अरावली संरक्षण : सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रकृति प्रेमियों ने किया स्वागत, कहा– जनभावनाओं की हुई जीत

उदयपुर। अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद देशभर के प्रकृति प्रेमियों में संतोष और उम्मीद का माहौल है। प्रकृति शोध संस्थान ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह जनभावनाओं का सम्मान है और इससे आम लोगों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास और मजबूत हुआ है।

संस्थान की ओर से प्रो. पीआर व्यास ने कहा कि अरावली को बचाने के लिए लगातार प्रयास किए गए। राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को उठाया गया और विभिन्न मंचों के माध्यम से समाज को जागरूक किया गया। संगोष्ठियों, परिचर्चाओं, मीडिया चैनलों पर चर्चाओं, पोस्टर्स और सामाजिक संवाद के जरिए अरावली संरक्षण की आवाज बुलंद की गई।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिली राहत

प्रो. व्यास ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस आदेश पर रोक लगाई गई है, जिसमें 100 मीटर से ऊपर के क्षेत्र को ही अरावली का हिस्सा माना गया था। यह फैसला जनमानस की भावना के अनुरूप है और इससे यह स्पष्ट हुआ है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर न्यायपालिका गंभीर है।

संस्थान का मानना है कि यह फैसला न केवल अरावली बल्कि पूरे देश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक संदेश देता है।

भूगोल, भू-आकृति और पारिस्थितिकी को आधार बनाने की मांग

प्रकृति शोध संस्थान ने कहा कि भविष्य में किसी भी तरह के आदेश जारी करते समय भौगोलिक स्वरूप, भू-आकृतिक संरचना, जियोलॉजिकल बनावट और जियो-हेरिटेज को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यही आधार प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा कर सकता है।

संस्था का यह भी कहना है कि केवल अरावली ही नहीं, बल्कि देश की सभी प्रमुख पर्वतमालाओं की सीमाओं का निर्धारण सर्वे ऑफ इंडिया के मानकों के अनुसार किया जाना चाहिए, ताकि प्राकृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखा जा सके।

राष्ट्रीय स्तर पर ‘हिल्स एंड माउंटेन कंजर्वेशन पॉलिसी’ की मांग

प्रकृति शोध संस्थान ने मांग की है कि देश में एक राष्ट्रीय स्तर की इंटीग्रेटेड हिल्स एंड माउंटेन कंजर्वेशन पॉलिसी बनाई जाए। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में जैव विविधता, वन्यजीव संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी संतुलन को मजबूती मिलेगी।

संस्था ने कहा कि इससे जंगलों का संरक्षण होगा, वन्य जीव सुरक्षित रहेंगे, प्राकृतिक जलधाराएं निर्बाध बहेंगी और झरने व नदियां अपने स्वाभाविक स्वरूप में बनी रहेंगी।

भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षण जरूरी

प्रकृति शोध संस्थान ने कहा कि अरावली एक अमूल्य प्राकृतिक धरोहर है, जिसे अक्षुण्ण रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। ताकि आने वाली पीढ़ियां भी प्रकृति के इस अमूल्य उपहार को सुरक्षित और जीवंत रूप में देख सकें।

अंत में संस्था ने सभी पर्यावरण प्रेमियों, सामाजिक संगठनों और नागरिकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इसी एकजुटता से प्रकृति की रक्षा संभव है।

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