
उदयपुर। लेकसिटी में महंगे होते ज़मीन के टुकड़ों के बीच एक खेल खेला जा रहा था—काग़ज़ात का खेल। बाहर से सब कुछ सामान्य दिखता था, लेकिन भीतर ही भीतर एक गिरोह ऐसा षड्यंत्र बुन रहा था, जिसमें असली मालिकों को उनकी ज़मीन से बेदखल करने की चालें रची जा रही थीं।
शिकायत से खुला राज़
13 अगस्त 2025 की सुबह, सविना थाने में एक महिला—सुमिता सरोज—ने रिपोर्ट दर्ज कराई। उसकी आवाज़ में गुस्सा और दर्द साफ़ झलक रहा था। उसने बताया कि उसके पिता एस.पी. सरोज और मां कुसुमलता सरोज की डाकन कोटडा स्थित कृषि भूमि (4250 वर्गफुट) को फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी और नकली काग़ज़ों के दम पर किसी और के नाम कर दिया गया है।
जांच में सामने आया कि यह साज़िश कोई मामूली काम नहीं थी, बल्कि साल 2019 से रचा गया षड्यंत्र था। असली मालिकों की जगह डमी खातेदार बनाए गए, और फिर उन्हीं के नाम से दस्तावेज़ तैयार कर ज़मीन हड़प ली गई।

गवाह और फर्जी खातेदार
मामले में शब्बीर खान और मोहम्मद आफताब शेख नाम के दो लोगों ने गवाही देकर इस पूरे खेल को और मजबूती दी। गवाह बनकर वे असल में इस धोखाधड़ी का हिस्सा थे।
साजिश का तरीका बेहद चौंकाने वाला था—असली खातेदारों के नकली आधार कार्ड बनाए गए। महिला आरोपी अनिसा उर्फ नैना और एक अन्य शख्स को डमी खातेदार बनाकर उप-पंजीयक कार्यालय में पेश किया गया। फर्जी मुख्तियारनामा आम बनाकर पूरी ज़मीन को बेच डाला गया।
पुलिस की एंट्री और ऑपरेशन
जैसे ही रिपोर्ट दर्ज हुई, जिला पुलिस अधीक्षक योगेश गोयल ने तुरंत कार्रवाई के आदेश दिए। एएसपी उमेश ओझा और सीओ छगन पुरोहित के सुपरविजन में, थानाधिकारी राव अजय सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनी।
आसूचना तंत्र और तकनीकी मदद से पुलिस ने पूरे गिरोह को ट्रेस किया। कुछ ही दिनों में इस धंधे का पर्दाफाश हो गया।
गिरफ्तार गिरोह
पुलिस ने पांच लोगों को सलाखों के पीछे पहुँचाया—मोहम्मद शाहिद, मास्टरमाइंड, जिसने फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के दम पर खेल रचा। शब्बीर खान, जिसकी गवाही ने जमीन हड़पने की राह आसान बनाई। मोहम्मद एजाज, दस्तावेज़ी धंधे का माहिर।
अनिसा उर्फ नैना, जिसने असली खातेदार की पहचान में खुद को पेश किया।
मोहम्मद आफताब शेख उर्फ शाहरूख, जो प्रॉपर्टी खरीद-फरोख्त की आड़ में इस गोरखधंधे में लिप्त था।
अनिसा की गिरफ्तारी
पुलिस ने महिला आरोपी अनिसा को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया, जबकि बाकी चार अभी पुलिस रिमांड में हैं। जांच जारी है कि ये गिरोह कब से इस तरह के अपराधों में सक्रिय था और इनके साथ और कौन शामिल है।
तरीका-ए-वारदात
गिरोह की चालाकी इस बात से समझी जा सकती है कि—
पहले नकली आधार कार्ड बनवाते थे।
फिर डमी खातेदारों को असली मालिक की जगह बैठा दिया जाता था।
पंजीयन कार्यालय में सबकुछ वैध दिखाने का नाटक रचा जाता था।
और आखिर में ज़मीन को आगे बेच दिया जाता था।
कहानी का क्लाइमेक्स अभी बाकी
फिलहाल पांचों आरोपी पकड़े जा चुके हैं, लेकिन पुलिस को यकीन है कि इस खेल में और भी किरदार छिपे हैं। कौन थे वे डमी खातेदार? किन अधिकारियों की मिलीभगत थी? और कितनी ज़मीनें अब तक इसी तरह हड़पी जा चुकी हैं?
यह सब अब भी जांच के घेरे में है।
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