फोटो : कमल कुमावत

उदयपुर। उदयपुर की जीवनधारा कही जाने वाली आयड़ नदी ने एक बार फिर अपना रौद्र रूप दिखा दिया है। यह कोई पहली बार नहीं है जब आयड़ ने शहरवासियों की नींद उड़ा दी हो। सवाल यह है कि बार-बार आने वाले इस संकट के लिए दोषी कौन है—प्रकृति, प्रशासन या नागरिक?
सालों से नेता और प्रशासन आयड़ को “वेनिस” बनाने के सपने बेचते रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि नदियां यूरोप के शहरों की नकल से नहीं, बल्कि अपने प्राकृतिक प्रवाह और इकोसिस्टम से जीवित रहती हैं। आयड़ बार-बार यही संदेश दे रही है—”मुझे आयड़ ही रहने दो, मुझे वेनिस मत बनाओ।”

2006 में आई बाढ़ ने चेतावनी दी थी, तब कुछ लोग नदी किनारे से हट गए। लेकिन नेताओं और बिल्डरों की महत्वाकांक्षा नहीं थमी। परिणामस्वरूप, नदी के दोनों छोर पर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गईं। यह सिर्फ अतिक्रमण नहीं है, बल्कि आने वाली तबाही का न्योता है।
विकास परियोजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपये बहाए जाते हैं। लेकिन जब बारिश तेज़ होती है तो वही पैसा, उन्हीं कॉलोनियों के साथ बहकर चला जाता है। आयड़ बार-बार यह साबित कर चुकी है कि योजनाएं सिर्फ कागज पर और भाषणों में चमकती हैं, ज़मीन पर उनका कोई असर नहीं।

आपदा में प्रशासन की सक्रियता या लापरवाही?
लगातार बारिश ने नदी किनारे बनी कॉलोनियों को डुबो दिया। कलेक्टर नमित मेहता और नागरिक सुरक्षा विभाग की टीमें राहत कार्य में जुटीं। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है कि क्या प्रशासन का काम सिर्फ बाढ़ के समय नाव चलाना है या पहले से ऐसी स्थिति रोकने की व्यवस्था करना भी है?
स्कूल बस का पानी में फंसना और स्थानीय विधायक को ग्रामीणों के साथ धक्का देकर उसे निकालना प्रशासनिक विफलता की गवाही देता है। क्या बच्चों की जान यूं बार-बार खतरे में डाली जाएगी और हम इसे “बहादुरी” की घटना कहकर टाल देंगे?
पर्यावरण और विकास का टकराव
बार-बार चेतावनी के बावजूद नदी के इकोसिस्टम से खिलवाड़ जारी है। नदियां सिर्फ पानी का प्रवाह नहीं होतीं, वे जैवविविधता, भूजल और संतुलन की जीवनरेखा होती हैं। लेकिन आयड़ के साथ वही हो रहा है जो देश की कई नदियों के साथ हुआ—अतिक्रमण, सीमेंट, कंक्रीट और राजनीति का शिकार।

आज जो हालात उदयपुर में बने हैं, वह कल उत्तराखंड जैसी आपदा की झलक हो सकते हैं। वहां भी “विकास” ने नदियों को कमजोर किया और नतीजा सामने आया।
तात्कालिक राहत बनाम दीर्घकालिक समाधान
बारिश के रेड अलर्ट पर स्कूलों की छुट्टियां घोषित करना, डूबते लोगों को बचाना, और बांधों के गेट खोलना—ये सब आपदा प्रबंधन की तात्कालिक प्रतिक्रियाएं हैं। लेकिन क्या दीर्घकालिक समाधान पर किसी ने गंभीरता से सोचा है?
क्या नदी किनारे कॉलोनियों को हटाने की हिम्मत प्रशासन करेगा?

क्या नेता वेनिस के सपने छोड़कर आयड़ की असलियत स्वीकारेंगे?
क्या जनता अपने ही अतिक्रमणों पर आत्ममंथन करेगी?
आयड़ का सवाल, हम सबके लिए
आयड़ नदी कोई मौन प्रवाह नहीं है। वह हर बारिश में हमें चेतावनी देती है—”अगर तुमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद नहीं किया, तो मैं तुम्हें सबक सिखाऊंगी।” आज ज़रूरत है कि उदयपुर के नागरिक, प्रशासन और नेता मिलकर यह तय करें कि वेनिस का खोखला सपना देखना है या आयड़ की असल सुंदरता और जीवनदायिनी भूमिका को बचाना है।
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