नई दिल्ली। गणेश चतुर्थी का पर्व भारत में केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक है। इस दिन देशभर में श्रद्धालु गणपति की स्थापना कर उन्हें ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में पूजते हैं। इसी पावन अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने कला और परंपरा को एक सूत्र में पिरोते हुए एक विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया – “विघ्नेश्वर कुटुम्ब: गणेश और उनका परिवार।”
यह प्रदर्शनी केवल मूर्तियों और पेंटिंग्स का संकलन नहीं, बल्कि भारतीय कला, इतिहास और संस्कृति का जीवंत दस्तावेज़ है। यहाँ 12वीं से 20वीं शताब्दी तक की दुर्लभ गणेश मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं, जिन्हें ब्रिटिश कला इतिहासकार लांस डेन ने अपने जीवनभर के संग्रह में सहेजा। इनके साथ ही प्रसिद्ध कलाकार के. विश्वनाथन की पेंटिंग्स दर्शकों को गणेश की विविध छवियों से परिचित कराती हैं।
गणेश: संस्कृति और कला में शाश्वत उपस्थिति
गणेश भारतीय संस्कृति में केवल पूजा के देवता नहीं हैं, बल्कि ज्ञान, बुद्धि, कला और आरंभ के प्रतीक हैं। उनकी मूर्तियाँ भारत के हर मंदिर, हर घर और हर कला परंपरा में किसी न किसी रूप में अंकित मिलती हैं। चाहे दक्षिण भारत के मंदिरों की भव्य प्रतिमाएँ हों या राजस्थान की लोक चित्रकला, गणेश हर जगह अपनी अनूठी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
आईजीएनसीए की यह प्रदर्शनी गणेश की इसी विविधता को सामने लाती है। यहाँ प्रदर्शित मूर्तियों में गणेश कभी बाल स्वरूप में दिखाई देते हैं, कभी युद्ध में पराक्रमी देवता के रूप में, तो कभी परिवार के बीच एक सहज पुत्र के रूप में। यही विविधता उन्हें जन-जन का देवता बनाती है।
लांस डेन : एक विदेशी कला प्रेमी की भारतीय यात्रा
प्रदर्शनी का सबसे विशेष आकर्षण है लांस डेन का संग्रह। लांस डेन (1941–2011) ब्रिटिश कला इतिहासकार, लेखक और संग्रहकर्ता थे। उन्होंने भारतीय कला और विशेषकर गणेश प्रतिमाओं पर जीवनभर शोध किया।
लांस डेन ने दुनिया के अनेक हिस्सों से गणेश की मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ संग्रहित कीं। उनका मानना था कि गणेश केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय कला और समाज की निरंतरता का दर्पण हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने संग्रह को दुनिया भर की प्रदर्शनियों और शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराया।
उनकी पुस्तक “The God of Auspicious Beginnings” को गणेश पर सबसे विस्तृत अध्ययन माना जाता है। इस प्रदर्शनी के माध्यम से उनकी धरोहर भारत की जनता तक पहुँची है।
के. विश्वनाथन : रंगों में गणेश का जीवन
जहाँ लांस डेन का संग्रह इतिहास की धरोहर है, वहीं के. विश्वनाथन की पेंटिंग्स समकालीन दृष्टि को दर्शाती हैं। विश्वनाथन गणेश को केवल देवता के रूप में नहीं, बल्कि मानव जीवन के साथी के रूप में चित्रित करते हैं।
उनकी कृतियों में गणेश कभी नृत्य करते दिखते हैं, कभी बच्चों के साथ खेलते, तो कभी शांत ध्यान मुद्रा में। उनके रंग संयोजन में परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल देखने को मिलता है। यही कारण है कि उनकी पेंटिंग्स दर्शकों के मन में सहज अपनापन जगाती हैं।
प्रदर्शनी का उद्घाटन और संदेश
प्रदर्शनी का उद्घाटन आईजीएनसीए के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने किया। उन्होंने कहा –
“गणेश हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। वह ज्ञान और संस्कृति के पथप्रदर्शक हैं। ऐसे आयोजनों का उद्देश्य युवाओं और समाज को हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ना है।”
सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने भी आयोजन को भारतीय कला और अध्यात्म का अनूठा संगम बताया। वहीं, संरक्षण एवं सांस्कृतिक अभिलेखागार प्रभाग के प्रमुख प्रो. अचल पंड्या ने कहा कि हाल के वर्षों में आईजीएनसीए ने अपने संग्रह को जनता तक पहुँचाने के प्रयास तेज किए हैं। इस प्रदर्शनी को उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
दर्शनम गैलरी : कला और अध्यात्म का मिलन स्थल
यह प्रदर्शनी आईजीएनसीए की दर्शनम गैलरी में आयोजित की गई है, जो कला, इतिहास और संस्कृति को समर्पित विशेष स्थल है। यहाँ आने वाला हर दर्शक न केवल मूर्तियों और चित्रों को देखता है, बल्कि उनके पीछे छिपी कहानियों और प्रतीकों से भी जुड़ता है।
गैलरी में प्रवेश करते ही दर्शक गणेश की विविध प्रतिमाओं से साक्षात्कार करते हैं – कभी उन्हें शिव-पार्वती के स्नेही पुत्र के रूप में, तो कभी पारिवारिक जीवन की मधुरता के प्रतीक के रूप में। यही कारण है कि प्रदर्शनी का शीर्षक “विघ्नेश्वर कुटुम्ब” रखा गया है।
दर्शकों की प्रतिक्रिया
प्रदर्शनी में आए कला प्रेमी और विद्वान इसे एक आध्यात्मिक अनुभव बता रहे हैं। एक आगंतुक ने कहा –
“हमने गणेश जी को पूजा में तो हमेशा देखा, लेकिन इस प्रदर्शनी ने हमें यह समझाया कि गणेश कला और संस्कृति में कितने गहरे रूप से जुड़े हैं।”
दूसरे दर्शक के अनुसार –
“के. विश्वनाथन की पेंटिंग्स हमें यह एहसास दिलाती हैं कि गणेश केवल परंपरा में ही नहीं, बल्कि आज के जीवन में भी जीवंत हैं।”
सांस्कृतिक धरोहर और भविष्य
भारतीय समाज में आज भी कला और अध्यात्म का गहरा संबंध है। गणेश की पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी है। ऐसे में आईजीएनसीए की यह पहल युवाओं और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकती है।
गणेश चतुर्थी जैसे पर्व का महत्व इसी में है कि यह हमें सामूहिक रूप से संस्कृति से जोड़ता है। प्रदर्शनी यह संदेश देती है कि हमारी धरोहर केवल किताबों और मंदिरों में सीमित नहीं, बल्कि गैलरी और संग्रहालयों के माध्यम से भी जीवंत रह सकती है।
“विघ्नेश्वर कुटुम्ब” प्रदर्शनी केवल कला का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन की झलक है। यहाँ गणेश एक देवता से आगे बढ़कर परिवार, संस्कृति और रचनात्मकता के प्रतीक बन जाते हैं।
लांस डेन का ऐतिहासिक संग्रह और के. विश्वनाथन की रचनात्मक पेंटिंग्स मिलकर यह सिखाती हैं कि कला केवल अतीत का संग्रह नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा भी है।
5 सितंबर तक चलने वाली यह प्रदर्शनी निस्संदेह उन सभी के लिए विशेष अनुभव होगी जो गणेश, भारतीय कला और संस्कृति की गहराई को समझना चाहते हैं।
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