दिल्ली में आज ‘सागरमंथन – द ग्रेट ओसियंस डायलॉग’ का भव्य शुभारंभ हुआ। दक्षिण एशिया के सबसे बड़े समुद्री विचार नेतृत्व शिखर सम्मेलन ने महासागरीय सहयोग, ब्लू इकोनॉमी और सतत विकास पर वैश्विक दृष्टिकोण को नई दिशा देने का वादा किया है।
भारत का मैरीटाइम विजन 2047: महासागरों के भविष्य का रोडमैप
केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने उद्घाटन भाषण में भारत के “मैरीटाइम विजन 2047” को एक स्थायी महासागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए मील का पत्थर बताया। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत, बंदरगाहों, शिपिंग, जहाज निर्माण, और जलमार्गों में 80 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।
उन्होंने कहा, “यह विजन केवल अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और सामुदायिक विकास का पथप्रदर्शक है।”
हरित प्रौद्योगिकी और डीकार्बोनाइजेशन की दिशा में कदम
भारत ने समुद्री क्षेत्र में डीकार्बोनाइजेशन को प्राथमिकता दी है। स्वच्छ ईंधन पर आधारित जहाज निर्माण, हरित हाइड्रोजन मिशन, और नवीकरणीय ऊर्जा का समुद्री संचालन में एकीकरण भारत के प्रयासों की प्रमुख धुरी है।
लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर का विकास न केवल तकनीकी बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को भी समृद्ध करेगा।
भारत-ग्रीस सहयोग: समुद्री व्यापार के नए आयाम
सागरमंथन में ग्रीस के समुद्री मामलों और द्वीपीय नीति मंत्री क्रिस्टोस स्टाइलियानाइड्स के साथ भारत की द्विपक्षीय वार्ता चर्चा का केंद्र रही।
- समुद्री व्यापार का विस्तार: 2030 तक मौजूदा व्यापार को 1.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया।
- लोथल परियोजना में ग्रीस का योगदान: ग्रीस ने लोथल के समुद्री विरासत परिसर के विकास में तकनीकी और सांस्कृतिक सहायता देने की सहमति जताई।
- साझा कार्य समूह का गठन: समुद्री बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा, और सांस्कृतिक सहयोग के लिए संयुक्त कार्य समूह बनाया जाएगा।
स्टाइलियानाइड्स ने कहा, “सागरमंथन जैसी पहलें स्थायी समुद्री प्रणालियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।”
सागरमंथन का वैश्विक एजेंडा
इस दो दिवसीय सम्मेलन में 61 देशों के प्रतिनिधि समुद्री कनेक्टिविटी, सतत विकास, तकनीकी नवाचार और वैश्विक समुद्री शासन पर चर्चा कर रहे हैं। भारत ने इस मंच पर बंदरगाह डिजिटलीकरण और हरित शिपिंग में अपनी प्रगति का प्रदर्शन किया।
सागरमंथन का महत्व
यह सम्मेलन केवल विचारों का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि वैश्विक महासागरीय चुनौतियों का समाधान खोजने का एक ठोस प्रयास है। भारत की नेतृत्वकारी भूमिका ने इसे वैश्विक समुद्री सहयोग के लिए एक आदर्श मंच बना दिया है।
निष्कर्ष: सागरमंथन ने न केवल समुद्री अर्थव्यवस्था के सतत विकास का मार्ग प्रशस्त किया है, बल्कि भारत को महासागरीय नेतृत्व की भूमिका में स्थापित किया है। यह सम्मेलन महासागरों के संरक्षण और उनके दीर्घकालिक उपयोग के लिए वैश्विक दृष्टिकोण को मजबूती प्रदान करेगा।
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