उदयपुर। राजस्थान की कठोर धरती, जहां कभी महिलाएं घर की चारदीवारी में अपने सपनों को बाँध कर रख देती थीं, अब वहीं की बेटियाँ आत्मनिर्भरता की नयी मिसाल रच रही हैं। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान जिंक की सीएसआर पहल से जन्मी “सखी उत्पादन समिति” की सच्ची और प्रेरणादायक कहानी है, जिसने ग्रामीण महिलाओं के जीवन को सिर्फ बदला नहीं बल्कि उन्हें समाज की नायिका बना दिया।
जहाँ पहले महिलाएं निर्णय लेने से डरती थीं, वहीं अब वे उद्यमी, प्रशिक्षक और ब्रांड एंबेसडर बन चुकी हैं। इस परिवर्तन की जड़ में सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि एक गहरा भावनात्मक और सामाजिक बदलाव भी छिपा है — आत्मविश्वास का जागरण, पहचान की पुनर्परिभाषा और स्वावलंबन की आंच।
भावनात्मक बदलाव : “मैं कर सकती हूं” से “मैंने कर दिखाया है” तक
जावर गाँव की इंदिरा मीणा की नमकीन इकाई में हर सुबह काम पर जाने की खुशी केवल पैसे कमाने तक सीमित नहीं है। यह उसके आत्मसम्मान की कहानी है। जब वह कहती है “आज मैं अपने बेटे की पढ़ाई में मदद कर रही हूँ,” तो वह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीण महिलाओं की आवाज़ है, जिन्होंने घरों की चारदीवारी से बाहर आकर समाज को बताया है कि वे क्या कर सकती हैं।
इन इकाइयों में महिलाएं केवल नमकीन या कपड़े नहीं बनातीं, वे अपने स्वप्नों की सिलाई और आत्मनिर्भरता की खुशबू भी उसमें बुनती हैं। उनके लिए यह काम कोई नौकरी नहीं, बल्कि एक गौरवशाली जिम्मेदारी है — खुद के लिए, अपने परिवार के लिए और अपने गांव की नई पीढ़ी के लिए।
सामाजिक परिवर्तन : परंपरा से प्रगति की ओर
ग्रामीण समाज में महिलाओं का आर्थिक जीवन में सक्रिय भागीदार बनना एक सामाजिक क्रांति से कम नहीं। सदियों से जो महिलाएं “घर की इज़्ज़त घर में ही रहनी चाहिए” जैसी रूढ़ियों में जकड़ी थीं, आज वे अपने काम और आय से समाज की रीढ़ बन चुकी हैं।
2,000 से अधिक स्वयं सहायता समूहों का गठन, 30,000 से अधिक महिलाओं का सशक्त होना, और 100 करोड़ से अधिक का ऋण लेना — ये आँकड़े महज आर्थिक मापदंड नहीं, बल्कि उस सामाजिक जागरण की कहानी हैं जिसमें महिलाएं अब निर्णय निर्माता बन चुकी हैं, न कि केवल पालनकर्ता।
सखी की इकाइयों में महिलाएं अब गुरु और नेतृत्वकर्ता बनकर उभरी हैं। उत्तराखंड से लेकर चित्तौड़गढ़ तक, वे सिलाई, क्रोशिया, तेल pressing, शहद प्रसंस्करण जैसी विविध परियोजनाओं में प्रशिक्षण ले रही हैं और दे भी रही हैं।
आर्थिक आत्मनिर्भरता : गाँव की मिट्टी से ग्लोबल मार्केट तक
सखी उत्पादन समिति का सबसे क्रांतिकारी पक्ष उसका आर्थिक विजन है। 18.8 करोड़ की सामूहिक बचत और 100.6 करोड़ का ऋण प्राप्त कर महिलाएं अब बैंकिंग और उद्यम की भाषा सीख चुकी हैं। साल 2024-25 में 2.31 करोड़ का राजस्व और बिजनेस सखियों द्वारा 39.5 लाख की अतिरिक्त आय — ये केवल आंकड़े नहीं, बल्कि उस “ग्रामीण महिला शक्ति” की उपलब्धियाँ हैं जो अब देश के आर्थिक नक्शे पर मजबूती से उभर रही है।
दायची और उपाया जैसे ब्रांड अब केवल उत्पाद नहीं, बल्कि महिलाओं की पहचान और परिश्रम का प्रतीक हैं। इन ब्रांड्स के जरिए ग्रामीण महिलाएं अब अमेजन, फ्लिपकार्ट, ONDC और सोशल कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिस्पर्धी स्तर पर पहुंच चुकी हैं। ‘गौयम’ घी को अमेजन चॉइस बैज मिलना इस गुणवत्ता और स्वीकार्यता का प्रमाण है।
डिजिटल क्रांति का स्पर्श : हार्ट्स विद फिंगर्स
2023 में शुरू किया गया ऑनलाइन बाजार “Hearts with Fingers” ने ग्रामीण उत्पादों को देशभर के ग्राहकों तक पहुंचा दिया। यह केवल बाज़ार नहीं, बल्कि उस “डिजिटल सशक्तिकरण” का माध्यम है जिसमें महिलाएं टेक्नोलॉजी को अपनाकर ग्लोबल कंज़्यूमर से जुड़ रही हैं।
वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर सोशल कॉमर्स की शुरुआत से यह परिवर्तन और भी व्यापक हो रहा है। आज सखी की महिलाएं केवल कारीगर नहीं, डिजिटल उद्यमी भी बन रही हैं।
स्थानीय स्तर पर आत्मनिर्भरता : हर गांव में नया अवसर
चित्तौड़गढ़ के मूंगाखेड़ा में ऑयल यूनिट, रुद्रपुर में शहद प्रसंस्करण, रेलमगरा में सिलाई प्रशिक्षण, दरीबा में बार और बाजरा बिस्कुट, और कायड़ में ब्लॉक प्रिंटिंग — ये सारी इकाइयाँ स्थानीय महिलाओं के लिए कमाई और विकास का केंद्र बन चुकी हैं।
यह न केवल माइक्रो-इकोनॉमिक डेवलपमेंट है, बल्कि एक ऐसी सामाजिक संरचना का निर्माण भी है जो गांव में ही सम्मानजनक आजीविका का अवसर प्रदान करता है — यह पलायन रोकने की दिशा में भी अहम कदम है।
मूल्य आधारित उद्यमिता : परंपरा और पर्यावरण की रक्षा
सखी के दोनों ब्रांड — दायची और उपाया — केवल व्यापारिक उत्पाद नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यावरणीय मूल्यों के संवाहक भी हैं। रसायनमुक्त, पारंपरिक और स्थानीय स्रोतों से बना खाना, हैंड-ब्लॉक प्रिंटेड परिधान और प्राकृतिक रंग — ये सब न केवल बाजार में अलग पहचान बना रहे हैं, बल्कि ग्राहकों के बीच विश्वसनीयता और स्थिरता की मिसाल बन रहे हैं।
महिला सशक्तिकरण की नई परिभाषा
सखी उत्पादन समिति ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब एक ग्रामीण महिला को अवसर मिलता है, तो वह केवल खुद नहीं बदलती — वह पूरा समाज बदल देती है।
यह एक मॉडल है जो CSR के माध्यम से केवल दान नहीं, बल्कि सुनियोजित, दीर्घकालिक और जमीनी बदलाव का उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह केवल राजस्थान या उत्तराखंड की महिलाओं की कहानी नहीं, बल्कि यह भारत के हर गाँव की बेटी, बहन और माँ की आवाज़ है, जो कह रही है:
अब मैं केवल ग्रहणी नहीं, एक निर्माता हूं।
अब मैं केवल श्रमिक नहीं, एक उद्यमी हूं।
अब मैं सिर्फ सपना नहीं देखती, उसे जीती हूं।
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