“पहलगाम की प्रतिध्वनि: आतंक की साज़िश और एकता की आवाज़”

कश्मीर घाटी की वादियों में जब भी गोली चलती है, उसका शोर सिर्फ पहाड़ों में नहीं गूंजता, वह पूरे देश की आत्मा को झकझोरता है। पहलगाम में हुआ आतंकी हमला भी कुछ ऐसा ही था — एक सुनियोजित, शातिर और विभाजनकारी प्रयास — जिसका उद्देश्य न सिर्फ लोगों की जान लेना था, बल्कि भारत की सामाजिक समरसता और आपसी भाईचारे को भी निशाना बनाना था।

लेकिन यह जानना जरूरी है कि आतंकवाद की इस चुपचाप आती हुई साजिश के पीछे क्या मंशा थी? क्यों हमलावरों ने नाम पूछकर गोली मारी? और सबसे अहम बात — इसका जवाब भारत ने कैसे दिया? यह लेख इन्हीं सवालों का जवाब तलाशता है।

पहलगाम, जो कि आमतौर पर पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में शुमार होता है, खून से रंग दिया गया। चश्मदीदों के अनुसार, आतंकियों ने लोगों से नाम पूछकर और फिर पहचान के आधार पर चुनिंदा लोगों को गोली मारी। यह हमला महज़ हिंसा नहीं था, यह चयनित हिंसा (targeted violence) थी — एक बेहद खतरनाक संकेत।

इस तरह की घटनाएं कश्मीर में पहले भी हुई हैं, लेकिन हालिया हमले की बात करते हुए जब यह स्पष्ट हुआ कि आतंकियों ने लोगों की धार्मिक पहचान पूछकर उन पर गोली चलाई, तब यह घटना महज एक आतंकी हमला नहीं रही — यह भारत के सामाजिक तानेबाने पर सीधा हमला बन गई।

आतंक की रणनीति : नाम पूछकर गोली क्यों?

यह प्रश्न हमें बार-बार सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर इस रणनीति के पीछे क्या सोच रही होगी? आतंकवाद महज़ बम या बंदूक नहीं होता, वह एक विचार होता है — एक खतरनाक विचार, जिसका उद्देश्य भय पैदा करना, लोगों के मन में संदेह भरना और समाज के भीतर दरारें पैदा करना होता है।

1. साम्प्रदायिक तनाव को हवा देना

जब कोई हमलावर किसी का नाम पूछकर उसे गोली मारता है, तो उसका एक ही उद्देश्य होता है — धार्मिक पहचान के आधार पर नफरत फैलाना। वह चाहता है कि लोग डरें, एक-दूसरे को संदेह की नज़रों से देखें, और देश के भीतर आपसी अविश्वास बढ़े। यह वही रणनीति है जिसे हम कई बार पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में देख चुके हैं।

2. भारत की विविधता को कमजोरी में बदलना

भारत की सबसे बड़ी ताक़त उसकी विविधता में एकता है। आतंकवादियों का उद्देश्य यही ताक़त को कमजोरी में तब्दील करना है — ताकि लोग एक-दूसरे को शक से देखें और “हम बनाम वो” की मानसिकता जन्म ले।

ऐसी घटनाएं पहले भी हुई हैं

यह पहली बार नहीं है जब आतंकवादियों ने नाम या धर्म के आधार पर हमला किया हो। 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ, वह आज भी एक जिंदा ज़ख्म है। फिर 2002 में कालूपुर (गुजरात), 2008 में मालेगांव और हाल के वर्षों में पुलवामा जैसे कई हमले देश को झकझोर चुके हैं।

हर बार आतंकवाद का एक ही एजेंडा रहा है — देश की आत्मा पर हमला।

जनता का जवाब : नफरत नहीं, एकता से देंगे जवाब

इन तमाम घटनाओं के बावजूद भारत की जनता ने हमेशा आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब दिया है। पहलगाम की इस घटना के बाद भी पूरे देश में एकता का जो स्वर उठा, वह बताता है कि आम भारतीय आतंकियों की इस चाल को अच्छी तरह समझता है।

1. सोशल मीडिया पर एकता की लहर

घटना के बाद लोगों ने “We Are One” जैसे हैशटैग के साथ एकता का संदेश दिया। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सबने एक स्वर में कहा : “हमें बांट नहीं सकते, हम साथ हैं।”

2. धर्मगुरुओं का साझा बयान

कई धर्मगुरुओं ने भी हमले की निंदा की और साफ कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि यह हमला इंसानियत पर हमला है, न कि किसी एक समुदाय पर।

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य : जिम्मेदारी किसकी?

जब इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो सवाल उठता है — क्या खुफिया एजेंसियों की नाकामी रही? क्या स्थानीय प्रशासन सजग नहीं था? और क्या केंद्र सरकार इन घटनाओं से सबक लेकर भविष्य की तैयारी कर रही है?

1. सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा जरूरी

पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह की घटना का होना दिखाता है कि सुरक्षा व्यवस्था में कहीं-न-कहीं चूक हुई है। आतंकी इस तरह आसानी से नाम पूछते हैं और गोली मारते हैं — इसका मतलब है कि उन्हें स्थानीय समर्थन या पूर्व जानकारी रही होगी।

2. आतंकवाद से निपटने की नीति में बदलाव

अब समय आ गया है कि हमारी आतंकवाद से निपटने की नीति केवल सैन्य नहीं, बल्कि वैचारिक और सामाजिक स्तर पर भी मजबूत हो।

समाधान की राह : नफरत नहीं, संवाद और न्याय

भारत को अगर आतंकवाद की इस नई शैली से निपटना है, तो सिर्फ गोलियों से नहीं, गंभीर सामाजिक-सांस्कृतिक संवाद से निपटना होगा।

1. स्कूलों और कॉलेजों में सांप्रदायिक सौहार्द का पाठ

हमें युवाओं को सिर्फ इतिहास नहीं, संवेदनशीलता और सहिष्णुता भी सिखानी होगी। अगर हम अगली पीढ़ी को यह सिखा पाए कि “तुम्हारा धर्म तुम्हारी पहचान नहीं, इंसानियत है”, तो आतंक की सारी रणनीति ध्वस्त हो जाएगी।

2. आतंकवाद से पीड़ितों की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

जो लोग ऐसे हमलों में मारे जाते हैं, वे सिर्फ एक समुदाय के शिकार नहीं होते — वे भारतीय लोकतंत्र के शहीद होते हैं। इनकी याद में राष्ट्रीय स्मारक और सहायता योजनाएं शुरू की जानी चाहिए।

यह जंग बंदूक से नहीं, भरोसे से जीती जाएगी

पहलगाम में हुई हिंसा दिल दहला देने वाली है। लेकिन उससे भी बड़ी बात है — इस हिंसा के पीछे की नीयत। और हमें यह जानकर राहत मिलती है कि भारत की जनता इस नीयत को पहचान चुकी है।

आतंकी भले ही नाम पूछकर गोली मारें, लेकिन देश का नाम एक ही रहेगा — “भारत”, और उसकी पहचान एक ही रहेगी — “एकता”।

जैसा कि एक शायर ने कहा है:

“वो जो बम लेकर चला था मोहब्बत मिटाने,
हम फूल लेकर निकले हैं नफरत जलाने।”

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