
राजसमंद। जिले के नेडच गांव में रविवार दोपहर जो हुआ, उसने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया। जिस पिता की बाहों में बेटी ने चलना सीखा, उसी पिता ने उसकी जिंदगी बेरहमी से खत्म कर दी। 15 साल की मासूम जसोदा—जिसकी आंखों में सपने थे, चेहरे पर बचपन की मुस्कान थी—आज खामोशी में बदल गई।
दोपहर करीब ढाई बजे घर के एक कमरे में वह पल घटा, जिसे सोचकर भी रूह कांप उठती है। धारदार हथियार से पिता ने अपनी ही बेटी का गला काट दिया। वार इतना निर्दयी था कि उसकी गर्दन धड़ से लगभग अलग हो गई। मासूम ने चीखने का भी मौका नहीं पाया—लहूलुहान होकर वहीं ढह गई, वहीं उसकी सांसें थम गईं।
उस वक्त जसोदा का छोटा भाई घर पर नहीं था। पिता ने उसे दूध लाने भेज दिया था। बच्चा जब दूध लेकर लौटा, तो घर की देहरी पर उसका बचपन खत्म हो चुका था। कमरे में उसकी बहन की लाश पड़ी थी—खून से सना फर्श, खामोश दीवारें और सवालों से भरी आंखें। पिता घर में नहीं था, वह फरार हो चुका था।
सूचना मिलते ही पुलिस पहुंची, अफसर आए, एफएसएल टीम ने सबूत जुटाए—लेकिन जसोदा की टूटी सांसों का जवाब किसी के पास नहीं था। जिस घर में कभी हंसी गूंजती थी, आज वहां सन्नाटा चीख रहा है। मां-बाप के साए में पलने वाली बेटी, उसी साए में मार दी गई—यह सवाल हर दिल को कचोट रहा है कि आखिर कसूर क्या था?
पुलिस कहती है कि हत्या के कारणों का अभी खुलासा नहीं हुआ है। आरोपी पिता की तलाश जारी है। मगर गांव की गलियों में एक ही बात गूंज रही है—अगर पिता ही भक्षक बन जाए, तो बच्चियों की सुरक्षा किससे मांगी जाए?
जसोदा अब नहीं रही। रह गई हैं उसकी अधूरी ख्वाहिशें, टूटी चूड़ियां और एक ऐसा दर्द, जिसे यह समाज बहुत देर तक महसूस करता रहेगा।
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