अहमदाबाद। 22 अगस्त की शाम, अहमदाबाद का खोखरा इलाका अचानक सनसनीखेज़ ख़बरों से भर गया। सायरनों की गूँज, रोते-बिलखते अभिभावक और स्कूल के बाहर जमा भीड़ — माहौल ऐसा था मानो पूरा इलाका किसी अदृश्य आघात से गुजर रहा हो। लोग पूछ रहे थे: “आख़िर ऐसा कैसे हुआ कि एक स्कूली झगड़ा जानलेवा हमला बन गया?”
घटना की शुरुआत मामूली विवाद से हुई, लेकिन अंजाम इतना भयावह था कि पूरे शहर को हिला गया। दसवीं कक्षा का एक छात्र अपने ही सहपाठी के हाथों मौत के घाट उतार दिया गया। हथियार? न तो कोई बड़ा चाकू, न पिस्तौल, बल्कि एक साधारण फोल्डेबल बॉक्स कटर — वही औज़ार जो अक्सर घर या दफ़्तर में कागज़, प्लास्टिक काटने के काम आता है।
स्कूल की दीवारों से बाहर मौत का साया
मंगलवार की दोपहर, सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट हायर सेकेंडरी स्कूल की छुट्टी होते ही बच्चे समूहों में बाहर निकल रहे थे। चहल-पहल के बीच दो सहपाठियों में कहासुनी शुरू हुई। पहले तो लोगों ने सोचा यह आम लड़ाई-झगड़ा है, जो अक्सर किशोरों में हो जाया करता है। लेकिन देखते-देखते विवाद इतना बढ़ गया कि एक छात्र ने अपनी जेब से बॉक्स कटर निकाला और वार कर दिया।
चश्मदीद गवाहों का कहना है कि वार इतनी तेजी और बेरहमी से हुआ कि आसपास खड़े छात्र और राहगीर कुछ समझ ही नहीं पाए। जब तक किसी ने बीच-बचाव की कोशिश की, तब तक पीड़ित छात्र लहूलुहान ज़मीन पर गिर चुका था। उसे आनन-फानन में नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
पुलिस की पहली पड़ताल और भ्रम
घटना के तुरंत बाद पुलिस मौके पर पहुंची। शुरुआती जांच में यह आशंका जताई गई कि हमला शायद किसी चाकू, कांच के टुकड़े या फिर स्कूल लैब के किसी नुकीले उपकरण से हुआ हो। लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, सच्चाई सामने आई।
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक डीसीपी अजीत रंजन ने पुष्टि की —“हमले में इस्तेमाल किया गया हथियार कोई साधारण चाकू नहीं था, बल्कि एक फोल्डेबल बॉक्स कटर था। आरोपी छात्र ने इसे पहले से अपने पास रखा हुआ था।”
यह खुलासा अपने आप में चौंकाने वाला था। सवाल उठने लगे कि आखिर एक नाबालिग छात्र ऐसा औज़ार स्कूल क्यों लेकर आया था? क्या यह हमला पहले से सोचा-समझा था या फिर अचानक गुस्से में लिया गया फ़ैसला?
आरोपी की गिरफ्तारी और पूछताछ
घटना के कुछ घंटों के भीतर पुलिस ने मुख्य आरोपी को पकड़ लिया। गिरफ्तारी के समय भीड़ में गुस्सा और आक्रोश साफ देखा जा सकता था। पुलिस की गाड़ी के बाहर लोग नारे लगा रहे थे — “हत्यारे को सज़ा दो”, “स्कूल प्रशासन जवाब दो”।
बुधवार को क्राइम ब्रांच ने एक अन्य छात्र को भी पूछताछ के लिए बुलाया। आशंका थी कि आरोपी को किसी ने उकसाया या मदद की होगी। हालांकि आधिकारिक तौर पर पुलिस ने अभी किसी और पर मामला दर्ज नहीं किया है।
पीड़ित परिवार का दर्द
पीड़ित छात्र के घर मातम पसरा है। उसके पिता का कहना है —“हमने बेटे को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा था, वापस उसकी लाश मिली। यह किसी एक बच्चे की गलती नहीं, यह पूरे सिस्टम की नाकामी है।”
मां की आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे। वह बार-बार एक ही सवाल दोहरा रही हैं — “आख़िर क्या वजह थी कि दोस्त ही दुश्मन बन गया? क्या इतनी नफ़रत स्कूल में पनप रही है?”
सहपाठियों और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
स्कूल के अन्य छात्र दहशत में हैं। एक दसवीं कक्षा की छात्रा ने कहा —“हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि हमारी क्लास का लड़का ऐसा कुछ कर सकता है। अब हमें स्कूल आने में डर लग रहा है।”
अभिभावक भी गुस्से में हैं। उनका कहना है कि स्कूल प्रशासन ने सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया। अगर गेट पर चेकिंग होती या निगरानी मज़बूत होती तो शायद यह घटना टल जाती।
एनएसयूआई का विरोध और सड़कों पर उबाल
घटना के दो दिन बाद, गुरुवार को भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। उन्होंने नारे लगाए और तख्तियाँ लेकर प्रदर्शन किया। उनका आरोप था कि प्रशासन और स्कूल प्रबंधन दोनों ही लापरवाह हैं।
प्रदर्शनकारियों ने स्कूल के भीतर घुसने की कोशिश की। इस दौरान तनाव बढ़ गया। भीड़ ने कुछ स्कूल बसों और गाड़ियों को नुकसान पहुँचाया। स्कूल कर्मचारियों के साथ भी हाथापाई हुई। पुलिस को हालात काबू करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा और प्रदर्शनकारियों को बाहर खदेड़ना पड़ा।
सिंधी समुदाय के लोग, पीड़ित परिवार और अन्य अभिभावक भी इस विरोध में शामिल हुए। सड़क पर धरना देकर वे प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहे।
अहम सवालों के घेरे में शिक्षा व्यवस्था
यह घटना सिर्फ़ एक हत्या की कहानी नहीं है, यह हमारे शिक्षा तंत्र और समाज की कमजोरी को भी उजागर करती है।
- एक छात्र बॉक्स कटर जैसे औज़ार के साथ स्कूल कैसे पहुँच गया?
- क्या स्कूल परिसर में सुरक्षा और निगरानी इतनी ढीली है कि कोई भी छात्र हथियार लेकर अंदर आ सकता है?
- विवाद को सुलझाने की जगह हिंसा का सहारा लेने की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है?
- क्या शिक्षा विभाग और प्रशासन इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएगा?
विशेषज्ञों की राय
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि किशोरावस्था में गुस्सा और अहंकार अक्सर नियंत्रण से बाहर हो जाता है। अगर समय रहते बच्चों को परामर्श, काउंसलिंग और सही माहौल न मिले तो छोटी-सी बात भी हिंसक रूप ले सकती है।
एक वरिष्ठ मनोचिकित्सक ने बताया —“आजकल बच्चे सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेम्स और हिंसक कंटेंट से बहुत प्रभावित हो रहे हैं। परिवार और स्कूल को चाहिए कि वे बच्चों की मानसिक स्थिति पर ध्यान दें, नहीं तो इस तरह की घटनाएँ बार-बार सामने आती रहेंगी।”
प्रशासन की चुनौतियां
राज्य के शिक्षा मंत्री प्रफुल्ल पंशेरिया ने पहले कहा था कि आरोपी नौवीं कक्षा का छात्र है, जबकि पुलिस ने बाद में पुष्टि की कि वह दसवीं का ही छात्र है। इस विरोधाभास ने प्रशासन की तैयारी और समन्वय पर भी सवाल उठाए।
अब सबसे बड़ी चुनौती है स्कूलों में सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करना। पुलिस का कहना है कि वह सभी स्कूलों को एडवाइजरी जारी करेगी, जिसमें सुरक्षा गार्ड, सीसीटीवी कैमरे और छात्रों की कड़ी निगरानी जैसे निर्देश होंगे।
एक सवाल, कई जवाब
खोखरा की यह घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। एक बॉक्स कटर ने यह दिखा दिया कि हिंसा के बीज कितने गहरे तक बोए जा चुके हैं।
यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है —
- क्या हम बच्चों को सही दिशा दे पा रहे हैं?
- क्या स्कूल केवल किताबों का बोझ बनकर रह गए हैं, जहाँ मानसिक स्वास्थ्य और मानवीय संवेदनाओं के लिए जगह नहीं है?
- और सबसे अहम सवाल — क्या इस घटना के बाद भी शिक्षा व्यवस्था और प्रशासन जागेगा, या अगली त्रासदी का इंतज़ार करेगा?
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