कौशल : भविष्य के लिए तैयार – विकसित भारत @2047 के लिए मानव पूंजी निर्माण की एक निर्णायक पहल

नई दिल्ली। भारत अपने स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण होने के ऐतिहासिक पड़ाव की ओर अग्रसर है। वर्ष 2047 तक “विकसित भारत” का स्वप्न केवल बुनियादी ढांचे, तकनीकी उन्नयन या आर्थिक आंकड़ों की प्राप्ति तक सीमित नहीं है। इस सपने की वास्तविक बुनियाद उस कुशल, सशक्त और प्रेरित कार्यबल पर टिकी है जो भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा। इसी सोच को साकार करने के उद्देश्य से कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग ने मुख्य सचिवों के आगामी पांचवें राष्ट्रीय सम्मेलन से पहले नई दिल्ली स्थित कौशल भवन में “कौशल: भविष्य के लिए तैयार” कार्यशाला का आयोजन किया। यह कार्यशाला न केवल नीति निर्माताओं और कार्यान्वयनकर्ताओं के मध्य संवाद का एक अवसर थी, बल्कि यह भारत के भविष्य की कार्यबल नीति निर्माण की दिशा में एक निर्णायक क्षण भी सिद्ध हुई।

इस कार्यशाला का आयोजन “विकसित भारत के लिए मानव पूंजी” विषयवस्तु के अंतर्गत किया गया था। इसका मूल उद्देश्य एक ऐसा कौशल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना था जो न केवल वर्तमान जरूरतों के अनुकूल हो, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी वैश्विक परिदृश्य में सफलता की ओर ले जाए। कार्यशाला में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, राज्य प्रतिनिधियों, उद्योग प्रमुखों, शिक्षाविदों और प्रशिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस संवाद ने कौशल विकास को लेकर नीति, रणनीति और कार्यान्वयन तीनों स्तरों पर गहन विमर्श को जन्म दिया।

कार्यशाला का उद्घाटन कौशल विकास मंत्रालय की अपर सचिव सुश्री सोनल मिश्रा ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारत की युवा जनसंख्या, तकनीकी परिवर्तनों की गति और औद्योगिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन साधते हुए हमें एक ऐसी कौशल रणनीति अपनानी होगी जो दीर्घकालिक हो, समावेशी हो और परिवर्तनशील वातावरण के अनुरूप हो। उन्होंने कौशल विकास की दिशा में पांच प्रमुख स्तंभों को रेखांकित किया – सभी के लिए कौशल, कौशल और रोजगार के बीच के अंतर को समाप्त करना, उद्योगों की मांग के अनुसार प्रशिक्षण को पुनः संरेखित करना, सेवा वितरण प्रणाली को मजबूत करना और मौजूदा कार्यबल का पुनः कौशलीकरण तथा उन्नयन।

मंत्रालय के सचिव श्री रजित पुन्हानी ने अपने संबोधन में कार्यशाला के उद्देश्यों को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा कि कौशल प्रशिक्षण ही विकसित भारत @2047 के दृष्टिकोण की आधारशिला है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हर युवा और पेशेवर को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे संगठनों और देश के विकास में ठोस योगदान दे सकें। उन्होंने इस दिशा में तीन मुख्य फोकस क्षेत्रों की बात की – कृषि कौशल को मुख्यधारा में लाना, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) का उन्नयन करना और भविष्य के लिए आवश्यक कौशलों पर जोर देना।

कृषि कौशल के संदर्भ में सचिव ने यह तर्क रखा कि यदि हम कृषि क्षेत्र को केवल पारंपरिक जीविका के रूप में देखते रहेंगे, तो हम ग्रामीण युवाओं की संभावनाओं को सीमित कर देंगे। इसके विपरीत, यदि हम कृषि को नवाचार, तकनीक और उद्यमिता से जोड़ें, तो यह एक भविष्यगामी और सम्मानजनक करियर विकल्प बन सकता है। इसी तरह, उन्होंने आईटीआई के पुनरुद्धार की आवश्यकता पर बल दिया ताकि उन्हें आधुनिक तकनीकों से लैस, उद्योगों से जुड़े और छात्रों के लिए आकर्षक प्रशिक्षण केंद्रों में बदला जा सके। तीसरे फोकस क्षेत्र के रूप में उन्होंने “भविष्य के कौशल” की चर्चा की – जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, हरित तकनीक, साइबर सुरक्षा, और डेटा साइंस – जिनकी मांग आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर बढ़ने वाली है।

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के उप महानिदेशक श्री राजबीर सिंह ने अपने विचार साझा करते हुए भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह कहा कि आज जबकि कृषि क्षेत्र चुनौतियों से जूझ रहा है, हमें इसकी क्षमता को कौशल विकास के माध्यम से पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि देशभर के कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) को स्किल एवं इनक्यूबेशन हब में बदला जाए, जहां किसानों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं को उद्यमिता के लिए भी तैयार किया जा सके। इससे न केवल युवाओं को रोजगार मिलेगा बल्कि भारत के कृषि तंत्र में नवाचार और प्रतिस्पर्धा का नया संचार होगा।

कार्यशाला के एक अन्य महत्वपूर्ण भाग में प्रशिक्षण महानिदेशालय द्वारा आईटीआई उन्नयन योजना पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी गई। यह योजना, जिसकी अनुमानित लागत 60,000 करोड़ रुपये है, देशभर में फैले लगभग 15,000 से अधिक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को आधुनिक और उद्योग-संरेखित प्रशिक्षण केंद्रों में बदलने की एक दूरगामी योजना है। प्रस्तुति में बताया गया कि इस योजना में फिजिकल और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण, स्मार्ट कक्षाओं की स्थापना, प्रशिक्षकों की गुणवत्ता उन्नयन और पाठ्यक्रमों को उद्योग मांगों के अनुरूप बनाने जैसे अनेक पहलुओं को शामिल किया गया है। राज्य सरकारों के अधिकारियों ने इस अवसर पर अपने-अपने राज्यों में किए जा रहे प्रयासों को भी साझा किया। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ राज्यों को निजी भागीदारों को आकर्षित करने में कठिनाई हो रही है, जबकि कुछ राज्यों को योग्य प्रशिक्षकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

कार्यशाला में कुल पाँच विषयगत सत्र आयोजित किए गए, जिनमें सभी के लिए कौशल, कौशल और रोजगार के बीच की खाई को पाटना, उद्योग आधारित मांग अनुरूप कौशल विकास, सेवा वितरण की मजबूती और कार्यबल का पुनः कौशलीकरण एवं उन्नयन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की गई। इन सत्रों में उत्तर प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा सहित अनेक राज्यों के प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव और नवाचारों को साझा किया।

कर्नाटक और ओडिशा ने समावेशी कौशल विकास की दिशा में किए गए प्रयासों पर चर्चा की, जिनमें अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं और वंचित समुदायों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं। असम ने कौशल और रोजगार के बीच की खाई को पाटने के लिए बनाए गए अपने लोकलाइज्ड मॉडलों को प्रस्तुत किया, जबकि उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा ने उद्योग के साथ तालमेल बनाकर मांग आधारित कौशल मॉडल तैयार करने की पहल की जानकारी दी। पश्चिम बंगाल ने पंचायत स्तर पर सेवा वितरण की रणनीतियों को विस्तार से समझाया।

इन प्रस्तुतियों से स्पष्ट हुआ कि राज्यों में क्षेत्रीय विविधता के बावजूद कौशल विकास की दिशा में एक साझा संकल्प मौजूद है। यह भी देखा गया कि नवाचार, सहभागिता और निष्पादन के मोर्चों पर अनेक राज्य नई मिसालें कायम कर रहे हैं जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जा सकता है।

कार्यशाला की एक विशिष्टता यह रही कि इसमें उद्योग जगत की भागीदारी भी सशक्त रूप से दर्ज की गई। प्रमुख कॉर्पोरेट्स जैसे एडोब, सोडेक्सो, अवाडा ग्रुप, लेमन ट्री होटल्स, यूपीएस, वोल्वो-आयशर, एस्कॉर्ट्स और टाटा स्ट्राइव के प्रतिनिधियों ने कार्यशाला में भाग लेकर अपने व्यावहारिक अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि आज के उद्योगों को केवल तकनीकी दक्षता ही नहीं, बल्कि सोचने की क्षमता, संचार कौशल, टीम वर्क, और समाधान-केंद्रित दृष्टिकोण जैसे व्यवहारिक कौशलों की भी आवश्यकता है।

सरकारी कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम ने अपने कौशल विकास कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया और बताया कि किस प्रकार वे युवाओं को ऊर्जा क्षेत्र की आधुनिक मांगों के अनुरूप प्रशिक्षित कर रहे हैं। इन उद्योग प्रतिनिधियों ने यह भी सुझाया कि सरकार, शिक्षा और उद्योग के बीच समन्वय की एक स्थायी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए ताकि प्रशिक्षण और रोजगार के बीच की दूरी कम की जा सके।

कार्यशाला के प्रत्येक सत्र के बाद खुली चर्चा सत्र भी आयोजित किए गए जिसमें भागीदारों को अपनी बात रखने और सुझाव देने का अवसर मिला। इन सत्रों में बहु-हितधारक सहयोग, सेवा वितरण की प्रभावशीलता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सामयिक प्रासंगिकता पर गंभीर विमर्श हुआ। कुछ प्रमुख बिंदु जो चर्चा में उभर कर आए उनमें शामिल थे – निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करना, क्षेत्रीय स्तर पर लचीले प्रशिक्षण मॉडल विकसित करना, डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म्स को मजबूत करना, और प्रमाणन प्रणालियों को राष्ट्रीय स्तर पर एकरूप बनाना।

इस उच्चस्तरीय कार्यशाला में कई प्रतिष्ठित हस्तियों की उपस्थिति ने इसके महत्व को और बढ़ा दिया। इनमें एनसीवीईटी के पूर्व अध्यक्ष श्री निर्मलजीत सिंह कलसी, एमएसडीई की डीजी (प्रशिक्षण) सुश्री त्रिशालजीत सेठी, एनसीवीईटी की कार्यकारी सदस्य डॉ. विनीता अग्रवाल, एमएसडीई के उप सचिव हिमांशु गुनावत, पद्मश्री पुरस्कार विजेता श्री सुल्तान सिंह, एआईसीटीई के सलाहकार डॉ. मोरे रामुलु और अन्य गणमान्य अतिथि शामिल थे।

कार्यशाला का समापन एक महत्वपूर्ण संकल्प के साथ हुआ – कि भारत को भविष्य के लिए तैयार कार्यबल देने के लिए हमें कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को लचीला, समावेशी और नवाचारोन्मुख बनाना होगा। हितधारकों के बीच बेहतर तालमेल, भविष्य के लिए तैयार बुनियादी ढांचे में निवेश, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का लाभ उठाना इस प्रक्रिया के तीन मुख्य स्तंभ होंगे।

इस कार्यशाला से प्राप्त अंतर्दृष्टियाँ और सुझाव मुख्य सचिवों के आगामी सम्मेलन में नीति-निर्माण के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देशित किया गया है कि वे अपने अधिकारियों से प्राप्त फीडबैक को 20 अगस्त 2025 तक सीएस सम्मेलन पोर्टल पर अपलोड करें तथा 31 अगस्त 2025 तक राज्य-विशिष्ट समेकित नोट प्रस्तुत करें।

यह कार्यशाला इस बात का जीवंत प्रमाण है कि भारत अब कौशल को केवल प्रशिक्षण की संज्ञा नहीं दे रहा, बल्कि उसे एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में देख रहा है। यह आंदोलन न केवल युवाओं को सशक्त बनाएगा, बल्कि देश को विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।

कृषि के साथ कौशल का समन्वय: ग्रामीण भारत का पुनरुत्थान

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के उप महानिदेशक श्री राजबीर सिंह ने कृषि क्षेत्र में कौशल विकास की संभावनाओं को सामने रखा। उन्होंने कहा कि कृषि केवल भोजन उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रोज़गार, जैव विविधता, निर्यात, और नवाचार का बड़ा माध्यम है।

प्रमुख प्रस्ताव:

केवीके (कृषि विज्ञान केंद्रों) को “स्किल एंड इनक्यूबेशन हब” के रूप में विकसित करना

किसानों और ग्रामीण युवाओं को उद्यमशीलता की ट्रेनिंग देना

कृषि आधारित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना

यह दृष्टिकोण ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर और तकनीक-समर्थ बनाने की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है।

आईटीआई उन्नयन योजना: 60,000 करोड़ की ऐतिहासिक परियोजना

प्रशिक्षण महानिदेशालय (DGT) द्वारा प्रस्तुत आईटीआई उन्नयन योजना पर आधारित रोडमैप ने कार्यशाला को एक नई दिशा दी।

योजना के प्रमुख पहलू :

मौजूदा 15,000 से अधिक आईटीआई संस्थानों का आधुनिकीकरण

प्रौद्योगिकी-सक्षम लैब्स, स्मार्ट कक्षाएं, इंटरैक्टिव लर्निंग प्लेटफॉर्म

इंडस्ट्री पार्टनरशिप के ज़रिए पाठ्यक्रमों का अपग्रेडेशन

फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम, ताकि प्रशिक्षकों की गुणवत्ता बढ़े

कार्यशाला के दौरान राज्यों ने जमीनी स्तर की चुनौतियाँ भी साझा कीं, जैसे:

छोटे राज्यों में निजी भागीदारी की सीमाएं

प्रशिक्षकों की कमी

हाई-एंड आईटीआई की स्थिरता व संचालन

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