
सज गई सुरों और शायरी से महकती शाम, जहां हर दिल ने किया मोहब्बत का सलाम
उदयपुर। शहर की जज़्बाती फ़िज़ा में 29 जून की शाम जब मोहब्बत बोल उठी, तो “शायराना उदयपुर” के मंच ने बनारस की घाट, मथुरा की गली, और लखनवी तहज़ीब को भी मात दे दी।
एश्वर्या कॉलेज में आयोजित इस श्रृंगार रस विशेष मेगा मिलन समारोह में अल्फ़ाज़ों ने इश्क़ की चादर ओढ़ी,
और सुरों ने रूह को ऐसा छुआ कि महफ़िल देर रात तक जज़्बातों की रोशनी में भीगती रही।
शायरी और श्रृंगार का सुरमयी संगम
शुरुआत डॉ. सीमा वेद की सरस्वती वंदना से हुई – जहाँ सुरों की पूजा से महफ़िल को साधा गया।
इसके बाद श्रृंगार रस में डूबे गीतों की झड़ी लग गई – कौशल्या सोलंकी की “चुरा लिया है तुमने…” से लेकर
एस.डी. कौशल की “ज़रा सुन ए हसीना…” तक,
हर शेर, हर मिसरा, हर सुर दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता रहा।
राष्ट्रीय कवि सूरज राय ‘सूरज’ की अल्फ़ाज़ों से बुनी मां की परछाईं

“दुआओं में माँ का असर देखते हैं,
जब भी दुख आता है वो प्याज़ काटने लगती है…” इन शब्दों ने पूरा सभागार स्तब्ध कर दिया।
सूरज राय सूरज की ये कविता सिर्फ़ कविता नहीं रही, वो माँ की आँखों से निकली वो चुप्पी थी जो सबने महसूस की।
दीपिका माही : जब श्रृंगार रस बोल उठा नैनों से
“मेरो सांवरो सलोनो बालम…”
मेवाड़ की कवियित्री दीपिका माही ने जब नज़्म पढ़ी तो शब्द गुलाब हो गए,
और हर सुनने वाला उनका इश्क़-भरा अंदाज़ पीने लगा जैसे चांदनी रात में कोई शबनमी ख़्वाब।

छोटू लाल का सैक्सोफोन और देवयानी का नृत्य : सुर और साज की रूहानी चाल
राजसमंद से आए छोटू लाल की सैक्सोफोन पर “यह रात भीगी भीगी…” जैसे रोमांटिक धुनों ने महफ़िल में झूमने की वजह दी।
नन्हीं देवयानी साहू ने जब कथक में कृष्ण की लीलाओं को जीवंत किया,
तो लगा जैसे श्रृंगार खुद नृत्य करने लगा हो
जब मंच पर आए हमारे अपने सितारे
• सुधीर दत्त व्यास : “पल पल दिल के पास तुम रहती हो…”
• योगेश उपाध्याय : “आज मौसम बड़ा बेईमान है…”
• नीलम कौशल : “दिल की बातें…”
• नारायण लोहार : “ले गई दिल गुड़िया जापान की…”
हर प्रस्तुति एक इश्क़नामे की तरह रही।
टॉप-5 प्रस्तुतियां बनीं इश्क़ की मूरतें

विशेष अतिथि और ग़ज़ल सम्राट राकेश माथुर द्वारा चयनित पाँच श्रेष्ठ प्रस्तुतियों को प्रशंसा पत्र प्रदान किया गया :
• योगेश उपाध्याय, सुधीर दत्त व्यास, प्रथमेश सुर्वे, विकास स्वर्णकार, नीलम कौशल।
•
यादें और यारी का समापन भोज

सभी कलाकारों को सम्मान स्वरूप स्मृति-चिह्न और स्वादिष्ट भोजन भेंट किया गया।
कार्यक्रम का संचालन मनोज आँचलिया और आभा सिरसीकर ने किया, जिनकी शायरी भी उतनी ही कोमल थी जितनी उनकी मुस्कानें।
इस शाम ने यह साबित कर दिया कि जब शायरी दिल से निकले और संगीत रूह से जुड़े
तो महफ़िल नहीं, मोहब्बत का मेला लग जाता है — और उस मेले का नाम है “शायराना उदयपुर।”
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