
सैयद हबीब, उदयपुर।
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों एक अलग ही तरह की खिचड़ी पक रही है—जिसमें न्याय, सत्ता और प्रतिरोध के मसाले अलग-अलग बर्तनों में उबल रहे हैं। हालिया घटनाक्रम में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली का सीआईडी-सीबी कार्यालय में बयान देना, कोटा केस को लेकर नहीं बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य में सत्ता के व्यवहार को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है—क्या कानून सत्ता के करीबियों के लिए अलग और विपक्ष के लिए अलग है?
डोटासरा का बयान न सिर्फ व्यक्तिगत आरोपों की सफाई थी, बल्कि उसमें सत्ता के चरित्र पर एक सीधा हमला था। उन्होंने मदन दिलावर जैसे मंत्री पर दर्ज मामलों की याद दिलाते हुए एक तीखा प्रश्न उठाया—”14 मुकदमे वाले को मंत्री बना रखा है, और हमसे सवाल किए जा रहे हैं?”

यह बयान सत्ता के न्यायिक संतुलन को कठघरे में खड़ा करता है। विपक्ष की यह चिंता अब आम हो चली है कि प्रशासनिक कार्रवाई अब “राजनीतिक चयन” से तय हो रही है, न कि समान न्याय के सिद्धांत से। डोटासरा की यह टिप्पणी, “कोई भी अधिकारी जनता को कुचलने के लिए नहीं, उनकी सेवा के लिए है”—एक भावनात्मक अपील से ज्यादा, लोकतंत्र की बुनियादी समझ का स्मरण भी है।
टीकाराम जूली की टिप्पणी, जिसमें उन्होंने मौजूदा सरकार को “सर्कस” बताया, विपक्षी रणनीति का नया रुख दिखाती है—अब वे सिर्फ तथ्यों के आधार पर नहीं, बल्कि प्रतीकों और व्यंग्यात्मक हमलों से भी सरकार को घेर रहे हैं। यह कांग्रेस की तरफ से एक narrative shift है, जहां जनसंवेदनाओं के साथ-साथ लोकतंत्र की भाषा का सहारा लिया जा रहा है।

इस पूरे घटनाक्रम से एक और बात साफ होती है—राजनीति अब केवल सदन के भीतर नहीं, एफआईआर और चार्जशीट के इर्द-गिर्द भी लड़ी जा रही है। सत्ता की छवि को संदेहास्पद और दमनकारी साबित करने की कोशिश में कांग्रेस पूरी ताकत झोंक रही है, जबकि सरकार अब तक चुप्पी साधे हुए है।
एक दिलचस्प बिंदु यह भी है कि डोटासरा और जूली खुद चलकर बयान देने पहुंचे—यह न सिर्फ कानूनी प्रक्रिया में सहयोग दिखाता है बल्कि जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश भी है कि “हम डरने वाले नहीं हैं।” और यह विपक्ष की उस छवि को गढ़ने की कोशिश है जो सत्ता से टकराने को तैयार है।
निष्कर्ष:
राजस्थान की राजनीति में यह टकराव एक बड़ी लड़ाई की भूमिका बन सकता है। 2028 के विधानसभा चुनावों तक यह मुद्दा सत्ता बनाम जनप्रतिनिधित्व की भावना को और धार देगा। अगर सरकार विपक्ष की आवाज को ‘राजकार्य में बाधा’ बता कर दमन करती रही, और खुद के दामन पर लगे दागों को नजरअंदाज करती रही, तो यह ‘राजनीतिक एफआईआर’ का खेल उल्टा भी पड़ सकता है।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात है, लेकिन जब “कानून” की लाठी भी उसी दिशा में झुकी दिखने लगे, तो विपक्ष को नया नैरेटिव मिल जाता है—और शायद यही नैरेटिव 2025 की राजनीति में निर्णायक भी साबित हो।
अगर आप चाहें तो इस विश्लेषण को टीवी पैकेज या लेख के रूप में भी ढाल सकता हूं—ओपनिंग, क्लोजिंग और स्लग के साथ।
About Author
You may also like
-
Wicked’ star Jonathan Bailey is People’s Sexiest Man Alive
-
DMK Takes Battle Over Electoral Roll Revision in Tamil Nadu to the Supreme Court
-
हरमाड़ा, जयपुर : मौत बनकर दौड़ा डंपर, 13 लोगों की चीखें हाईवे पर थम गईं
-
भारत ने रचा इतिहास: विमेंस क्रिकेट वर्ल्ड कप पर कब्ज़ा, फाइनल में दक्षिण अफ्रीका 52 रन से पराजित
-
Jodhpur Shocked as Bus-Trailer Collision Claims 18 Lives