पटना: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के भीतर बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया है। पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। इस निर्णय ने लालू परिवार में गहराते मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया है। पार्टी के अंदरखाने से खबर है कि तेज प्रताप लगातार संगठनात्मक निर्णयों की अवहेलना कर रहे थे, जिससे पार्टी की छवि प्रभावित हो रही थी।
बीजेपी का वार: “लालू परिवार में लोकतंत्र नहीं, वंशवाद ही नीति है”
तेज प्रताप यादव को पार्टी से बाहर निकालने के फैसले पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आरजेडी और लालू प्रसाद यादव को आड़े हाथों लिया है। पार्टी नेताओं ने कहा कि यह फैसला बताता है कि आरजेडी में पारिवारिक लोकतंत्र नहीं बल्कि एकछत्र शासन है। बीजेपी प्रवक्ताओं ने इसे राजनीतिक ड्रामा करार देते हुए कहा कि लालू परिवार के अंदर चल रही खींचतान अब जनता के सामने आ गई है।
प्रशांत किशोर का तंज: “यादवों की चिंता है तो किसी आम यादव को सीएम चेहरा बनाएं”
जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर ने तेज प्रताप के निष्कासन को लेकर लालू यादव पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा, “अगर लालू यादव को वास्तव में यादव समाज की चिंता है, तो किसी आम यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करें।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि जन सुराज आंदोलन ऐसे हर सामाजिक न्याय के निर्णय के साथ खड़ा रहेगा। उनके इस बयान को विपक्ष की ओर से एक नई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
जेडीयू का हमला: “लालू जनता को मूर्ख बना रहे हैं”
जनता दल यूनाइटेड (JDU) के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने लालू यादव पर जमकर हमला बोला। पीटीआई से बातचीत में उन्होंने कहा, “लालू जी लोगों को मूर्ख बनाने का काम कर रहे हैं। यह सब दिखावा है और इसका मकसद केवल सहानुभूति बटोरना है।” जेडीयू का यह भी कहना है कि तेज प्रताप का निष्कासन साजिश का हिस्सा हो सकता है जिससे राजनीतिक लाभ लिया जा सके।
राजनीति में नया मोड़: तेज प्रताप की अगली चाल पर टिकी निगाहें
तेज प्रताप यादव अब आरजेडी से बाहर हैं, और सवाल यह है कि वे अब क्या करेंगे। क्या वे नई पार्टी बनाएंगे? क्या वे जन सुराज या किसी अन्य दल से हाथ मिलाएंगे? या राजनीति से कुछ समय के लिए दूर हो जाएंगे? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं। फिलहाल तेज प्रताप की चुप्पी को राजनीतिक तूफान से पहले की शांति माना जा रहा है।
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