Photo and report : Kamal Kumawat

सवाल : VELYS Robotic-Assisted Solution का शोर… पर असली फायदे कितने?
उदयपुर। गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने हाल ही में VELYS Robotic-Assisted Solution के ज़रिये नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की शुरुआत की है। इसे ‘ऐतिहासिक उपलब्धि’ बताया जा रहा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि मेडिकल तकनीक को लेकर ऐसा बड़ा दावा पहले भी कई अस्पताल कर चुके हैं—और उनमें से कई बार यह सिर्फ़ मार्केटिंग का हिस्सा ही साबित हुआ है।
रोबोटिक तकनीक कहकर लोगों में आकर्षण तो पैदा कर दिया जाता है, लेकिन असल सवाल ये है कि क्या मरीजों के लिए यह वास्तव में बेहतर है, या सिर्फ़ महँगी मशीन लगा कर अपनी छवि चमकाई जा रही है?
डॉ. रामावतार सैनी और डॉ. हरप्रीत सिंह की टीम द्वारा सर्जरी तो कर दी गई, लेकिन यह भी सच्चाई है कि हर नई मशीन के साथ डॉक्टरों को वास्तविक महारत हासिल करने में काफी समय लगता है। फिर भी अस्पताल इसे ऐसे पेश कर रहा है जैसे अब पूरा राजस्थान अचानक विश्वस्तरीय ऑर्थोपेडिक सेंटर बन गया हो।
विश्वस्तरीय सेवाएं—यह दावा हर अस्पताल करता है
गीतांजली ग्रुप के एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर अंकित अग्रवाल के बयानों में वही पुराना रटा-रटाया वादा है—“राजस्थान में विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं…”। लेकिन स्थिति यह है कि प्रदेश के लोग अभी भी बेहतर इलाज के लिए बड़े शहरों का रुख करते हैं। ऐसे में सिर्फ़ नई मशीन आ जाने से स्वास्थ्य व्यवस्था बदल जाएगी—यह कहना सच से ज़्यादा भ्रम जैसा लगता है।

मरीजों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा—क्या वास्तव में?
अस्पताल दावा कर रहा है कि अब मरीजों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन सच्चाई यह है कि राजस्थान के अधिकांश अस्पतालों में स्टाफ की कमी, बाद की केयर की कमजोर व्यवस्था और अन्य तकनीकों की कमी अभी भी जमी हुई है। सिर्फ़ एक रोबोट आने से यह समस्याएँ नहीं मिट जातीं।
तकनीक चुनिंदा अस्पतालों में उपलब्ध—पर कारण क्या?
VELYS तकनीक भारत में चुनिंदा जगह उपलब्ध है, लेकिन इसका कारण हमेशा यह नहीं होता कि तकनीक बेहद उन्नत है। कई बार ऐसी मशीनें इसलिए भी कम उपयोग में होती हैं क्योंकि महंगी होती हैं, मेंटेनेंस कठिन, डॉक्टरों को पर्याप्त ट्रेनिंग नहीं
और परिणाम उतने असाधारण नहीं होते जितना प्रचार किया जाता है
“रीयल-टाइम डाटा, तेज़ रिकवरी, कम दर्द”—यह सब दावे पहले भी सुने गए हैं
अस्पताल द्वारा बताए गए फायदे सुनने में तो बड़े आकर्षक लगते हैं, लेकिन मेडिकल जगत में लंबे समय से यह देखा गया है कि कई रोबोटिक तकनीकों के परिणाम पारंपरिक तरीकों से बहुत अलग नहीं होते—फर्क ज़्यादातर बिलिंग और मार्केटिंग में नज़र आता है।
“कॉस्ट इफेक्टिव”—पर पर्दे के पीछे का खर्च कौन बताएगा?
अस्पताल दावा कर रहा है कि मरीज को कोई अलग शुल्क नहीं देना पड़ेगा।
लेकिन यह भी तो हो सकता है कि पैकेज बढ़ा दिया जाए, अन्य सेवाओं में लागत जोड़ दी जाए या रोबोटिक सर्जरी को बाद में ‘प्रीमियम’ टैग दे दिया जाए
हेल्थकेयर में यह नई बात नहीं है।
तकनीक की खूबियां—या सिर्फ़ सूचीबद्ध फायदे?
अस्पताल ने लंबी चौड़ी सूची दे दी है—ज्यादा सटीकता, तेज़ रिकवरी, कम दर्द, कम कट, पर्सनलाइज्ड सर्जरी। लेकिन सच यह है कि जब तक इस तकनीक के लॉन्ग-टर्म क्लीनिकल रिज़ल्ट्स, मरीजों की वास्तविक प्रतिक्रिया और स्वतंत्र मेडिकल स्टडीज़ सामने नहीं आतीं, तब तक ऐसे दावों को सिर्फ़ प्रचार सामग्री ही माना जाता है।
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