हर साल भारत की GDP का 5% जंग से होता है नुकसान
गैल्वनाइजेशन से संरचनात्मक सुरक्षा और आर्थिक बचत संभव
उदयपुर में लाइव डेमो से शुरू हुआ जनजागरूकता सप्ताह
सोशल मीडिया, सर्वेक्षण और प्रदर्शनियों के ज़रिए जनसंवाद
CEO अरुण मिश्रा बोले – “जागरूकता से ही बदलाव संभव”
उदयपुर। विश्व संक्षारण जागरूकता दिवस से कुछ दिन पहले ही हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने ‘जंग के खिलाफ जिंक’ नाम से एक सशक्त अभियान की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य न केवल धातु सुरक्षा पर लोगों को शिक्षित करना है, बल्कि यह बताना भी है कि जंग का प्रभाव न केवल वाहनों और भवनों पर होता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।
अभियान के मुताबिक, जंग से भारत को हर साल अपनी GDP का लगभग 5 प्रतिशत नुकसान होता है, जो करीब 100 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा बैठता है। जबकि यह नुकसान रोका जा सकता है, बशर्ते हम समय रहते सही तकनीकें और उपाय अपनाएं — जिनमें सबसे प्रभावी है जिंक गैल्वनाइजेशन।
जंग : एक अदृश्य शत्रु
जंग, यानी “संक्षारण”, धातु पर प्राकृतिक रूप से होने वाली एक ऐसी रासायनिक प्रक्रिया है, जो नमी, ऑक्सीजन, प्रदूषण और लवणों की मौजूदगी में तेजी से फैलती है। इसका सीधा असर बुनियादी ढांचे, वाहनों, रेलवे, ब्रिज, घरों और यहां तक कि कृषि उपकरणों पर भी होता है। यह ना केवल सौंदर्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि सुरक्षा और दीर्घकालिक उपयोगिता पर भी असर डालता है।
गैल्वनाइजेशन : समाधान की चाबी
गैल्वनाइजेशन यानी स्टील पर जिंक की कोटिंग — एक ऐसा समाधान है जो इस संक्षारण से बचाव करता है। यह न केवल स्टील की उम्र बढ़ाता है, बल्कि दीर्घकालिक लागत को भी कम करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत में गैल्वनाइजेशन को व्यापक स्तर पर अपनाया जाए, तो संक्षारण से होने वाला 30% तक नुकसान रोका जा सकता है। यही वजह है कि जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसे अपनाकर GDP नुकसान को 1.5% तक ले आए हैं।
जमीनी पहल : जिंक सिटी में प्रदर्शन
हिंदुस्तान जिंक ने अपने होम ग्राउंड उदयपुर में 21 से 24 अप्रैल के बीच एक प्रभावशाली लाइव प्रदर्शन आयोजित किया। इसमें एक गैल्वनाइज्ड और एक गैर-गैल्वनाइज्ड दोपहिया वाहन को आमने-सामने रखा गया, जिसमें जंग का फर्क साफ दिखाई दिया। यह सामाजिक प्रयोग युवाओं, व्यवसायियों और आम जनता को यह दिखाने में सफल रहा कि सही निर्णय कैसे लंबे समय तक फायदे में बदल सकता है।
CEO का संदेश : “जागरूकता से शुरुआत”
हिंदुस्तान जिंक के CEO अरुण मिश्रा ने इस अभियान के बारे में बात करते हुए कहा: “जंग देश की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे के लिए एक गंभीर खतरा है। यह आवश्यक है कि निर्माता गैल्वनाइजेशन को अपनाएं और उपभोक्ता जागरूक बनें। ‘जंग के खिलाफ जिंक’ के माध्यम से हम लोगों को यह समझाना चाहते हैं कि सही विकल्प न केवल सुरक्षा देता है, बल्कि दीर्घकालिक लाभ भी।”
ऑटोमोटिव क्षेत्र में जिंक की बढ़ती मांग
भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र में अब ज़िंक कोटिंग तेजी से अपनाई जा रही है। वाहन निर्माण के दौरान बॉडी-इन-व्हाइट यानी ढांचे के निर्माण में जिंक का उपयोग बढ़ा है, जिससे वाहन की सुरक्षा, स्थायित्व और रिसेल वैल्यू में भी वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय बात यह है कि गैल्वनाइजेशन की लागत वाहन की कीमत का 0.1% से भी कम होती है, लेकिन इसका लाभ कई वर्षों तक चलता है।
नवाचार और सतत विकास की दिशा में कदम
हिंदुस्तान जिंक एकमात्र नहीं, बल्कि अग्रणी भी है। यह न केवल दुनिया की सबसे बड़ी एकीकृत जिंक उत्पादक कंपनी है, बल्कि चांदी उत्पादन में भी शीर्ष 5 में शामिल है। इसके साथ ही कंपनी ने लॉन्च किया है ‘इकोजेन’, एशिया का पहला लो-कार्बन ग्रीन जिंक ब्रांड, जिसे रिन्यूएबल एनर्जी की मदद से तैयार किया गया है।
जागरूकता ही है असली बचाव
हर साल 24 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व संक्षारण जागरूकता दिवस, हमें याद दिलाता है कि जंग का असर सिर्फ धातु पर नहीं, हमारी आर्थिक और पर्यावरणीय सुरक्षा पर भी पड़ता है। भारत में 7,800 किमी की तटरेखा और उष्णकटिबंधीय मौसम इस खतरे को और बढ़ा देते हैं।
ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि हम सतत समाधान को अपनाएं और जिंक को अपनी संरचनाओं में शामिल करें। यही रास्ता है, कम लागत में ज्यादा सुरक्षा और दीर्घकालिक बचत का।
एक मजबूत, सुरक्षित और टिकाऊ भारत की ओर
‘जंग के खिलाफ जिंक’ सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि एक आंदोलन है – जो आम आदमी से लेकर नीति निर्माताओं तक सभी को एक संदेश देता है – “रोकथाम इलाज से बेहतर है”। हिंदुस्तान जिंक ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब उद्योग सामाजिक जिम्मेदारी के साथ आगे आता है, तो बदलाव संभव होता है – और वह भी स्थायी।
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