अमेरिका ने ईरान पर किया बड़ा हमला: तीन परमाणु ठिकाने तबाह…ट्रंप का राष्ट्र के नाम संबोधन

तेहरान/वाशिंगटन। अमेरिका ने रविवार तड़के ईरान की तीन प्रमुख परमाणु साइट्स—फोर्डो, नतांज और इस्फहान—पर हवाई हमला किया। भारतीय समयानुसार सुबह 4:30 बजे हुए इस हमले की जानकारी कुछ ही घंटे बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दी। उन्होंने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि इन ठिकानों को पूरी तरह से “obliterate” यानी नेस्तनाबूद कर दिया गया है। ट्रम्प ने यह भी चेतावनी दी कि अगर ईरान ने अब भी शांति नहीं अपनाई तो अगला हमला पहले से भी बड़ा होगा।

हमले के बाद पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका की कार्रवाई को ‘इतिहास बदलने वाला कदम’ बताया और कहा कि यह हमला सिर्फ परमाणु ठिकानों पर नहीं, बल्कि आतंक की जड़ पर किया गया है। वहीं, ईरान ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का उल्लंघन करार दिया है और कहा है कि अमेरिका की यह कार्रवाई ‘जंगल के कानून’ जैसी है।

हमले के लिए चुनी गई जगहें रणनीतिक रूप से बेहद अहम थीं। फोर्डो साइट एक भूमिगत यूरेनियम संवर्धन केंद्र है, जबकि नतांज ईरान का सबसे बड़ा और संवेदनशील परमाणु संयंत्र माना जाता है। इस्फहान में भारी जल और प्लूटोनियम प्रोसेसिंग का काम होता है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो फुटेज में फोर्डो के पास जबरदस्त विस्फोट और धुएं के बादल दिखाई दे रहे हैं। हालांकि अभी इन फुटेज की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी है।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि यह हमला अमेरिका की सुरक्षा और वैश्विक स्थिरता के लिए आवश्यक था। उन्होंने कहा कि ईरान लगातार अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन कर रहा था और इसके परमाणु कार्यक्रम से न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया को खतरा था। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अगर मजबूर किया गया तो पीछे नहीं हटेगा।

वहीं इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस कदम की खुलकर सराहना की। उन्होंने कहा कि यह हमला केवल ईरान को नहीं, बल्कि उस पूरे नेटवर्क को संदेश है जो आतंकी गतिविधियों को पालता-पोसता है। नेतन्याहू ने यह भी कहा कि दुनिया को अब यह समझना होगा कि कूटनीति की सीमा होती है, और जब दुश्मन की भाषा गोलियों की हो, तो जवाब भी वैसा ही होना चाहिए।

ईरान की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। ईरानी परमाणु ऊर्जा संगठन (AEOI) ने कहा कि ये ठिकाने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में थे और किसी भी प्रकार के नियमों का उल्लंघन नहीं कर रहे थे। ईरान ने IAEA पर भी आरोप लगाए हैं कि हमले से पहले और बाद में एजेंसी की चुप्पी इस बात का संकेत है कि वह अमेरिका की कार्रवाई में मौन समर्थन दे रही है। AEOI ने यह भी कहा है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को नहीं रोकेगा और देश के हजारों वैज्ञानिक इसकी दिशा में पहले से अधिक जोश और प्रतिबद्धता के साथ काम करेंगे।

13 जून से शुरू हुए इस संघर्ष में अब तक ईरान में 657 लोगों की मौत हो चुकी है और 2000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। यह आंकड़े अमेरिका स्थित ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स न्यूज एजेंसी ने जारी किए हैं। हालांकि ईरानी स्वास्थ्य मंत्रालय 430 नागरिकों के मारे जाने और 3,500 लोगों के घायल होने की पुष्टि करता है। दूसरी ओर, इजराइल में अब तक 24 लोगों की जान गई है और 900 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इस संघर्ष की आग अब केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रही, बल्कि इससे जुड़े तमाम प्रॉक्सी संगठन भी सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं।

अब पूरी दुनिया की निगाहें संयुक्त राष्ट्र और प्रमुख वैश्विक शक्तियों की ओर हैं। अभी तक संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने केवल यह कहा है कि वे स्थिति की निगरानी कर रहे हैं। रूस, चीन, भारत और यूरोपीय संघ की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन कूटनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है।

इस हमले के समय को लेकर भी कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। ट्रम्प आगामी राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी में लगे हैं और माना जा रहा है कि यह सैन्य कार्रवाई उनकी “सख्त राष्ट्रवादी” छवि को मजबूत करने के लिए की गई है। यह हमला चीन और रूस जैसे विरोधी देशों को अप्रत्यक्ष चेतावनी भी माना जा रहा है।

हालांकि सवाल यह भी है कि क्या यह हमला केवल एक बार की सैन्य कार्रवाई थी, या यह एक बड़े संघर्ष की शुरुआत है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान इसका जवाब दे सकता है और इसके लिए वह प्रत्यक्ष सैन्य हमले के बजाय अपने प्रॉक्सी नेटवर्क का इस्तेमाल कर सकता है। होरमुज जलडमरूमध्य में तेल यातायात को बाधित करना, इजराइली या अमेरिकी ठिकानों पर ड्रोन या मिसाइल हमला करना, और सीरिया, इराक या यमन जैसे देशों में छद्म युद्ध छेड़ना – ये सभी संभावनाएं अब प्रबल हो गई हैं।

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई की प्रतिक्रिया का दुनिया को इंतजार है। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने संकेत दिया है कि जवाबी कार्रवाई की रूपरेखा तैयार की जा रही है।

फिलहाल इतना तय है कि यह हमला केवल तीन ठिकानों को तबाह करने का मामला नहीं है। यह एक भू-राजनीतिक सन्देश है – कि अमेरिका अब रणनीतिक ‘सहनशीलता’ नहीं, बल्कि ‘निर्णायक आक्रमण’ की नीति पर चल रहा है। इससे न सिर्फ ईरान, बल्कि रूस, चीन, और उत्तर कोरिया जैसे देशों को भी संदेश दिया गया है कि अब “रेड लाइन” पार करने की छूट नहीं दी जाएगी।

अब यह देखना बाकी है कि क्या यह हमला वाकई में ‘इतिहास बदलने वाला’ साबित होगा, या यह एक ऐसे चक्रव्यूह की शुरुआत है, जिससे निकलना पूरे विश्व के लिए कठिन हो जाएगा। दुनिया एक बार फिर युद्ध और शांति के दोराहे पर खड़ी है।

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