
नई दिल्ली। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), नई दिल्ली ने आज आयुर्वेद दिवस 2025 के अवसर पर एक सशक्त बाइक रैली का आयोजन कर स्वास्थ्य संवर्धन और पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर जोर दिया। इस वर्ष रैली का थीम रहा — “जन-जन के लिए आयुर्वेद, धरती के लिए आयुर्वेद”, जिसका उद्देश्य आयुर्वेद के पारम्परिक सिद्धांतों को आधुनिक जीवनशैली के साथ जोड़कर व्यापक जन-भागीदारी जुटाना था।
रैली की शुरुआत संस्थान परिसर से निदेशक प्रो. (डॉ.) प्रदीप कुमार प्रजापति ने हरी झंडी दिखाकर की। कार्यक्रम में पूर्व निदेशक (प्रभारी) प्रो. (डॉ.) मंजुषा राजगोपाल, विभिन्न विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्य, स्नातकोत्तर व पीएचडी शोधार्थी तथा संस्थान के अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे। समारोह में उपस्थित आयोजकों और प्रतिभागियों ने नुक्कड़, पोस्टर और हाथों में थामे झंडों व बैनरों के जरिए रैली के संदेश को व्यापक रूप से प्रस्तुत किया।
प्रतिभागियों का जत्था AIIA परिसर से रवाना होकर आयुष मंत्रालय तक गया। रैली मार्ग में आयोजित छोटे-छोटे स्टॉल और बुलेटिन के ज़रिये निवारक स्वास्थ्य सेवाओं, पौष्टिक आहार, योगाभ्यास और आयुर्वेदिक जीवनशैली के सरल उपायों के बारे में जागरूकता साझा की गई। आयोजकों ने बताया कि रैली केवल एक आयोजिनात्मक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है — जहाँ नागरिकों ने प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाये रखने और स्वास्थ्य-रक्षण को प्राथमिकता देने की शपथ ली।
इस अवसर पर निदेशक प्रो. (डॉ.) प्रदीप कुमार प्रजापति ने कहा कि यह पहल आयुर्वेद के शाश्वत सिद्धांत ‘संतुलन’ को सामने लाती है। उनके शब्दों में, “आयुर्वेद न केवल रोगों के उपचार का ज्ञान है, बल्कि यह जीवन-शैली, पर्यावरणीय संवेदनशीलता और समाजिक स्वास्थ्य का मार्गदर्शक भी है। आज की रैली का उद्देश्य युवाओं और आम नागरिकों को यह संदेश देना था कि छोटे-छोटे व्यवहार में बदलाव—जैसे स्थानीय, मौसमी भोजन, नियमित व्यायाम और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण—दीर्घकालिक स्वास्थ्य और ग्रह के संरक्षण दोनों में योगदान करते हैं।”
AIIA ने कहा कि यह रैली 23 सितम्बर को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का एक सक्रिय प्रोत्साहन थी। हाल ही में भारत सरकार ने 23 सितम्बर को वर्षانہ आयुर्वेद दिवस के रूप में निर्धारित किया है ताकि देशभर में इस पर अधिक संगठित और समन्वित कार्यक्रम हो सकें। 23 सितम्बर शरद समरिपात (Autumnal Equinox) के दिन आता है, जिसे परंपरागत रूप से प्रकृति में संतुलन का प्रतीक माना जाता है — एक ऐसा ही मूलभाव आयुर्वेद भी प्रतिपादित करता है।
आयुष मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने भी रैली के दौरान उपस्थित लोगों से संवाद किया और बताया कि मंत्रालय व AIIA मिलकर जागरूकता कार्यक्रमों, प्रशिक्षण पहलों और समुदाय-आधारित स्वास्थ्य पहलों को और विस्तृत करेंगे। मंत्रालय ने इस कड़ी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक आयुर्वेदिक निवारक चिकित्साओं और जीवनशैली मार्गदर्शन को पहुँचाने का संकल्प जताया।
स्थानीय पृष्ठभूमि से जुड़ी बात करें तो रैली में शामिल अनेक युवा और विद्यार्थी अपनत्व के भाव से दिखे। स्नातकोत्तर शोधार्थी सीमा वर्मा (नाम परिवर्तित) ने कहा, “मेरा मानना है कि आयुर्वेद सिर्फ़ किताबों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसे जीवन में उतारना होगा। आज हमने उसे दर्शाया — सड़क पर, सार्वजनिक जगहों पर।” वहीं एक वरिष्ठ संकाय सदस्य ने रैली को शिक्षा और आम जनता के बीच पुल बनाने का एक स्वस्थ प्रयास बताया।
विशेषज्ञों के अनुसार, आयुर्वेद को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा के साथ जोड़ने के लिए साक्ष्य-आधारित अनुसंधान और सार्वजनिक प्रशिक्षण आवश्यक हैं। AIIA के कुछ शोधकर्ताओं ने आगामी महीनों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली नई जागरूकता परियोजनाओं की रूपरेखा का संकेत दिया, जिनमें स्कूल-स्तर पर पोषण शिक्षा, कार्यस्थलों में जीवनशैली सुधार कार्यक्रम और सामुदायिक स्वास्थ्य शिविर शामिल होंगे।
रैली ने पर्यावरण संरक्षण के संदेश को भी प्रमुखता से उठाया। आयोजकों ने कहते हुए बताया कि आयुर्वेद की कई पद्धतियाँ स्थानीय एवं मौसमी संसाधनों के संरक्षण पर बल देती हैं — उदाहरण के तौर पर स्थानीय जड़ी-बूटियों का सतत उपयोग और जैव विविधता की रक्षा। रैली के दौरान प्रतिभागियों ने प्लास्टिक-न्यूनिकरण और वानिकी सुधार संबंधी ब्रीफ्स भी साझा किए।
समापन सत्र में आयोजकों ने रैली की सफल सहभागिता के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आगाह किया कि ऐसी गतिविधियाँ केवल प्रतिवर्ष नहीं, बल्कि निरंतर रूप में ज़रूरी हैं ताकि आयुर्वेद का संदेश गहराई से समाज में समा सके। AIIA ने आगे की तैयारियों में राज्यस्तरीय पार्टनरशिप और नागरिक संगठनों के साथ मिलकर व्यापक अभियान चलाने की बात कही।
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