
उदयपुर। ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विश्विद्यालय के तत्वाधान मे आयोजित हो रहे नौ दिवसीय अलविदा तनाव हैप्पीनैस प्रोग्राम के अंतर्गत आज सातवें दिन तनाव मुक्ति विशेषज्ञ पूनम बहन ने सभी साधको का अलौकिक (ईश्वरीय ) जन्म उत्सव मना उन्हें शिव बाबा की गोेद मै होने की अनुभूती दिलावाई।
हैप्पीनैस प्रोग्राम के मीडिया प्रभारी प्रोफेसर विमल शर्मा के अनुसार ब्र. कु. पूनम बहन ने सर्वप्रथम लेखराज दादा के 12 सांसारिक गुरुओं के पश्चात स्वयं परमात्मा शिव के उनके तन मे अवतरित होकर 33 वर्ष तक प्रत्येक दिन दिव्य ज्ञान (मुरली) सुनाने की जीवन यात्रा का विस्तार से वर्णन किया।
उन्होंने बताया कि सिंध हैदराबाद मे 1876 मे जन्मे दादा लेखराज के पिता प्राइमरी स्कूल के हेड मास्टर थे। बचपन मे ही उनकी मां गुजर गई व कुछ वर्ष बाद पिता का साया भी उठ गया।
चाचा के अनाज के व्यापार मे सहयोग करते रहने के बाद हीरे जवाहरात का व्यवसाय शुरु कर खूब संपन्नता व ख्याति प्राप्त की । 1936 मे 60 वर्ष की आयु मे उनको बनारस मे अपने मित्र के यहां प्रथम चैतन्य अनुभव हुआ तद्पश्चात विश्व मे परमाणु विध्वंश, प्राकृतिक आपदाओं आदि ने उनमें विरक्ति पैदा कर दी । दूसरे साक्षात्कार मे उन्होने देखा कि आसमान से छोटे छोटे सितारे नीचे आकर देवी देवता का रुप ले रहे साथ ही आकाशवाणी हुई कि ऐसी सुख की दुनिया बनाने के लिये परमात्मा ने तुम्हें निमित्त बनाया है । तीसरा साक्षात्कार उन्हें बम्बई के बबूलनाथ मंदिर मे विष्णु चतुर्भुज रुप दर्शन से हुआ तब वे समझ गये कि ये परम सदगुरु की महिमा से ही हुआ है ।

एक दिन घर में गुरु का सत्संग चल रहा था परंतु दादा बीच में ही उठकर अपने कमरे में चले गए। उनकी बहू पीछे पीछे गई तब उन्होंने देखा कि कमरा लाल प्रकाश से भरा हुआ है व दादा बैठे हैं वह उनके मुख से निकल रहा था. “गजानंद स्वरूपम शिवोहम शिवोहम, प्रकाश स्वरूपम शिवोहम शिवोहम, ज्ञान स्वरूपम शिवोहम शिवोहम ” उन्होंने दादा से पूछा कि ये क्या था तो उन्होंने कहा कि वाईट लाईट थी और आगे कुछ समझ नहीं आया । यह परमधाम से परमज्योति परमात्मा शिव का दिव्य अवतरण दादा के तन मे था। उसके बाद रोज शिव बाबा ने उनके तन का आधार लेकर ज्ञान सुनना प्रारंभ किया। यह जीवन में परिवर्तन करने वाला अद्भुत ज्ञान था जो आत्माओं को तृप्त करने लगा । दिव्य अवतरण के बाद परमात्मा ने उन्हें अलौकिक कर्तव्य वाचक नाम दिया प्रजापति ब्रह्मा, जिन्हें प्यार से सभी बाबा कहने लगे। परमात्मा ने बाबा के तन द्वारा जो ज्ञान सुनाया उसे ब्रह्मा कुमारीज मे मुरली कहा जाता है क्योंकि उसके सुनने के बाद मन मयूर डांस करने लगता है। परमात्मा शिव उनके तन में सदा नहीं रहते , ज्ञान सुनकर वापस परमधाम चले जाते थे ।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विश्विद्यालय की स्थापना सभी धर्म के लोगों मे दिव्य ज्ञान व मैडिटेशन के माध्यम से स्वर्गानुभूती कराने के उद्देश्य से की गई। मातृ शक्ति सम्मान हेतु ज्ञान सुनाने का अनुपम कार्य केवल बहनें ही करती आई है । स्थापना के 14 वर्ष पश्चात सन 1950 से इसका अंतर्राष्ट्रीय हेडक्वाटर माउंट आबू मे स्थित है ।
18 जनवरी 1969 को 33 वर्षों तक निरंतर मुरली सुनाते रहने के बाद 93 वर्ष की पूर्णायु मे ब्रह्मा बाबा ने देह त्यागी । आज 137 देशों मे 8700 स्थाई केन्द्र पर ब्रह्माकुमारीज द्वारा मानव उत्थान का यह निशुल्क परमार्थ अनवरत चल रहा है।
आज सभी शिविरार्थियों के अलौकिक जन्म उत्सव पश्चात शिव बाबा के नाम अपनी जिन्दगी का सफरनामा लिख कर अर्पण करने को कहा गया साथ ही अपनी गलतियाँ पर क्षमा दान व वर्तमान समस्याओं को शिव बाबा के हवाले कर निश्चिंत नव सुखमय जीवन की अनंत शुभकामनाएं प्रेषित की गई।
कल पूनम बहन ऐक और अति महत्वपूर्ण विषय “मानव जीवन का लक्ष्य” पर साधकों का मार्गदर्शन करेंगी।
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