
उदयपुर। शहर के ब्रह्मपोल बाहर वाक़े (स्थित) दरगाह हज़रत इमरत रसूल शाह बाबा के तीन रोज़ा 134वें उर्स-ए-पाक के मौके पर दूसरे दिन, जुमेरात (शुक्रवार) रात 9 बजे से महफ़िल-ए-समा का आग़ाज़ हुआ। दरगाह कमेटी के नुमाइंदे (प्रवक्ता) मोहसिन हैदर ने बताया कि उर्स की रौनक़ के तहत दरगाह के अहाते में मुख़्तलिफ़ (विभिन्न) तक़ारीब (कार्यक्रम) मुनक्किद (आयोजित) किए जा रहे हैं, जिनमें उदयपुर और आसपास के अकीदतमंदों की बड़ी तादाद शिरकत कर रही है।
महफ़िल-ए-समा में कव्वालों का जलवा
जुमेरात के रोज़ अकीदतमंदों का दरगाह में आना-जाना दिन भर जारी रहा। नमाज़-ए-जुम्आ की अदायगी के बाद, लोगों ने दरगाह पर चादर शरीफ़ और गुलाब के फूल पेश किए। बाद नमाज़-ए-ईशा, रात 9 बजे से महफ़िल-ए-समा का शानदार आग़ाज़ हुआ, जहां कव्वालों ने अपनी रूहानी आवाज़ों से समा बांध दिया।
रामपुर, उत्तर प्रदेश से तशरीफ़ लाए मशहूर कव्वाल महबूब साबरी और उनकी पार्टी ने “देखलो शक्ल मेरी किसका आईना हूँ मैं…” और “इश्क़ ना हो तो ज़्यादा ज़िंदगी – ज़िंदगी नहीं…” जैसे कलाम पेश कर महफ़िल को जज़्बाती बना दिया। वहीं, उदयपुर के मोहतबर (प्रसिद्ध) कव्वाल मोहम्मद असलम साबरी ने “शाह-ए-मर्दां है अली…”, “तू बड़ा ग़रीब नवाज़ है…” और “वो दुआ में हाथ उठाने मेरे पीर आ गए हैं…” जैसे कलामात से समाईन (श्रोताओं) का दिल जीत लिया।

रात भर मुशायरों और नात का दौर
महफ़िल के इख़्तिताम (समाप्ति) पर सलातो सलाम और दुआ पढ़ी गई। इसके बाद, गुस्ल की अहम रस्म अदा की गई, जिसमें सैंकड़ों अकीदतमंद शामिल हुए। इस पुरनूर मौके पर दरगाह कमेटी के सदर हाजी सरवर ख़ान, सेक्रेटरी शादाब ख़ान, और नायब सदर मुबारिक ख़ान समेत कई मोअज़्ज़िज़ (सम्माननीय) हस्तियां मौजूद रहीं।
उर्स-ए-पाक का इख़्तिताम
शनिचर (शनिवार), 7 नवम्बर 2024 को सुबह 8:30 बजे कुरआन ख्वानी होगी। नमाज़-ए-जौहर के बाद, दोपहर 2:30 बजे कुल की रस्म अदा की जाएगी। शाम 5:30 बजे रंग, दुआ और फातिहा के साथ उर्स का इख़्तिताम होगा।
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