
उदयपुर। उदयपुर संभाग की सियासत इस वक्त साफ तौर पर भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच सिमटती दिख रही है। कांग्रेस की मौजूदगी ज़रूर है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उसका प्रभाव सीमित नजर आ रहा है। हालिया दौर में कांग्रेस ने एसआईआर और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रदर्शन कर अपनी सक्रियता दिखाने की कोशिश की है, लेकिन राजनीतिक बहस का केंद्र अब बाप और भाजपा ही बन चुके हैं।
इस सियासी टकराव का ताज़ा उदाहरण डूंगरपुर में सामने आया, जहां एक सरकारी बैठक के दौरान उदयपुर से भाजपा सांसद डॉ. मन्नालाल रावत और बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बाप सांसद राजकुमार रोत आमने-सामने आ गए। दोनों नेताओं के बीच हुई तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप ने पूरे संभाग की राजनीति को गरमा दिया है। यह विवाद सिर्फ व्यक्तिगत नहीं बल्कि सत्ता और प्रभाव की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।
बीजेपी सांसद मन्नालाल रावत इस समय ऐसे इकलौते नेता के रूप में उभर रहे हैं जो खुलकर बाप और उसके नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, बाप का प्रभाव आदिवासी इलाकों में लगातार मजबूत होता जा रहा है। हालात यह हैं कि उदयपुर संभाग की अधिकांश आदिवासी विधानसभा और लोकसभा सीटों पर बाप अब निर्णायक भूमिका में नजर आने लगी है, जो आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
डूंगरपुर की जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) की बैठक में हुआ विवाद इसी राजनीतिक खींचतान का परिणाम माना जा रहा है। बैठक के दौरान आरोप-प्रत्यारोप, धमकियों और व्यक्तिगत टिप्पणियों तक बात पहुंच गई। भाजपा सांसद ने जहां थप्पड़ मारने और जान से मारने की धमकी का आरोप लगाया, वहीं बाप सांसद ने खुद को उकसाए जाने की बात कही।
यह टकराव बताता है कि आदिवासी राजनीति अब केवल मुद्दों तक सीमित नहीं रही, बल्कि सत्ता संतुलन की सीधी लड़ाई में बदल चुकी है। एक तरफ भाजपा विकास और सरकारी योजनाओं को आधार बना रही है, तो दूसरी ओर बाप खुद को आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की असली आवाज़ के रूप में पेश कर रही है।
कुल मिलाकर, उदयपुर संभाग में राजनीति अब त्रिकोणीय नहीं रही। कांग्रेस भले ही मैदान में मौजूद हो, लेकिन असली मुकाबला बाप बनाम भाजपा का बन चुका है—और यह टकराव आने वाले चुनावों में और तेज़ होने के संकेत दे रहा है।
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