
चित्तौड़गढ़।
“जिस हाथ में किताबें होनी थीं, उसमें कैमरा था — और वो कैमरा बच्चों की ज़िंदगी को तबाह कर रहा था।” राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले के बेगूं के सरकारी स्कूल में 23 दलित और आदिवासी बच्चों के यौन शोषण का मामला सिर्फ एक शिक्षक की विकृत मानसिकता नहीं है, बल्कि यह उस संपूर्ण तंत्र का पर्दाफ़ाश है जो शोषण को देखकर भी चुप रहता है। यह वह सड़ी हुई चुप्पी है, जो सालों तक बच्चों की चीखों को निगलती रही।
1. क्या शिक्षा के मंदिर अब सुरक्षित नहीं रहे?
बच्चों के लिए स्कूल एक सुरक्षित स्थान होना चाहिए — जहाँ ज्ञान के साथ सम्मान और संरक्षण मिले। लेकिन जब शिक्षक ही शिकारी बन जाए, तो बच्चों की ज़िंदगी नर्क में बदल जाती है। शंभू लाल धाकड़ नाम का यह आरोपी शिक्षक न सिर्फ यौन शोषण करता रहा, बल्कि वह बच्चों को ब्लैकमेल करके उन्हीं से अपने कृत्यों के वीडियो भी बनवाता था।
जिस विद्यालय को बच्चों के भविष्य का आधार बनना था, वहीं उनकी मासूमियत का सौदा हो रहा था — वह भी वर्षों तक।
2. दलित और आदिवासी बच्चे ही क्यों निशाने पर?
23 में से सभी बच्चे अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से थे। यह आंकड़ा किसी इत्तिफाक़ का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित शोषण प्रणाली को दर्शाता है, जहाँ जाति-आधारित भेदभाव और वंचना की गहरी जड़ें हैं।
जातिगत हीनता का फायदा उठाकर उन बच्चों को चुप कराया गया, धमकाया गया, और भयभीत करके इस्तेमाल किया गया। शिक्षक ने उन्हें स्कूल से निकालने या फेल कर देने की धमकी दी — यह न केवल अपराध है, बल्कि संस्थागत अमानवीयता का घिनौना चेहरा है।

3. जब वीडियो सामने आया, तब जाकर टूटी चुप्पी
इस अपराध का पर्दाफ़ाश एक बच्चे की हिम्मत और एक पिता की सजगता से हुआ। एक छात्र ने शिक्षक के फोन से वीडियो चुराकर उसे अभिभावकों तक पहुँचाया। यह सबूत ही इस मामले को प्रशासन तक ले गया और पहली बार न्याय की प्रक्रिया शुरू हुई।
सोचिए — अगर यह वीडियो न होता, तो क्या ये 23 मासूम आवाज़ें कभी सुनी जातीं?
4. सवाल प्रशासन से भी है: इतने साल क्या होता रहा?
शंभू लाल धाकड़ 2016 से उस स्कूल में पदस्थ थे। विभागीय रिपोर्ट कहती है कि वर्षों से वह बच्चों का शोषण कर रहा था। तो सवाल उठता है — क्या विद्यालय स्टाफ, प्रधानाचार्य, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, या ज़िला प्रशासन को कभी कोई संकेत नहीं मिला?
या फिर यह मामला जानबूझकर दबाया गया, क्योंकि आरोपी की राजनीतिक पहुंच बताई जा रही है?
अगर विद्यालय स्तर पर सतर्कता होती, तो ये हालात पैदा ही नहीं होते। इस चूक के लिए सिर्फ अभियुक्त नहीं, पूरा सिस्टम ज़िम्मेदार है।
5. सोशल मीडिया नहीं, समाज चाहिए
मामले से जुड़े कई वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। पर हमें समझना होगा — यह महज़ सनसनी नहीं है। यह त्रासदी है।
हर शेयर, हर कमेंट के साथ यह बच्चों की पीड़ा को सार्वजनिक बना देता है। क्या हमें ऐसा “तमाशा” चाहिए? या एक ऐसी सामूहिक चेतना, जो ऐसी घटनाओं को होने ही न दे?
समाज को ज़िम्मेदार अभिभावक, सतर्क पड़ोसी, संवेदनशील शिक्षक और सजग प्रशासन की ज़रूरत है — न कि “शॉकिंग वीडियो” के शौकीन दर्शकों की।
6. क्या बच्चों की काउंसलिंग हो रही है?
प्रशासन ने बच्चों का मेडिकल और काउंसलिंग शुरू की है, जो सराहनीय है। लेकिन मानसिक शोषण और यौन उत्पीड़न का दंश ताउम्र पीछा करता है। एक बार की काउंसलिंग से न्याय नहीं होता।
राज्य सरकार को चाहिए कि वह इन बच्चों के लिए दीर्घकालिक काउंसलिंग, पुनर्वास और शैक्षिक पुनर्निर्माण की योजना बनाए।
7. शिक्षक समाज पर कलंक हैं, लेकिन…
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने आरोपी को बर्ख़ास्त करते हुए कहा कि “ऐसे शिक्षक समाज पर कलंक हैं” — यह बयान सही है। लेकिन इसे महज़ एक “बुरे शिक्षक” का मामला मानकर छोड़ा नहीं जा सकता।
ज़रूरत है एक व्यापक शिक्षक सत्यापन प्रणाली, अनिवार्य नैतिक प्रशिक्षण, और स्कूलों में शिकायत निवारण तंत्र की। हर विद्यालय में बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि “ना” कहना उनका अधिकार है, और डर से चुप रहना कोई समाधान नहीं।
8. इस अपराध की सजा सिर्फ न्यायालय नहीं, समाज भी तय करे
इस अपराधी को आजीवन कारावास या उससे भी कठोर सज़ा मिले — यह तो न्यूनतम अपेक्षा है। लेकिन समाज को भी अपने भीतर झांकना होगा।
हमें खुद से पूछना होगा :
क्या हम अपने बच्चों को बोलने की हिम्मत दे पा रहे हैं?
क्या हम जाति और गरीबी से जूझते बच्चों को बराबरी का अधिकार दिला रहे हैं?
क्या हम स्कूलों को सुरक्षित बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं?
अब चुप रहना गुनाह है
यह घटना चीख-चीख कर कह रही है — “आपकी चुप्पी किसी का बचपन लील सकती है।”
समाज को चाहिए कि इस मामले को एक उदाहरण बनाए — न केवल सज़ा देने का, बल्कि संरचना बदलने का, सोच सुधारने का, और बच्चों को सशक्त बनाने का।
अगर यह रिपोर्ट पढ़ने के बाद कोई अभिभावक अपने बच्चे से खुलकर बात करता है, कोई शिक्षक अपनी आत्मा को टटोलता है, कोई अधिकारी स्कूलों की निगरानी तेज़ करता है — तो शायद ये 23 मासूम आवाज़ें आने वाले हज़ारों बच्चों को बचा सकें।
“बच्चे डरें नहीं, बोलें। समाज सुने, और सुधरे। यही असली न्याय है।”
(यदि आप या आपके आसपास कोई बच्चा यौन शोषण का शिकार हो, तो तत्काल 1098 चाइल्ड हेल्पलाइन या नज़दीकी पुलिस थाने में संपर्क करें। आपकी एक पहल किसी मासूम की ज़िंदगी बचा सकती है।)
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