालांकि पैंथर पकड़ा गया, लेकिन गांव की हवा में अब भी डर का साया मंडरा रहा है। गुलाबसिंह, जो इस पूरे घटनाक्रम के गवाह थे, कहते हैं, “बच्ची की मौत ने गांव की आत्मा हिला दी है। रातों को अब भी चैन की नींद नहीं आती। हर कदम डर के साये में रखा जाता है।”
गांववाले मानते हैं कि अब भी निगरानी जरूरी है, क्योंकि इस खूनी खेल में तीन पैंथर तो पकड़े गए हैं, लेकिन जंगलों में न जाने कितने और शिकारी छुपे बैठे हैं, किसी और मासूम को अपना शिकार बनाने की ताक में।
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