उदयपुर | भोर की पहली किरण के साथ ही आज उदयपुर का भटियानी चौहट्टा भक्ति और प्रकाश से नहा उठा। प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर के द्वार खुलते ही घंटों-घड़ियालों की गूंज और “जय लक्ष्मी माता” के जयघोष ने वातावरण को दिव्यता से भर दिया। धनतेरस के पावन अवसर पर शहर ही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को पहुंचे — कोई आरती में डूबा था, कोई दीप चढ़ाने आया था, तो कोई बस उस ऊर्जा को महसूस करने जिसे लोक आस्था “महालक्ष्मी की कृपा” कहती है।
आज से मंदिर में पांच दिन का दीपोत्सव आरंभ हुआ है, जो 18 से 22 अक्टूबर तक चलेगा। मंदिर की दीवारें दीयों की रौशनी से जगमगा रही हैं, गलियां पुष्पों की सुगंध से भरी हैं और वातावरण में भक्ति का संगीत तैर रहा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इन पांच दिनों में माता लक्ष्मी स्वयं भक्तों के घरों में प्रवेश करती हैं और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
भोर के दर्शन और श्रृंगार की छटा
धनतेरस की सुबह 4:30 बजे मंगला दर्शन से आरंभ हुई पूजा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष भगवतीलाल दसोत्तर ने बताया कि इस अवसर पर माता का तीन अलग-अलग रूपों में श्रृंगार किया जाएगा —धनतेरस पर महालक्ष्मी के रूप में, रूप चौदस पर सौंदर्य लक्ष्मी के रूप में, और दीपावली पर स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित समृद्धि स्वरूप में।
यह श्रृंगार न केवल सौंदर्य का प्रदर्शन है, बल्कि यह उस भारतीय परंपरा का प्रतीक है जिसमें भक्ति और सौंदर्य दोनों को एक साथ पूजा जाता है।
गज लक्ष्मी का वैभव
मंदिर ट्रस्टी जतिन श्रीमाली बताते हैं कि यहां माता गज लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं— हाथी पर आरूढ़, एक हाथ में कमल और दूसरे में आशीर्वाद की मुद्रा। भारतीय शास्त्रों में गज लक्ष्मी को शक्ति, समृद्धि और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है।
हाथी, जो स्थिरता और बल का प्रतीक है, उस पर विराजमान माता यह संदेश देती हैं कि सच्ची संपन्नता वही है जो धैर्य, परिश्रम और धर्म के संग आती है।
दीपों की रोशनी में झिलमिलाता चौहट्टा
जैसे ही सूर्य अस्त होता है, भटियानी चौहट्टा एक आभा से भर उठता है।
सैकड़ों दीयों की कतारें मंदिर की सीढ़ियों पर टिमटिमाती हैं, मानो हर दीप एक प्रार्थना बन गया हो। बच्चे हाथों में छोटी थालियां लिए दीप सजाते हैं, महिलाएं थाली में फूल, रोली और चावल लेकर आरती करती हैं। यह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और सामूहिक श्रद्धा का भी प्रतीक बन जाता है।
अन्नकूट और समापन की तैयारी
22 अक्टूबर को दीपोत्सव का समापन होगा, जब अन्नकूट पर्व मनाया जाएगा।
सुबह 3 बजे से दोपहर 2 बजे तक दर्शन होंगे और फिर शाम 5 बजे अन्नकूट आरती के साथ महोत्सव का समापन होगा। उस दिन मंदिर में हजारों दीप जलेंगे, और प्रसाद वितरण से पहले पूरे परिसर में “जय महालक्ष्मी माता” की गूंज उठेगी।
आस्था और अनुशासन का संगम
मंदिर ट्रस्ट ने सुरक्षा, स्वच्छता और व्यवस्था के लिए विभिन्न समितियां गठित की हैं।
हर समिति का उद्देश्य यही है कि कोई श्रद्धालु बिना दर्शन किए या बिना प्रसाद पाए लौटे नहीं। हर वर्ष इस आयोजन में स्थानीय निवासियों की सेवा भावना भी झलकती है — कोई लाइटिंग संभालता है, कोई भंडारा, तो कोई फर्श पर गिरे फूलों को समेटता है।
यह केवल त्योहार नहीं, बल्कि एक सामूहिक भक्ति का उत्सव है, जिसमें हर व्यक्ति “महालक्ष्मी की सेवा” को अपना सौभाग्य मानता है।
महालक्ष्मी — समृद्धि की नहीं, सद्भाव की देवी
महालक्ष्मी केवल धन की देवी नहीं, सद्भाव, करुणा और संतुलन की अधिष्ठात्री हैं।
उनकी पूजा का संदेश यही है — “जहां श्रम है, वहां लक्ष्मी है; जहां प्रेम है, वहां समृद्धि है;
और जहां आस्था है, वहां कृपा है।”
उदयपुर के इस दीपोत्सव में यही भावना झलकती है —प्रकाश केवल दीयों का नहीं, बल्कि विश्वास का है; सजावट केवल मंदिर की नहीं, बल्कि मन की है।
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