लद्दाख की आवाज़ सुप्रीम कोर्ट में : सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर गीतांजलि अंगमो की लड़ाई

 

नई दिल्ली। लद्दाख में पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम ने न केवल क्षेत्रीय राजनीति को हिला दिया है, बल्कि पूरे देश का ध्यान भी इस ओर खींचा है। जलवायु कार्यकर्ता और समाजसेवी सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने मामला और गंभीर रूप ले लिया है। अब उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं, और उन्होंने लद्दाख प्रशासन पर सवाल उठाते हुए अपने पति की गिरफ्तारी को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत चुनौती दी है।

दो अक्टूबर को दायर अनुच्छेद 32 की याचिका में गीतांजलि ने कहा कि वांगचुक की गिरफ्तारी न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है। याचिका में यह भी उल्लेख है कि गिरफ्तारी के आदेश की प्रति तक उन्हें नहीं दी गई, जो स्पष्ट रूप से कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है। गीतांजलि ने बताया कि अब तक उनका वांगचुक से कोई संपर्क नहीं हो पाया और उन्हें राजस्थान की जोधपुर जेल में रखा गया है।

लद्दाख में घटनाओं का क्या है मामला

24 सितंबर को लद्दाख के लेह क्षेत्र में अचानक हालात बिगड़ गए। इस दिन प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच टकराव हुआ, जो देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। पथराव, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं, और स्थानीय भाजपा कार्यालय तक निशाना बना।

सवाल उठता है कि क्या यह हिंसा अचानक भड़क गई, या इसे किसी की रणनीति के तहत उकसाया गया? इस सवाल की गांभीरता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि सोनम वांगचुक उस समय मौके पर मौजूद भी नहीं थे। वे शांतिपूर्वक भूख हड़ताल पर बैठे थे।

गीतांजलि अंगमो का आरोप है कि यह पूरा मामला एक सोची-समझी साजिश है। उन्होंने कहा कि डीजीपी के बयान झूठे हैं और प्रशासन घटनाओं को तोड़-मरोड़कर वांगचुक पर आरोप लगा रहा है। उनका सवाल है कि आखिर सुरक्षा बलों को गोली चलाने का आदेश किसने दिया, और लद्दाख जैसे शांत इलाके में अचानक हिंसा क्यों भड़क उठी।

सोनम वांगचुक का संघर्ष और आंदोलन

वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के शिक्षा, विकास और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों को लेकर सक्रिय रहे हैं। वे हमेशा शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करते आए हैं। 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के बाद, जब अनुच्छेद 370 हटाया गया और लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तब से ही क्षेत्र में विशेष दर्जा और राजनीतिक अधिकारों की मांग उठ रही है।

सोनम वांगचुक और लद्दाख एपेक्स बॉडी (LAB) ने इसी मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। 10 सितंबर से वे और 15 अन्य कार्यकर्ता भूख हड़ताल पर थे। जैसे-जैसे उनकी हालत बिगड़ी, आंदोलन और उग्र होता गया। 24 सितंबर को जब बंद का एलान हुआ, तब हजारों युवा सड़कों पर उतर आए और हिंसा भड़क गई।

गीतांजलि का कहना है कि उनका पति कभी किसी को हिंसा के लिए उकसाने वाला नहीं रहा। यह दावा लद्दाख में लंबे समय से उनकी शांतिपूर्ण छवि से भी मेल खाता है।

राजनीतिक और संवैधानिक स्थिति

लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांगें लंबे समय से चल रही हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद स्थिति और जटिल हो गई। प्रशासन का दावा है कि वांगचुक जैसे बड़े नाम वाले कार्यकर्ता, भले ही हिंसा में सीधे शामिल न हों, उनकी मौजूदगी प्रदर्शनकारियों को उकसाने का काम करती है। यही आधार NSA लगाने का दिया गया।

लेकिन आलोचक और गीतांजलि का मानना है कि यह झूठ और डराने की राजनीति है। उनका कहना है कि प्रशासन ने हिंसा का बहाना बनाकर वांगचुक को निशाना बनाया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों को दबाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट अब इस पूरे मामले का अंतिम फैसला करने की स्थिति में है। अगर अदालत गिरफ्तारी को गैरकानूनी मानती है, तो वांगचुक की रिहाई होगी और प्रशासन पर भी सवाल खड़े होंगे। दूसरी ओर, अगर कोर्ट प्रशासन की कार्रवाई को सही ठहराता है, तो आंदोलन को बड़ा झटका लग सकता है।

जनभावना और स्थानीय प्रतिक्रिया

लद्दाख की जनता में लंबे समय से यह भावना रही है कि उन्हें राजनीतिक अधिकारों और विकास में नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। स्थानीय लोग वांगचुक के प्रयासों को सिर्फ एक सामाजिक या पर्यावरणीय आंदोलन नहीं, बल्कि राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष के रूप में देखते हैं।

वांगचुक के समर्थन में कई शिक्षाविद, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता भी सामने आए हैं। उनका कहना है कि अगर किसी नेता की शांतिपूर्ण मौजूदगी को हिंसा से जोड़कर दमन किया गया, तो यह लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों पर चोट है।

गीतांजलि ने कहा, “यह केवल मेरे पति का मामला नहीं, यह लद्दाख की आवाज़ और अधिकारों का मामला है।” उनके शब्दों में इस संघर्ष की व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रासंगिकता झलकती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार

यह मामला केवल एक गिरफ्तारी या आंदोलन तक सीमित नहीं है। यह कानून, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन का परीक्षण है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल सोनम वांगचुक की नियति तय करेगा, बल्कि लद्दाख प्रशासन और भविष्य के आंदोलनों के लिए भी संदेश देगा।

लद्दाख की नज़रें अब सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई हैं। जनता यह देखना चाहती है कि क्या उनकी आवाज़ सुनी जाएगी, या राजनीतिक दबाव और भय की राजनीति आंदोलनकारी नेताओं पर भारी पड़ेगी।

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