हिंदुस्तान जिंक : बेटियों के कदम अब रुकेंगे नहीं: जावर में देश की पहली टेक्नोलॉजी आधारित गर्ल्स फुटबॉल अकादमी का शुभारंभ

— महिला सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक पहल, अब बेटियां भी बनाएंगी गोल और इतिहास

उदयपुर, जावर। जहाँ कभी बेटियों को घर की चारदीवारी तक सीमित समझा जाता था, वहीं अब वे मैदान में उतर कर अपने सपनों को गोल पोस्ट में तब्दील करने जा रही हैं। हिन्दुस्तान जिंक और अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) की साझेदारी से जावर, उदयपुर में उत्तर भारत की पहली टेक्नोलॉजी आधारित गल्र्स फुटबॉल एकेडमी की शुरुआत हुई है — एक ऐसा ऐतिहासिक कदम जो बेटियों को सिर्फ खिलाड़ी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सशक्त नागरिक बनाने की दिशा में उठाया गया है।

यह पहल सिर्फ एकेडमी नहीं, बल्कि उम्मीदों की वो जमीन है जहाँ बेटियां जज़्बा, जुनून और ज़मीन की मिट्टी में अपनी मेहनत से इतिहास लिखेंगी। यहां शुरू हुआ पहला बैच 20 बालिकाओं का है, जिनमें राजस्थान, झारखंड, हरियाणा, गुजरात और पश्चिम बंगाल की प्रतिभाशाली बेटियां शामिल हैं। यह संख्या अगले कुछ महीनों में 60 तक पहुंचाई जाएगी।

विश्व स्तरीय सुविधाएं, लड़कियों के सपनों की उड़ान यह एकेडमी न केवल आवासीय सुविधा से सुसज्जित है, बल्कि F-Cube तकनीक जैसी अत्याधुनिक प्रणाली के माध्यम से खिलाड़ियों के हर पहलू – कौशल, फिटनेस, मानसिक संतुलन और पोषण – का मूल्यांकन और विकास सुनिश्चित करेगी।


यहाँ 3 फीफा क्वालिटी टर्फ, मल्टी-स्पोर्ट ग्राउंड, स्काउटिंग टीम, और लाइसेंस प्राप्त कोचिंग स्टाफ मौजूद हैं, जो बेटियों को ना सिर्फ फुटबॉल की प्रोफेशनल ट्रेनिंग देगा बल्कि उन्हें एक मजबूत इंसान भी बनाएगा।

सिर्फ खेल नहीं, यह परिवर्तन की शुरुआत है
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की चेयरपर्सन प्रिया अग्रवाल हेब्बर ने भावुक शब्दों में कहा,

“हमारा उद्देश्य केवल फुटबॉल खिलाड़ी तैयार करना नहीं, बल्कि ऐसी आत्मनिर्भर बेटियों को गढ़ना है जो कल को समाज की दिशा बदलने का माद्दा रखती हों।”

AIFF अध्यक्ष कल्याण चौबे ने इसे महिला फुटबॉल के भविष्य के लिए गेम-चेंजर करार दिया और बताया कि महिला खिलाड़ियों की भागीदारी में हाल ही में 232% की वृद्धि हुई है। यह एकेडमी उस उत्साह को और पंख देने का काम करेगी।

चार दशक से फुटबॉल की धरती, अब बेटियों की भी बनेगी
हिन्दुस्तान जिंक का जावर स्टेडियम पिछले 40 वर्षों से राष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंटों का गवाह रहा है। अब उसी ऐतिहासिक भूमि पर बेटियां भी अपने पसीने से मिट्टी को सोना बना रही हैं।

यह पहल दिखाती है कि परिवर्तन तब होता है जब सोच, संसाधन और संकल्प एक साथ आते हैं। यह एकेडमी सिर्फ एक खेल केंद्र नहीं — यह बेटियों के लिए वो दरवाज़ा है, जो उन्हें आत्मनिर्भरता, समानता और सम्मान की ओर ले जाता है।


यह सिर्फ फुटबॉल की कहानी नहीं, यह हर उस बेटी की कहानी है जो अपने भीतर एक सपना पालती है — और उसे पूरा करने का जज़्बा भी रखती है।
अब बेटियां कहेंगी — मैदान हमारा है, और भविष्य भी। 💪⚽

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