काठमांडू के अंधेरे लैब्स : नेपाल की नाबालिग़ लड़कियों के अंडाणु बेचने का काला कारोबार

काठमांडू की संकरी गलियों में एक सर्द शाम थी, जब कुनसांग ने यूं ही अपनी छोटी बहन दोलमा का मोबाइल चेक किया। यह उसकी आदत थी—एक बड़ी बहन की सतर्कता, जिसमें जिज्ञासा भी शामिल थी। लेकिन उस दिन स्क्रीन पर जो दिखा, उसने उसके दिल की धड़कन बढ़ा दी। स्नैपचैट पर एक तस्वीर, बस एक सेकंड की—किसी के हाथ में नसों में लगी ड्रिप। अस्पताल जैसा नज़ारा, पर उसके पीछे छिपी कहानी अलग थी।

कुनसांग ने तस्वीर को ध्यान से देखा, और फिर बहन के इंस्टाग्राम व चैट खोलने लगी। वहां बातचीत के टुकड़ों में ‘एग डोनेशन’, ‘क्लीनिक विज़िट’ और ‘आसान पैसे’ जैसे शब्द थे। इन मैसेज में एक लड़की बार-बार सामने आ रही थी—एक एजेंट, जो दोलमा की दोस्त जैस्मिन की पहचान थी। धीरे-धीरे शक यक़ीन में बदलता गया।

दोलमा और जैस्मिन दोनों सिर्फ़ 17 साल की थीं, लेकिन एजेंट उन्हें 22 साल का दिखाकर एक आईवीएफ क्लीनिक ले गई थी। वहां नकली नाम, झूठी उम्र और डॉक्टरों का ठंडा जवाब—”क़ानूनी आधार नहीं है पूछताछ का”—सब कुछ किसी संगठित गिरोह की चाल जैसा लग रहा था। दोलमा के पिता नॉरबू ने ठान लिया, वे चुप नहीं रहेंगे। वे ह्यूमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग ब्यूरो पहुंचे। वहां के अफ़सर भी हैरान थे—नेपाल में इस तरह का मामला उन्होंने पहली बार देखा था।

जांच शुरू हुई तो चौंकाने वाले राज़ सामने आए। बिचौलियों को हर बार करीब 330 डॉलर मिलते, जिनमें से लड़कियों को सिर्फ़ थोड़ा सा पैसा थमा दिया जाता। दस दिनों तक हार्मोन इंजेक्शन देकर अंडाणु विकसित कराए जाते, फिर सर्जरी के ज़रिए निकाले जाते—बिना अभिभावकों की अनुमति। अस्पताल के रिकॉर्ड में फर्जी नाम और उम्र दर्ज की जाती। कई लड़कियां, जो पहले खुद पीड़ित थीं, बाद में एजेंट बनकर दूसरों को इस जाल में फंसाने लगीं। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी होबिन्द्रा बोगाती ने कहा, “नाबालिग़ों को इस दर्दनाक प्रक्रिया में झोंकना एक घिनौना अपराध है।”

जुलाई में तीन डॉक्टर और दो एजेंट गिरफ्तार किए गए, लेकिन थोड़े ही समय में सभी ज़मानत पर छूट गए। कुनसांग और नॉरबू को एहसास हो चुका था—यह अपराध की सतह मात्र है, नीचे इसका जाल और गहरा है। नेपाल में अंडाणु या शुक्राणु दान की कोई आयु सीमा नहीं। पुलिस को मजबूरी में 2018 के चाइल्ड एक्ट के तहत केस चलाना पड़ा, जिसमें अधिकतम तीन साल की सज़ा और मामूली जुर्माना है। इतने हल्के कानून के सामने यह संगठित धंधा लगभग बेख़ौफ़ है।

डॉक्टर भोला रिजाल, जिन्होंने नेपाल में पहला आईवीएफ करवाया था, बरसों से चेतावनी दे रहे थे—अगर सख़्त नियम नहीं बने, तो यह उद्योग शोषण का अड्डा बन जाएगा। भारत, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में उम्र, मेडिकल जांच और दान की सीमा पर सख़्त कानून हैं। नेपाल में न नियम पुख़्ता हैं, न निगरानी। पिछड़े इलाकों की गरीब लड़कियां सबसे आसान शिकार हैं।

इस पूरी घटना ने नॉरबू के घर की शांति तोड़ दी। पत्नी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया, दोलमा गहरे तनाव में है, और डॉक्टर कह रहे हैं कि यह डिप्रेशन में बदल सकता है। कुनसांग को अब भी नींद आने से पहले वह एक सेकंड वाली तस्वीर याद आ जाती है—नसों में जाती ड्रिप, और उसके पीछे खुलती भयावह सच्चाई। वह कहती है, “यह किसी फिल्मी अपराध जैसा लगता है, लेकिन यह हमारी जिंदगी में हुआ है। ऐसे लोगों को जेल में डालना ही न्याय होगा।”

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