पुतिन–मोदी 2025 शिखर सम्मेलन : भारत–रूस साझेदारी का नया अध्याय

नई दिल्ली: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चार साल बाद भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को एक नई दिशा दी। हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई 23वीं वार्षिक शिखर बैठक में रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, मानव संसाधन, शिक्षा और कनेक्टिविटी जैसे अहम क्षेत्रों में कई समझौतों पर सहमति बनी।

इस शिखर सम्मेलन ने स्पष्ट किया कि भारत और रूस केवल परंपरागत साझेदार नहीं हैं, बल्कि आने वाले दशक के लिए अपने द्विपक्षीय सहयोग को नई ऊँचाई पर ले जाने का साझा लक्ष्य रखते हैं।


पृष्ठभूमि: भारत–रूस संबंध और वैश्विक परिप्रेक्ष्य

भारत और रूस (पूर्व में सोवियत संघ) की मित्रता दशकों पुरानी है। 2000 में पुतिन की पहली भारत यात्रा ने रणनीतिक साझेदारी की नींव रखी थी। आज, 25 साल बाद, यह साझेदारी वैश्विक भू-राजनीति और आर्थिक चुनौतियों के बीच और भी महत्वपूर्ण हो गई है।

यूक्रेन संकट, पश्चिमी प्रतिबंध, वैश्विक ऊर्जा संकट और अमेरिका-यूरोप के दबाव के बीच भारत और रूस ने अपनी साझेदारी को पुनः पुष्ट किया। यह शिखर सम्मेलन न केवल दोस्ती का प्रतीक है, बल्कि आने वाले दशक के लिए रणनीतिक रोडमैप तैयार करने वाला कदम भी है।


मुख्य समझौतों और घोषणाओं का विश्लेषण

1. आर्थिक सहयोग: Vision 2030

दोनों देशों ने इकोनॉमिक कोऑपरेशन प्रोग्राम 2030 पर सहमति जताई। इसका उद्देश्य है:

  • द्विपक्षीय व्यापार को $100 बिलियन तक बढ़ाना

  • निवेश और निर्यात को विविध बनाना

  • दीर्घकालिक और सतत आर्थिक सहयोग सुनिश्चित करना

विश्लेषण: यह समझौता सिर्फ आर्थिक आंकड़ों का लक्ष्य नहीं है। यह पश्चिमी दबावों और वैश्विक अनिश्चितता के बीच भारत और रूस के स्थिर और आत्मनिर्भर आर्थिक रिश्ते को सुनिश्चित करता है।


2. ऊर्जा और क्लीन एनर्जी

  • रूस ने भारत को बिना रुकावट तेल, गैस और कोयला सप्लाई करने का आश्वासन दिया।

  • सिविल न्यूक्लियर एनर्जी में साझेदारी जारी रहेगी, और भारत में नए न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट्स पर सहयोग बढ़ेगा।

  • क्रिटिकल मिनरल्स की सप्लाई चेन पर सहयोग से भारत को हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग और क्लीन एनर्जी में मदद मिलेगी।

विश्लेषण: ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा में सहयोग भारत के लिए रणनीतिक प्राथमिकता है। इससे न सिर्फ ऊर्जा संकट का सामना आसान होगा, बल्कि “मेक इन इंडिया” को भी मजबूती मिलेगी।


3. रक्षा और तकनीकी सहयोग

  • S-400 और Su-57 जैसे प्लेटफॉर्म्स पर चर्चा, लेकिन अब फोकस रक्षा उत्पादन, सह-निर्माण और उच्च तकनीकी सहयोग पर है।

  • शिपबिल्डिंग और पोलर वॉटर प्रशिक्षण में सहयोग से भारतीय नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।

विश्लेषण: यह कदम भारत की रक्षा स्वायत्तता को मजबूत करने के साथ-साथ रूस को वैश्विक रक्षा उत्पादन में साझेदार बनने का अवसर देता है।


4. मानव संसाधन, शिक्षा और स्वास्थ्य

  • मैनपावर मोबिलिटी, छात्रों और स्कॉलर्स के आदान-प्रदान पर समझौते।

  • हेल्थकेयर और मेडिकल एजुकेशन में सहयोग, खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में मानक और उर्वरक पर समझौते।

विश्लेषण: यह साझेदारी सिर्फ बड़े उद्योगों तक सीमित नहीं है। यह युवाओं, शिक्षार्थियों और कामगारों के लिए नए अवसर और रोजगार सृजित करेगी।


5. कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक कॉरिडोर

  • INSTC, नॉर्दर्न सी रूट और चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर को विकसित किया जाएगा।

  • ये मार्ग भारत को रूस और यूरोप के पूर्वी हिस्सों से जोड़ेंगे और पारंपरिक पश्चिमी मार्गों पर निर्भरता कम करेंगे।

विश्लेषण: कनेक्टिविटी परियोजनाएं व्यापार, लॉजिस्टिक्स और भू-रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यह चीन-निर्मित BRI जैसी पहल का विकल्प प्रदान करती हैं।


प्रधानमंत्री मोदी: भारत–रूस साझेदारी को स्थिर, संतुलित और दीर्घकालिक बताते हुए कहा कि Vision 2030 आर्थिक, रक्षा, ऊर्जा और मानव संसाधन में नई ऊँचाई देगी।

राष्ट्रपति पुतिन: भारत के लिए “विश्वसनीय ऊर्जा और रणनीतिक भागीदार” बने रहने का आश्वासन दिया। उन्होंने मेक इन इंडिया प्रोग्राम, रक्षा सहयोग और ऊर्जा आपूर्ति में सहयोग जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया।


  • पश्चिमी दबावों के बीच स्थिरता: भारत–रूस साझेदारी अमेरिका और यूरोप के दबाव के बावजूद मजबूत बनी रहेगी।

  • आत्मनिर्भरता और विविधीकरण: Vision 2030 उच्च तकनीक, ऊर्जा और रक्षा में भारत की क्षमता को बढ़ाएगा।

  • भू-राजनीतिक संतुलन: बहुध्रुवीय विश्व में भारत और रूस का सहयोग वैश्विक राजनीति में संतुलन बनाने में सहायक होगा।


  1. पश्चिमी दबाव और प्रतिबंधों का असर

  2. वैश्विक आर्थिक अस्थिरता

  3. लॉजिस्टिक और तकनीकी कार्यान्वयन की जटिलताएं

  4. स्वदेशी उत्पादन बनाम आयात निर्भरता

  5. वैश्विक राजनीतिक संतुलन बनाए रखना


  • Vision 2030 को धरातल पर लागू करना

  • ऊर्जा, रक्षा, मानव संसाधन और कनेक्टिविटी में योजनाओं को कार्यान्वित करना

  • वैश्विक आर्थिक और राजनयिक संतुलन बनाए रखना

  • स्वच्छ ऊर्जा, आत्मनिर्भरता और उच्च तकनीकी विकास को बढ़ावा देना


2025 का मोदी–पुतिन शिखर सम्मेलन भारत–रूस रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय है। यह केवल औपचारिक मुलाक़ात नहीं, बल्कि Vision 2030 के तहत आने वाले दशक के लिए रोडमैप तय करने वाला अवसर है।

दोनों देश अपने सहयोग को स्थिर, संतुलित और दीर्घकालिक बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यदि सफल हुआ, तो यह साझेदारी भारत को ऊर्जा, रक्षा, उद्योग, रोजगार और वैश्विक कूटनीति में नई ताकत दे सकती है।

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