बाअदब, बामुलाहिजा, होशियार! श्रीनाथजी की नगरी में शाही परछाईं… रामनवमी पर डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ सपरिवार हुए प्रभु दर्शन को उपस्थित… तिलकायत घराने से हुआ परंपरागत समाधान

उदयपुर/नाथद्वारा।

नाथद्वारा की फिज़ाओं में आज फिर से गूंज उठी मेवाड़ की परंपरा की पुरवाई।

रामनवमी के पावन पर्व पर, जब प्रभु श्रीराम के जयकारे गूंज रहे थे और श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा भक्ति की महक में सराबोर थी—तभी राजसी क़दमों की गूंज ने इतिहास के गलियारों को फिर से जीवंत कर दिया।
गद्दी उत्सव की परंपरा के उपरांत, मेवाड़ के पूर्व राज परिवार के युवा डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ पहली बार सपरिवार नाथद्वारा पधारे। साथ थीं उनकी धर्मपत्नी निवृत्ति कुमारी मेवाड़, सुपुत्र हरितराज सिंह मेवाड़, सुपुत्रियां मोहलक्षिका कुमारी और प्राणेश्वरी कुमारी

धवल वस्त्र, शांत मुखमुद्रा और प्रभु के प्रति अटल श्रद्धा—ऐसे भावों के साथ शाही परिवार ने प्रभु श्रीनाथजी के दूसरे राजभोग दर्शन किए। ध्वजाजी की छत से सुदर्शन भगवान को इत्र और भोग अर्पित कर आराधना की। फिर महाप्रभुजी की बैठक में दंडवत प्रणाम कर श्रद्धा से भेंट अर्पित की।

शाही रस्मों की अगली कड़ी में वे लाल छत महल पधारे, जहां तिलकायत पुत्र श्री विशाल बावा ने पारंपरिक केसर स्नान, चीरा, फेंटा, रजाई, और उपरना अर्पित कर उन्हें प्रसाद भेंट किया और समाधान किया।

परिवार की अन्य सदस्याओं का भी हुआ पारंपरिक समाधान—बहुजी दीक्षिता गोस्वामी ने निवृत्ति कुमारी, लाल बावा ने हरितराज सिंह, और आराधिका बेटीजी ने मोहलक्षिका व प्राणेश्वरी का समाधान कर स्वागत किया।
इस भव्य मिलन में, वल्लभ संप्रदाय और मेवाड़ राजघराने के प्राचीन संबंधों की स्मृति पुनः ताज़ा हुई।

डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने कहा—“मेवाड़ का राजपरिवार श्रीनाथजी की सेवा, संरक्षण और संवर्धन के लिए युगों से समर्पित रहा है… और यह परंपरा यथावत रहेगी।”
गौरतलब है कि डॉ. लक्ष्यराज सिंह हाल ही में अपने पिता स्व. अरविंद सिंह मेवाड़ के देहावसान के पश्चात 2 अप्रैल को सिटी पैलेस में परंपरागत गद्दी उत्सव में मेवाड़ की गद्दी पर विराजमान हुए हैं।

नाथद्वारा में उनके आगमन पर मोती महल चौक से मंदिर परिसर तक शाही स्वागत किया गया। मंदिर के वरिष्ठ अधिकारी सुधाकर उपाध्याय, अंजन शाह, अनिल सनाढ्य, लीलाधर पुरोहित, परेश नागर और मीडिया प्रभारी गिरीश व्यास की उपस्थिति ने इस पावन क्षण को और गरिमा प्रदान की।

निगाहें झुकी थीं, हाथ जुड़े थे और दिलों में था बस एक ही भाव—“राजा आए हैं दर्शन को… और प्रभु स्वयं मुस्कुराए हैं स्वागत में।”

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