उदयपुर। उदयपुर के महाराणा प्रताप खेलगांव, चित्रकूट नगर में क्रिकेट स्टेडियम निर्माण में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने 2011 में दर्ज प्रकरण की गहन जांच के बाद आज चार आरोपियों को गिरफ्तार किया है। इन आरोपियों में सरकारी अधिकारी और एक प्रमुख ठेकेदार शामिल हैं।
गिरफ्तार आरोपी और उनकी भूमिका : एसीबी की जांच में निर्माण कार्यों में निर्धारित मापदंडों और गुणवत्ता मानकों की गंभीर अनदेखी सामने आई। गिरफ्तार किए गए आरोपियों देवेश कुमार शर्मा – तत्कालीन सहायक अभियंता, नगर विकास प्रन्यास, उदयपुर (वर्तमान में अजमेर विकास प्राधिकरण में अतिरिक्त मुख्य अभियंता)। विमल कुमार मेहता – तत्कालीन कनिष्ठ अभियंता, नगर विकास प्रन्यास, उदयपुर (सेवानिवृत्त)। मुकेश जानी – तत्कालीन सहायक अभियंता, नगर विकास प्रन्यास, उदयपुर (सेवानिवृत्त)। हेमराज वरदार – ठेकेदार और निदेशक, मैसर्स प्रमाण कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, उदयपुर।
कैसे हुआ घोटाला?
तकनीकी समिति की रिपोर्ट, एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) जयपुर की जांच और पीडब्ल्यूडी उदयपुर की गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला की रिपोर्ट के अनुसार, स्टेडियम के निर्माण कार्य में निम्न गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग हुआ और निर्माण प्रक्रिया में भारी खामियां पाई गईं। निर्माण कार्यों में खर्च किए गए धन और जमीन पर हुए काम के बीच बड़े अंतर का भी खुलासा हुआ। यह दर्शाता है कि अधिकारियों और ठेकेदार की मिलीभगत से सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया।
एसीबी की कार्रवाई :
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक पुलिस, डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा ने बताया कि मामले में अभियोजन स्वीकृति प्राप्त होने के बाद एसीबी उदयपुर की टीम ने आरोपियों को गिरफ्तार किया। कार्रवाई एसीबी के उप महानिरीक्षक, श्री राजेन्द्र प्रसाद गोयल और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, श्री अनंत कुमार के नेतृत्व में हुई। चारों आरोपियों को विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम), उदयपुर के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया।
क्या कहता है यह मामला?
यह प्रकरण सरकारी योजनाओं और विकास परियोजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें उजागर करता है। जहां एक ओर जनता के पैसे से विकास के सपने बुने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार इन सपनों को ध्वस्त कर देता है। उदयपुर के इस स्टेडियम के निर्माण में हुई अनियमितताएं न केवल सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल उठाती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि उच्चाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने में अभी भी बड़ी खामियां हैं।
एसीबी की अतिरिक्त महानिदेशक, श्रीमती स्मिता श्रीवास्तव के निर्देशन में मामले की विस्तृत जांच जारी है। एसीबी अन्य संदिग्ध व्यक्तियों की भूमिका का पता लगाने और घोटाले में शामिल धनराशि की वसूली के लिए प्रयासरत है।
यह प्रकरण जनता के धन के प्रति प्रशासन की जिम्मेदारी और पारदर्शिता की तत्काल आवश्यकता की ओर संकेत करता है। ऐसे मामलों में त्वरित और कठोर दंड ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मजबूत बना सकता है।
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