इश्क़ का आख़िरी वार : बस स्टैंड पर संस्कृत टीचर की हत्या

बांसवाड़ा। लीला ताबियार। उम्र 36 साल। संस्कृत की टीचर। एक सरकारी स्कूल की सादगी पसंद अध्यापिका, जो अपने संस्कारों, ज्ञान और आत्मसम्मान को लेकर जानी जाती थी। सज्जनगढ़ ब्लॉक के छाया महुड़ी स्कूल में संस्कृत पढ़ाने वाली यह महिला बाहर से जितनी शांत दिखती थी, भीतर उतनी ही टूट चुकी थी।

कभी अरथूना कस्बे का एक युवक महिपाल भगौरा उसकी ज़िंदगी में आया था। दोनों में प्रेम हुआ। लेकिन यह वो प्रेम नहीं था जो सात जन्मों तक साथ निभाता है। यह वो प्रेम था जो वक़्त के साथ ना समझदारी में बदला, ना विवाह में। यह प्रेम अधूरा रह गया… और शायद इसलिए, वह ख़तरनाक बन गया।

पुनर्मिलन नहीं, पुनर्रक्तपात

उस मंगलवार की सुबह सब कुछ सामान्य लग रहा था। कलिंजरा का बस स्टैंड अपनी रोज़मर्रा की चहल-पहल में था। लीला शायद स्कूल जाने से पहले अपनी बस का इंतज़ार कर रही थी। पर उसे क्या पता था कि उसका इंतज़ार अब केवल एक वाहन का नहीं, मौत का था।

सुबह करीब 10:30 बजे—एक सिल्वर रंग की अल्टो कार तेज़ी से बस स्टैंड की ओर आई। कार के भीतर बैठा शख़्स था महिपाल—वही पुराना प्रेमी। लेकिन उसकी आँखों में इस बार इश्क़ नहीं, इंतकाम था।

वह बिना कुछ कहे कार से उतरा, जेब से तलवार निकाली… और बस स्टैंड की बेंच पर बैठी लीला के पेट में सीधे घुसेड़ दी। न चीख़, न बहस, न सवाल—सिर्फ़ एक वार, एक मर्डर।

भागते हुए पतन की ओर
महिपाल ने ज़रा भी देर नहीं की। जैसे वो इस दिन की स्क्रिप्ट पहले ही लिख चुका था। तलवार हाथ में थी, खून बह रहा था, लेकिन वो बेमक़सद सा फिर से अपनी कार में बैठा और भाग निकला।

भागते वक़्त, उसके हौसलों से ज़्यादा तेज़ उसकी कार दौड़ रही थी। शायद उसकी आँखों में अंधकार था या किस्मत ने ही उसे रोका—उसकी कार पेड़ से टकरा गई। ज़ख़्मी नहीं हुआ, लेकिन डर गया। वह कार वहीं छोड़कर भाग निकला, जैसे वह अपने अपराध से भी भागना चाहता हो।

अंतिम साँस और अधूरी प्रेमकथा

राहगीरों ने लीला को तुरंत पास के अस्पताल पहुंचाया। लेकिन तलवार का वार इतना गहरा था कि डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। एक अध्यापिका, जो छात्रों को जीवन जीने का पाठ पढ़ाती थी, आज खुद मौत के अध्याय में सिमट गई।

कलिंजरा थाना पुलिस और बागीदौरा के डीएसपी मौक़े पर पहुँचे। CCTV फुटेज ने कहानी की पुष्टि कर दी—यह कोई हादसा नहीं था, पूर्व-नियोजित हत्या थी। लीला का क़ातिल कोई और नहीं, बल्कि वह था जिससे उसने कभी प्यार किया था।

एकतरफ़ा मोहब्बत या बीमारी?

महिपाल की मानसिक स्थिति पर सवाल उठने लगे। क्या ये प्यार था? क्या ये जुनून था? या फिर यह सिर्फ़ पुरुष अहंकार का भयंकर विस्फोट, जिसमें जब औरत ‘ना’ कहे, तो उसे मिटा दो?

पुलिस ने नाकाबंदी कर दी है। हत्यारे की तलाश जारी है। लेकिन जो खत्म हो चुका है, वो है एक महिला का जीवन, उसकी गरिमा, और एक अधूरी प्रेमकथा।

प्रेम, जब अपराध बन जाए

लीला की कहानी कोई पहली नहीं है। लेकिन हर बार जब प्रेम में धोखा, ज़बरदस्ती या बदले की भावना हावी होती है, तो समाज को प्यार और पज़ेशन के बीच का फ़र्क़ समझना ज़रूरी हो जाता है।

वह संस्कृत की टीचर थी, उसने दुनिया को शांति, सहिष्णुता और प्रेम का पाठ पढ़ाया। लेकिन उसकी खुद की ज़िंदगी एक ऐसी कहानी बन गई जिसमें शब्द तो थे, पर सुख नहीं।

 

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