तिलकायत श्री के सम्मुख 500 वर्ष प्राचीन पुष्टिमार्गीय परंपरा का विधि विधान से हुआ आयोजन

मुख्य प्रशासक एवं मंदिर मंडल सीईओ ने ली तिलकायत श्री के सम्मुख सेवा में समर्पण की शपथ

उदयपुर। पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्रीनाथजी की हवेली में मंगलवार को श्री  जी प्रभु में छप्पन भोग  मनोरथ के शुभ अवसर पर गो.ति.श्री 108 श्री राकेश जी (श्री इंद्रदमन जी) महाराज श्री एवं गो.चि.105 श्री विशाल जी (श्री भूपेश कुमार जी) बावा के सम्मुख पुष्टिमार्ग की प्राचीन काल से चली आ रही 500 वर्ष प्राचीन परंपरा का निर्वाह हुआ।

 यह परंपरा पुष्टि मार्ग के आदिकाल से ही चली आ रही है जिसमें श्रीजी प्रभु की सेवा में नियुक्त होने वाले सेवकों जिसमे प्रभु के निज सेवक, प्रशासनिक अधिकारी एवं सेवा वालों को प्रभु की सेवा में समर्पित होने से पूर्व उन्हें प्रभु की सेवा में आचार विचार की शुद्धता, अंतःकरण की शुद्धता एवं प्रभु की सेवा में पूर्ण समर्पण भाव एवं निष्ठा से प्रभु की सेवा में गुरु के समक्ष गुरु कृपा से प्राप्त होने वाली सेवा की शपथ लेनी होती है।



इसी परंपरा के निर्वाह के लिये गो. ति.108 श्री राकेश जी (श्री इंद्रदमनजी )महाराज श्री की आज्ञानुसार एवं गो.चि. श्री विशाल जी (श्री भूपेश जी) बावा श्री की प्रेरणा से मोती महल स्थित सफेदी महल में तिलकायत श्री के सम्मुख हाल ही में प्रथम मुख्य प्रशासक के रूप में नियुक्त हुए रिटायर्ड आईएएस भारत भूषण व्यास,एवं वर्तमान में नियुक्त मंदिर मंडल के कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) कैलाश चंद्र शर्मा ने गुरु चरण गो.ति.108 श्री राकेश जी (श्री इंद्रदमन जी) महाराज श्री के सम्मुख प्रभु की सेवा में पूर्ण समर्पण भाव, श्रद्धा एवं निष्ठा से सेवा में समर्पित होने की शपथ ली।


  इस अवसर पर श्रीनाथजी मंदिर के अधिकारी सुधाकर उपाध्याय, श्रीनाथजी मंदिर के मुख्य प्रशासक भारत भूषण व्यास, सहायक अधिकारी अनिल सनाढ्य,मंदिर मंडल बोर्ड के सदस्य  सुरेश संघवी,  समीर चौधरी,  राजेश भाई कापड़िया, मंदिर मंडल के सीईओ कैलाश चंद्र शर्मा, संपदा अधिकारी ऋषि पांडे, तिलकायत के सचिव लीलाधर पुरोहित, तिलकायत श्री के मुख्य सलाहकार  अंजन शाह, मीडिया प्रभारी एवं पीआरओ गिरीश व्यास, मंदिर के पंड्या जी परेश नागर, समाधानी उमंग मेहता,ओम प्रकाश जलंधरा, हर्ष सनाढ्य,कैलाश पालीवाल, प्रतीक, आशीष, देवेश, दिव्या आदि सैकडों वैष्णव जन उपस्थित थे।

500 वर्ष से चली आ रही परंपरा :

 यह परंपरा आचार्य चरण श्री महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी एवं श्री विट्ठलनाथजी (गुसाई जी) के समय से चली आ रही है जिसका प्रमाण श्रीजी प्रभु के आरंभिक सेवकों जिसमें बंगाली ब्राह्मण सेवकों को श्री महाप्रभु जी ने सेवा में समर्पण की शपथ दिलाई थी एवं श्रीनाथजी के प्रथम अधिकारी श्री कृष्णदास जी को श्री विट्ठलनाथ जी (श्री गुसाई जी) ने सेवा में समर्पण की शपथ दिलाई थी! उस समय से इस परंपरा का लगातार निर्वाह होता आया है जिसमें प्रभु की सेवा में समर्पित सेवक प्रभु के प्रति पूर्ण निष्ठा श्रद्धा से पूर्ण रूप से समर्पण भाव की शपथ लेता है जिससे कि उसे जाने अनजाने में प्रभु की सेवा में कोई अपराध न हो इस भाव का उसे हमेशा स्मरण रहे जिससे कि प्रभु की सेवा में वह पूर्ण समर्पण भाव से सेवा में संलग्न रहे ! आज भी यह परंपरा अनवरत जारी है, आज भी जब नए सेवकों को प्रभु सेवा में नियुक्त किया जाता है जिनमें मुखिया जी, भीतरिया जी, अधिकारी जी, आदि निज सेवकों को गुरु स्वरूप तिलकायत श्री के सम्मुख निज सेवा में समर्पण की शपथ लेनी होती है!

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