
उदयपुर। कभी-कभी एक शब्द, एक भाव, एक नीति—पूरा जीवन बदल देती है। हिन्दुस्तान ज़िंक लिमिटेड ने ‘समावेशी भाषा गाइडबुक’ लॉन्च करके न सिर्फ कॉर्पोरेट की दुनिया में एक नई इबारत लिखी है, बल्कि उन अनगिनत दिलों में उम्मीद की लौ जगाई है जिन्हें वर्षों से पहचान, गरिमा और अपनापन नहीं मिला।
यह गाइडबुक कोई आम दस्तावेज़ नहीं, बल्कि उन आवाज़ों की स्वीकार्यता है, जिन्हें दशकों तक दबाया गया। यह सिर्फ भाषा की बात नहीं करती, यह उस सोच की बात करती है जो दूसरों की संवेदनाओं को समझने की कोशिश करती है। यह उस संस्कृति को गढ़ने की कोशिश है जहाँ पहचान एक सीमा नहीं, अवसर बनती है।
सामाजिक सोच में बदलाव की नींव
ट्रांसजेंडर, LGBTQIA+, दिव्यांग और जातिगत-भौगोलिक विविधता को अपनाने की बात करना एक चीज़ है, उसे जमीनी हकीकत में उतारना दूसरी। हिन्दुस्तान ज़िंक ने ‘ज़िंक्लूजन प्लेटफॉर्म’ के ज़रिए विविधता और समावेशन के जिस आदर्श की ओर कदम बढ़ाया है, वह भारतीय कॉर्पोरेट संस्कृति में विरल है।

इस गाइडबुक की सबसे अहम बात यह है कि यह महज़ शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है—एक ऐसी दृष्टि जो किसी की पहचान को बोझ नहीं बल्कि गर्व समझती है।
‘एलीशिप’ की समझ और दिल की साझेदारी
इस मौके पर हुई पैनल चर्चा में ‘एलीशिप’ जैसे जटिल लेकिन ज़रूरी विचार पर बात की गई। एलीशिप यानी ऐसा साथ जो सिर्फ सहानुभूति नहीं, सक्रिय भागीदारी का रूप हो। यह वही भावना है जो एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ऑफिस में सिर ऊंचा करके चलने का हक देती है, या एक दिव्यांग साथी को अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेने की ताकत देती है।
जब भाषा बाधा नहीं, सेतु बने
डॉ. संजय शर्मा, जो न सिर्फ एयरफोर्स से जुड़े रहे हैं बल्कि ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य और समावेशन के पैरोकार हैं, उन्होंने एक सच्चाई को छुआ — “भाषा या तो दरवाज़े खोल सकती है या दीवारें खड़ी कर सकती है।” हिन्दुस्तान ज़िंक की समावेशी भाषा गाइडबुक एक ऐसा औज़ार है जो उन दरवाज़ों को खोल रही है, जिनके पीछे अब तक तमाम प्रतिभाएं कैद थीं।
यह पहल उस मानसिकता के विरुद्ध खड़ी होती है जो विविधता को कमजोरी मानती है। यह बताती है कि भाषा अगर गरिमामयी हो, तो विचार भी गरिमामयी होंगे।
जब ट्रांसजेंडर ‘कर्मचारी’ नहीं, ‘पथ-प्रदर्शक’ बनें
आज जब मेटल और माइनिंग जैसे पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्ति फाइनेंस, मार्केटिंग, मेडिकल और सप्लाई चेन जैसे विभागों में मुख्य भूमिकाएं निभा रहे हैं, तो यह सिर्फ प्रतिनिधित्व नहीं—एक बदलाव की घोषणा है।
23 ट्रांसजेंडर कर्मियों को केवल नियुक्त करना ही नहीं, बल्कि उन्हें मुख्यधारा में नेतृत्व देना, उनके लिए विशेष स्वास्थ्य नीतियां बनाना, आर्थिक मदद देना—यह सब दर्शाता है कि हिन्दुस्तान ज़िंक ‘सामाजिक समानता’ को केवल शब्दों में नहीं, नीतियों में जी रही है।
एक ‘डिजिटल खदान’ में दिल की आवाज़
हिन्दुस्तान ज़िंक की डिजिटल खदानें, रोबोटिक्स, टेली-रिमोट ऑपरेशन और ऑटोमेशन के जरिए भले ही तकनीकी रूप से अग्रणी हों, लेकिन इन खदानों की असली गहराई इनकी सोच में है—जहाँ कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका लिंग, जाति, यौन पहचान या क्षेत्र कोई भी हो, खुद को सुरक्षित और सम्मानित महसूस करता है।
प्रिया अग्रवाल हेब्बार : नेतृत्व जो दिल से निकलता है
वेदांता लिमिटेड की डायरेक्टर और हिन्दुस्तान ज़िंक की चेयरपर्सन, प्रिया अग्रवाल हेब्बार ने एक भावुक संदेश दिया—“यहाँ आप केवल कर्मचारी नहीं हैं, परिवार का हिस्सा हैं। यह घर जैसा है।” यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक प्रतिबद्धता है—एक ऐसा कार्यस्थल बनाने की, जहाँ कोई भी व्यक्ति खुद को अकेला न महसूस करे।
समावेशन : CSR नहीं, इंसानियत की ज़रूरत

कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी के नाम पर बहुत कुछ किया जाता है, लेकिन हिन्दुस्तान ज़िंक की यह पहल उस दायरे से परे जाकर एक संवेदनशील सामाजिक निवेश बन जाती है। यह उस सोच को चुनौती देती है जिसमें व्यावसायिक सफलता के लिए एकरूपता ज़रूरी समझी जाती थी।
इस पहल में विविधता सिर्फ स्वीकार नहीं की जा रही, उसे गले लगाया जा रहा है—इसलिए यह क्रांति है, CSR नहीं।
भविष्य की ओर विश्वास से
हिन्दुस्तान ज़िंक का लक्ष्य है कि 2030 तक अपने कार्यबल में 30% विविधता सुनिश्चित की जाए, और वर्तमान में यह आंकड़ा 26% है—जो मेटल और माइनिंग जैसे क्षेत्र में एक मिसाल है।
यह बताता है कि कंपनी सिर्फ लफ्ज़ों में नहीं, आंकड़ों में भी विविधता को जी रही है।
समावेशिता कोई एक दिन का जश्न नहीं, यह एक सतत संघर्ष है। हिन्दुस्तान ज़िंक ने यह समझ लिया है। उनके कदम बता रहे हैं कि जब कॉर्पोरेट निर्णय दिल से लिए जाएं, तो कंपनियाँ केवल उत्पाद नहीं, परिवर्तन पैदा करती हैं।
यह पहल ट्रांसजेंडर समुदाय ही नहीं, हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो समाज में पहचाना जाना चाहता है—जैसा वह है, वैसा ही।
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