श्याम बेनेगल : एक युग का अंत, जो सिनेमा के हर फ्रेम में जिंदा रहेगा

सैयद हबीब, मुंबई। श्याम बेनेगल चले गए। एक ऐसी यात्रा खत्म हो गई, जिसने भारतीय सिनेमा को सिर्फ सपने ही नहीं दिए, बल्कि सपनों को जीने का तरीका भी सिखाया। सोमवार की शाम जब मुंबई के वोकहार्ट अस्पताल में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली, तब सिनेमा की आत्मा में एक गहरी खामोशी छा गई। ऐसा लगा, जैसे कोई फिल्म अचानक बिना क्लाइमेक्स के खत्म हो गई।

बेनेगल का जाना सिर्फ एक इंसान का जाना नहीं है, यह एक युग का अंत है। यह उस कलाकार का अंत है, जिसने अपने पिता के दिए कैमरे से फिल्में बनाना शुरू किया और सिनेमा के परदे पर हर फ्रेम में जीवन की धड़कन भर दी। वह कैमरा अब शांत हो चुका है, लेकिन उसके लेंस से दुनिया को देखने का नजरिया हमेशा जीवित रहेगा।

एक मासूम शुरुआत, जो इतिहास बन गई
1946 में, एक 12 साल के लड़के ने अपने पिता का कैमरा थामकर दुनिया को अपनी नजरों से देखने की कोशिश की। यह लड़का श्याम बेनेगल था, जो उस वक्त यह नहीं जानता था कि एक दिन वह सिनेमा का वह चेहरा बनेगा, जिसे ‘आर्ट सिनेमा का जनक’ कहा जाएगा।

बेनेगल ने हमेशा कहा था कि सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं है। सिनेमा तो एक दर्पण है, जिसमें समाज अपनी सच्चाई देखता है। उन्होंने समाज की जटिलताओं को अपनी फिल्मों में इतनी खूबसूरती से उकेरा कि हर किरदार दर्शकों के दिल में बस गया। उनकी फिल्में हमें हंसाती भी थीं, रुलाती भी थीं और सोचने पर मजबूर भी करती थीं।

उनका सिनेमा, हमारी कहानियां
बेनेगल की फिल्मों में नसीरुद्दीन शाह की गहराई, स्मिता पाटिल की मासूमियत, ओम पुरी का संघर्ष और शबाना आज़मी का दर्द झलकता था। वे सिर्फ किरदार नहीं थे, वे हम सब थे—हमारी कमजोरियां, हमारे सपने, हमारे संघर्ष। उनकी फिल्मों में मंडी की गलियां थीं, आरोहन का विद्रोह था, जुबैदा की खामोशी थी और नेताजी का अदम्य साहस था।

श्याम बेनेगल ने ‘भारत एक खोज’ के माध्यम से हमें इतिहास से जोड़ा और ‘यात्रा’ के जरिये हमारी आत्मा को छुआ। उनकी हर फिल्म एक कविता थी, जो शब्दों के बिना भी दिलों में गूंजती रही।

अलविदा, पर हमेशा के लिए हमारे साथ
90 साल का यह सफर 14 दिसंबर को उनके 90वें जन्मदिन के जश्न के साथ ही पूरा हो गया। यह ऐसा है, जैसे किसी फिल्म का अंतिम सीन पूरा होने के बाद पर्दा गिर गया। लेकिन इस बार तालियां नहीं बजीं, बल्कि आंखें नम हो गईं।

उनकी बेटी पिया ने कहा, “पापा अब हमारे साथ नहीं हैं,” लेकिन सच तो यह है कि श्याम बेनेगल हमारे साथ हमेशा रहेंगे। उनकी फिल्में, उनका नजरिया और उनकी कहानियां हमें हर दिन यह एहसास दिलाएंगी कि सिनेमा केवल परदे पर दिखने वाली छवि नहीं है। सिनेमा, जीवन है।

श्याम बेनेगल के बिना सिनेमा की कल्पना
आज जब हम सिनेमा के इस महानायक को अलविदा कह रहे हैं, तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी कहानी से उसका सबसे जरूरी अध्याय गायब हो गया हो। पर यह अध्याय कभी खत्म नहीं होगा। श्याम बेनेगल के लिखे शब्द, बनाए हुए दृश्य और दिए गए कलाकार हमेशा भारतीय सिनेमा की आत्मा में बसेंगे।

फिल्मकार तो बहुत आएंगे, लेकिन बेनेगल जैसा कोई दूसरा नहीं होगा। वे अपनी हर फिल्म के जरिए यह कहते रहे कि जिंदगी की हर जटिलता में एक सुंदरता छिपी होती है। अब वही सुंदरता हमें उनकी फिल्मों में खोजनी होगी।

अलविदा, श्याम बेनेगल। आपने सिनेमा को जो दिया, वह अमूल्य है। आपका जाना हमें खाली जरूर कर गया है, लेकिन आपकी कहानियां हमें हमेशा भरपूर बनाए रखेंगी।

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