
उदयपुर/बूंदी।
बरसात के बाद का मौसम था। रामगढ़ विषधारी के घने जंगलों में नमी की खुशबू तैर रही थी। हवा में मिट्टी की सोंधी महक, झाड़ियों के बीच भागते चिंकारों की आहट और कहीं दूर से आती एक गहरी, धीमी गर्जना – यह सब मिलकर जंगल को एक अदृश्य रहस्य में लपेटे हुए था।
बूंदी जिले की पहाड़ियों और नालों के बीच बसा यह भारत का 52वां टाइगर रिज़र्व सिर्फ पेड़ों और जानवरों का घर नहीं था, बल्कि एक ऐसा जीवित तंत्र था, जिसकी धड़कन बाघ की दहाड़ में बसती थी। लेकिन जंगल की यह शांति हर समय सुरक्षित नहीं थी। कभी शिकारी की आहट, तो कभी अवैध अतिक्रमण – बाघ और उसके बच्चों के लिए ये सब मौन खतरे थे।
नए पहरेदार का आगमन
29 जुलाई 2025 – अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस।
सुबह की सुनहरी धूप में जंगल की पगडंडियों पर एक नई हलचल थी। The Animal Care Organization, जो Vedanta Limited की सामाजिक शाखा Anil Agarwal Foundation के तहत काम करती है, रामगढ़ विषधारी में नई सुरक्षा योजनाएँ लेकर आई थी।
उन्होंने जंगल के भीतर दो-मंज़िला पांच शिकार-रोधी कैम्प बनाने का कार्य शुरू किया। हर कैम्प 762 वर्गफीट में फैला था, पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित और 24 घंटे निगरानी में सक्षम। ये कैम्प ऐसे थे, जैसे जंगल में बाघ के लिए बनाए गए अदृश्य किले, जो वनकर्मियों को हर वक्त सतर्क रहने और गश्त बढ़ाने में मदद देंगे।
इसके साथ ही संगठन ने सर्विलांस व्हीकल भी दिए – तेज़, फुर्तीले और कठिन रास्तों पर दौड़ने में सक्षम – ताकि किसी भी शिकारी की हलचल पर तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके।
जंगल और इंसान का संवाद
जंगल भी इस बदलाव को महसूस कर रहा था।
नीम और बबूल के पेड़ जैसे एक-दूसरे से कह रहे हों – “अब हमारे बच्चे सुरक्षित हैं।”
दूर एक तेंदुआ चुपचाप झाड़ियों में से देख रहा था, और नदी किनारे का मगरमच्छ स्थिर जल में छुपा मुस्कुरा रहा था।
आवाज़ें जो बदलाव लाती हैं
कैम्प के उद्घाटन के समय Priya Agarwal Hebbar, जो The Animal Care Organization की एंकर और Vedanta Limited की नॉन-एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर हैं, ने कहा – “हम संरक्षण को प्राथमिकता देते हैं। रामगढ़ विषधारी में शिकार-रोधी कैम्प्स और सर्विलांस व्हीकल्स से हम राजस्थान के सबसे महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर में एक मजबूत सुरक्षा जाल बना रहे हैं। ये प्रयास वन्यजीवन और वनकर्मियों दोनों के लिए 24/7 सुरक्षित माहौल तैयार करेंगे।”
वहीं, राजस्थान सरकार की IFS अधिकारी और चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वार्डन Shikha Mehra ने जंगल के बीच खड़े होकर कहा – “रामगढ़ विषधारी की सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करना, बाघ जैसी लुप्तप्राय प्रजाति के अस्तित्व को सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम है। The Animal Care Organization ने यहां जो टेक्नोलॉजी और सुविधाएं दी हैं, वो हमारे सतत और सक्रिय वन्यजीव प्रबंधन के लक्ष्य से पूरी तरह मेल खाती हैं।”
एक बड़े मकसद की ओर यह पहल सिर्फ बाघ की नहीं, बल्कि पूरे जंगल की सुरक्षा के लिए थी। यहाँ बाघ, तेंदुए, लकड़बग्घे, सियार, चिंकारा, और सैकड़ों पक्षी प्रजातियां रहती हैं। यह रिज़र्व रणथंबौर और मुकुंदरा के बीच एक जीवित गलियारा है, जो आनुवंशिक विविधता और जैव संतुलन बनाए रखता है।
भारत, जहाँ दुनिया के 70% से अधिक जंगली बाघ हैं, ऐसे प्रयासों से ही अपनी पारिस्थितिक धरोहर को बचा सकता है। 1973 में शुरू हुआ Project Tiger और 2022 में रामगढ़ विषधारी का उसमें शामिल होना, इस सफर के मील के पत्थर हैं।
जंगल की रात और नई उम्मीद
रात ढलते ही जंगल में फिर सन्नाटा पसर गया। नए कैम्प की छत पर खड़ा एक वनकर्मी टॉर्च की रोशनी से अंधेरे को टटोल रहा था, जबकि पीछे सौर ऊर्जा से जलता लैम्प नरम रोशनी बिखेर रहा था।
कहीं दूर, बाघ ने एक लंबी, गूंजती दहाड़ लगाई – मानो कह रहा हो,
“यह जंगल अब हमारा है… और सुरक्षित है।”
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