नफ़रत से नफ़रत कभी ख़त्म नहीं हो सकती। यह एक गहरी सच्चाई है कि नफ़रत को केवल मोहब्बत के जरिए समाप्त किया जा सकता है। गौतम बुद्ध का ये विचार आज हमारे शहर उदयपुर के लिए कितनी बड़ी ज़रूरत है। यहां हिंदू-मुसलमान के बीच नफ़रत की जो दीवार खड़ी हो चुकी है, उसने शांति प्रिय लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाला है। हाल की घटनाओं ने केवल मानसिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि कारोबार की बुनियाद को भी हिला कर रख दिया है। दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल उदयपुर की नकारात्मक छवि अब पूरी दुनिया में फैल रही है। लोग अब उदयपुर की बजाय उन शहरों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो ज़्यादा शांतिपूर्ण हैं।
आजकल हर घटना को सांप्रदायिक नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। क़ानून की गरिमा को दरकिनार कर, भीड़ के दबाव में इंसाफ़ की मांग करने का चलन शुरू हो चुका है। यह अत्यंत चिंताजनक है। जो लोग दिखावे के लिए मोहब्बत की बातें करते हैं, वे वास्तव में नफ़रत को और बढ़ावा दे रहे हैं। मीडियाकर्मी भी इस माहौल में आग में घी डालने का काम कर रहे हैं, और यह न केवल अनैतिक है, बल्कि समाज के लिए ख़तरनाक भी।
अगर सही बात पर हिंदू का समर्थन मुसलमान और मुसलमान का समर्थन हिंदू नहीं कर सकते, तो यह समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। गौतम बुद्ध की यह बात याद रखनी चाहिए कि अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, एक मोमबत्ती की रोशनी उसे समाप्त कर सकती है। लेकिन आज चंद लोग अंधेरे को और गहरा करने पर तुले हुए हैं। क्या यह हमारी सभ्यता के लिए एक शर्मनाक स्थिति नहीं है?
बुलडोज़र की बात करें तो यह भी दिलचस्प है। कुछ दिन पहले बुलडोज़र के विरोध में खड़े लोग आज उसी बुलडोज़र की मांग करने लगे हैं। यह स्पष्ट दिखाता है कि हमारी सोच कितनी सतही हो गई है। क़ानून की नींव पर सवाल उठाते हुए, क्या हम न्याय की सच्ची भावना को भुला नहीं रहे हैं?
यदि नफ़रत का अंजाम देखना है, तो यूक्रेन-रूस और इजराइल-हमास युद्ध की ख़बरें पढ़ें। मासूम बच्चों की लाशें, तड़पते हुए माँ-बाप, तबाह होते घर, यह सब नफ़रत की सच्चाई हैं। क्या हम अपने शहर की ऐसी ही तस्वीर बनाना चाहते हैं?
हमें यह समझना होगा कि मोहब्बत ही एकमात्र रास्ता है, जो हमें इस अंधेरे से निकाल सकता है। आइए, हम सभी मिलकर नफ़रत की इस दीवार को ढहाएं और मोहब्बत की एक नई इमारत खड़ी करें।
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