
उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के राजस्थान कृषि महाविद्यालय और एंटोमोलॉजिकल रिसर्च एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में 18 से 20 सितंबर तक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन होगा। इस सम्मेलन का विषय – “बदलते कृषि परिदृश्य में सतत पादप संरक्षण की प्रगति।”
इस सम्मेलन की जानकारी देते हुए अधिष्ठाता डॉ. मनोज महला ने सोमवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि यह सम्मेलन किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। उन्होंने बताया-आज खेती के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं और वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों तथा नीति निर्माताओं को मिलकर समाधान तलाशना होगा।
डॉ. महला ने जानकारी दी कि सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी उपस्थित रहेंगे। विशिष्ट अतिथियों में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट, राजस्थान सरकार के कृषि एवं बागवानी मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा और उदयपुर लोकसभा सांसद डॉ. मन्ना लाल रावत शामिल होंगे।
इस सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा होगी उनमें प्रमुख हैं—जैविक और पर्यावरण-अनुकूल तरीके से कीट प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन का असर, नए कीटों की पहचान और नियंत्रण, नैनो तकनीक और जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और बायो-इन्फॉर्मेटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों की भूमिका, फसलों की सुरक्षा के लिए उद्यमिता और नीतिगत पहल। सम्मेलन का उद्देश्य यह है कि वैज्ञानिक खोज और तकनीक को किसानों तक सरल तरीके से पहुँचाया जाए ताकि वे कम लागत में ज़्यादा लाभ उठा सकें।
कुलगुरु डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने विस्तार से बताया कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो लगभग 18 प्रतिशत जीडीपी में योगदान देती है और 45 प्रतिशत से अधिक आबादी की आजीविका का साधन है। इसके बावजूद हर साल लगभग 13.7 प्रतिशत फसल कीटों और बीमारियों की भेंट चढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि खेती की ज़मीन लगातार घट रही है और युवाओं में खेती करने का रुझान भी कम हो रहा है। ऐसे समय में 1.27 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना देश के सामने एक बड़ी चुनौती है।
डॉ. कर्नाटक ने बताया कि मौसम के बदलते हालात, पुराने कीटों का दोबारा उभरना, विदेशों से आने वाली आक्रामक प्रजातियों का फैलना और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल न केवल फसल उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक बनता जा रहा है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अब समय आ गया है जब खेती में पर्यावरण-सुरक्षित और टिकाऊ उपाय अपनाए जाएँ।
प्रेसवार्ता के अंत में डॉ. हेमंत स्वामी ने धन्यवाद ज्ञापित करते बताया कि इस तरह के सम्मेलन खेती को टिकाऊ बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। इनसे न सिर्फ वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के बीच विचार-विमर्श होगा बल्कि किसानों को भी नई तकनीकों और उपायों की जानकारी मिलेगी।
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