
भारतीय सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर कुछ चेहरे समय से परे होकर अमर हो जाते हैं। ऋषि कपूर, एक ऐसा ही नाम है जिसने न केवल बॉलीवुड की कई पीढ़ियों को रोमांटिक हीरो का चेहरा दिया, बल्कि खुद अभिनय की उस गहराई को जिया जिसे वक्त के साथ कई कलाकार नहीं समझ पाते। 30 अप्रैल 2020 को जब उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, तब सिर्फ एक अभिनेता नहीं गया, बल्कि एक युग का अंत हो गया। यह लेख उनके जीवन, संघर्ष, सफलता और विरासत का एक भावपूर्ण चित्रण है।
कपूर खानदान की तीसरी पीढ़ी का वारिस
ऋषि कपूर का जन्म 4 सितंबर 1952 को मुंबई के चेंबूर इलाके में हुआ। वे प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता और निर्देशक राज कपूर और कृष्णा राज कपूर के पुत्र थे। कपूर खानदान को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का पहला “फिल्मी परिवार” कहा जाता है। ऋषि कपूर के दादा पृथ्वीराज कपूर भारतीय रंगमंच और सिनेमा के स्तंभ थे, जबकि उनके पिता राज कपूर ने “शो मैन ऑफ बॉलीवुड” के रूप में सिनेमा को नई पहचान दी।
ऋषि कपूर की परवरिश फिल्मी माहौल में हुई और उन्होंने बचपन से ही कैमरा, सेट और लाइट के बीच रहना शुरू कर दिया। उनके दो भाई – रणधीर कपूर और राजीव कपूर – भी फिल्म जगत से जुड़े रहे।
शिक्षा और शुरुआती जीवन
अपनी प्रारंभिक शिक्षा ऋषि कपूर ने मुंबई के कैंपियन स्कूल से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने अपने भाइयों के साथ पढ़ाई की। इसके बाद वे अजमेर के प्रतिष्ठित मेयो कॉलेज में दाखिल हुए। हालाँकि पढ़ाई में उनका विशेष रुझान नहीं था, लेकिन अभिनय और कैमरे से उनका रिश्ता बाल्यकाल से ही जुड़ गया था। वे अक्सर पिता की फिल्मों के सेट पर जाते और नाटकों में हिस्सा लेते।
फिल्मों में पहला कदम – ‘मेरा नाम जोकर’ से ‘बॉबी’ तक
ऋषि कपूर का पहला ऑन-स्क्रीन प्रदर्शन 1970 की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में हुआ, जिसमें उन्होंने अपने पिता राज कपूर के बचपन का किरदार निभाया। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही, लेकिन ऋषि के अभिनय की सराहना हुई।
उनका असली डेब्यू 1973 में राज कपूर की ही फिल्म ‘बॉबी’ से हुआ, जो भारतीय सिनेमा की सबसे सफल प्रेम कहानियों में से एक मानी जाती है। फिल्म में उनके साथ नवोदित अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया थीं। ‘बॉबी’ की सफलता ने न केवल ऋषि कपूर को रातों-रात स्टार बना दिया, बल्कि भारतीय युवाओं के दिलों में ‘चॉकलेटी हीरो’ की एक नई परिभाषा रच दी।
इस फिल्म के लिए ऋषि कपूर को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड से नवाजा गया। ‘बॉबी’ के बाद वे लगातार रोमांटिक हीरो के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में छाए रहे।

1970-1980: एक के बाद एक सुपरहिट्स का सिलसिला
ऋषि कपूर का करियर 1970 और 1980 के दशक में चरम पर था। उन्होंने ‘लैला मजनूं’ (1976), ‘कर्ज’ (1980), ‘सरगम’ (1979), ‘चांदनी’ (1989), ‘नगीन’ (1976), ‘प्रेम रोग’ (1982), ‘बोली राधा बोल’ (1992) जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया। वे रोमांस, ड्रामा, म्यूज़िक और इमोशन से सजी फिल्मों के परफेक्ट हीरो माने जाते थे।
उनकी केमिस्ट्री कई हीरोइनों के साथ चली – नीतू सिंह, श्रीदेवी, जया प्रदा, रेखा, पूनम ढिल्लों, माधुरी दीक्षित, आदि। विशेषकर नीतू सिंह के साथ उनकी ऑन-स्क्रीन जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया।
विवाह और पारिवारिक जीवन
फिल्मों में साथ काम करते हुए ऋषि कपूर और नीतू सिंह करीब आए। लगभग पाँच साल तक डेटिंग के बाद उन्होंने 1980 में विवाह किया। नीतू सिंह ने शादी के बाद फिल्मों से दूरी बना ली और ऋषि कपूर के साथ अपने पारिवारिक जीवन में रम गईं।
उनके दो बच्चे हैं –
• रणबीर कपूर: आज के दौर के सबसे चर्चित और प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक
• रिद्धिमा कपूर साहनी: पेशे से फैशन डिज़ाइनर
ऋषि कपूर के परिवार में रिश्तेदारों की एक लंबी फिल्मी श्रृंखला है – शशि कपूर, शम्मी कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर और अब आलिया भट्ट (रणबीर की पत्नी) भी इस खानदान की सदस्य हैं।
1990 के बाद – एक बदलाव की शुरुआत
1990 के बाद रोमांटिक हीरो के रूप में ऋषि कपूर के किरदार कम होने लगे। उम्र के लिहाज से वे पिता, चाचा और सपोर्टिंग रोल्स में नज़र आने लगे। इसी दौरान उन्होंने निर्देशन में कदम रखा।
1998: निर्देशन में आगमन – ‘आ अब लौट चलें’
अक्षय खन्ना और ऐश्वर्या राय को लेकर बनाई गई ‘आ अब लौट चलें’ को समीक्षकों से मिला-जुला रिस्पॉन्स मिला, लेकिन यह बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं चली। इसके बाद ऋषि कपूर ने दोबारा निर्देशन नहीं किया।
2000 के बाद: चरित्र अभिनेता और नई पहचान
2000 के बाद ऋषि कपूर ने अपनी छवि को फिर से गढ़ा। उन्होंने कई फिल्मों में पिता, गुरु, ससुर और यहां तक कि खलनायक की भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने नकारात्मक और जटिल किरदारों को भी चुनौती के रूप में स्वीकार किया।
महत्वपूर्ण फिल्में इस दौर में:
• ‘हम तुम’ (2004)
• ‘लव आजकल’ (2009)
• ‘अग्निपथ’ (2012) – खतरनाक विलेन ‘रऊफ लाला’
• ‘कपूर एंड संस’ (2016) – 90 साल के दादाजी का किरदार
• ‘102 नॉट आउट’ (2018) – अमिताभ बच्चन के साथ
• ‘मुल्क’ (2018) – मुस्लिम परिवार के मुखिया की गहन भूमिका
• ‘राजमा चावल’, ‘द बॉडी’
‘अग्निपथ’ में उनके निगेटिव रोल ने दर्शकों को चौंका दिया। उन्होंने अपने रोमांटिक हीरो की छवि से बाहर निकलकर अभिनय की नई ऊँचाइयों को छुआ। उन्हें इस फिल्म के लिए IIFA बेस्ट विलेन अवार्ड मिला।
कैंसर से संघर्ष और अंतिम यात्रा
2018 में ऋषि कपूर को बोन मैरो कैंसर का पता चला। इलाज के लिए वे न्यूयॉर्क चले गए जहाँ उन्होंने लगभग एक साल तक इलाज करवाया। इलाज के बाद वे 2019 में भारत लौटे और फिर से फिल्मों में सक्रिय हुए।
लेकिन 2020 की शुरुआत में उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। 29 अप्रैल 2020 को सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें मुंबई के सर एच एन रिलायंस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।
30 अप्रैल 2020 को सुबह 8:45 बजे उन्होंने अंतिम साँस ली। उनके निधन से बॉलीवुड और उनके प्रशंसकों में शोक की लहर दौड़ गई।
श्रद्धांजलियाँ और राष्ट्रीय शोक
ऋषि कपूर के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, आलिया भट्ट, लता मंगेशकर समेत कई प्रमुख हस्तियों ने गहरा शोक जताया।
अमिताभ बच्चन, जो उनके करीबी दोस्त रहे, ने ट्विटर पर लिखा –
“वो गया… मैं टूट गया हूं।”
ऋषि कपूर की विरासत
ऋषि कपूर ने लगभग 150 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने 51 फिल्मों में सोलो हीरो के तौर पर, 92 रोमांटिक रोल में, 25 से अधिक मल्टीस्टारर फिल्मों में और बाद में कई यादगार सपोर्टिंग किरदार निभाए।
उनकी फिल्में भारतीय सिनेमा की उस धारा का प्रतिनिधित्व करती हैं जहाँ भावनाएँ, संगीत और रोमांस एक साथ चलते थे। उनकी अदायगी सहज, संजीदा और दिल को छूने वाली होती थी।
प्रेरणा और स्मृति
ऋषि कपूर आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका सिनेमा, उनकी मुस्कान और उनका अभिनय हमेशा जीवित रहेगा। वह अभिनय की उस विरासत के वाहक थे जिसमें परिवार, प्रेम, आदर्श और मनोरंजन का गहरा तालमेल था।
उनकी जीवनी हम सभी को यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी ऊँचाइयाँ मिलें, एक कलाकार को समय के साथ खुद को बदलते रहना चाहिए – और ऋषि कपूर इस कला के सच्चे उस्ताद थे।
अंत में बस इतना ही कहा जा सकता है:
“सितारे मरते नहीं… वो आसमान में चमकते रहते हैं।”
ऋषि कपूर भी अब एक ऐसा ही सितारा हैं… अमर… अविनाशी।
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